केंद्र सरकार ने नाको के माध्यम से राज्यसभा में बताया कि, ’’भारत में एचआईवी/एड्स रोग की समग्र गिरावट की प्रवृत्ति देखी जा रही है। एचआईवी अनुमान 2021 के अनुसार, 2010 के बाद से भारत में वार्षिक नए एचआईवी संक्रमणों में 46 प्रतिशत की गिरावट आई है।’’ गंभीर बिमारी में जो देशव्यापी गिरावट देखने को मिली हैइसका पूरा श्रेय भारतभर में एड्स विभाग नाको में काम कर रहे कर्मचारियो कोजाता है। इन कर्मचारियो को प्रोत्साहन व पुरूस्कार देने की बजाये, इसएड्स दिवस पर नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाने का इनाममिलने जा रहा है। अभी भी देश में लगभग 25 लाख एचआईवी रोगी है।
इस माह नाको द्वारा बजट की कमी का हवाला देते हुए देश में एड्स कार्यक्रम में विभिन्न अनुभागों में कार्यरत कर्मियों की छंटनी के आदेश जारी कर दिये है। देश में इस विश्व एड्स दिवस 2022 पर कर्मचारियों को अनोखा तोहफा दिया है। इसमें सबसे अधिक एआरटी केंद्रो पर कार्यरत लगभग 250 डाटा मैनेजर्स, परामर्शदाताओंवअन्यपदों को निशाना बनाया गया है।इस अवसर पर देश के एआरटी सेन्टर के समस्त कर्मचारी देश भर में एड्स से मृत्यु होने वाले 42हजार रोगियों को श्रद्धांजली देने के साथ-साथ, सभी रोगियों से नियमित एआरटी खाने का आव्हान करेंगें। साथ ही नाको के इस काले आदेश को वापस लेने के लिए अपने नोडल अधिकारी को ज्ञापन देकर सरकार व नाको अधिकारियों को ईश्वर से सद्बुद्धि देने की प्रार्थना करेंगे।
रोगियों से भेदभाव को मिटाते मिटाते, एड्स कार्यक्रम को ही लगा भेदभाव का रोग
वहीं दूसरी और इस कार्यक्रम में कार्यरत चिकित्सकों का वेतन दोगुने से अधिक व कई अन्य पदों के कार्मिकों का वेतन 65 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। 2005 से लगभग 15-16 वर्षों से कार्यरत डाटा मैनेजर्स जिन्होनें पूरे कार्यक्रम के आंकड़ों को एक सूत्र में पिरोकर देश में एड्स कार्यक्रम की दशा-दिशा और आगामी योजनाओं के निर्धारण के लिए आवश्यक आंकड़ों को देश व दूनिया के सामने रखने में परामर्शदाताओं व अन्य कार्मिको ने अपना अहम योगदान निभाया है। एड्स विभाग में विगत 17 वर्ष से कार्यरत कार्मिकों को न्यूनतम वेतन पर बिना किसी सामाजिक, आर्थिक सुरक्षा के कार्य करवाया गयाऔरराज्य या केंद्र सरकार में समायोजितनहींकरते हुए, एड्स कार्यक्रम एक परियोजना है, का बहाना बनाते हुए कभी नियमित नहीं किया। राज्य सरकार और केन्द्र सरकार एड्स कार्मिकों को राज्य व केंद्र का संविदा कार्मिक मानने को तैयार नहीं है।जिससे विगत 17 वर्षो से अपना सबकुछ इस कार्यक्रम को दे चूके यह कार्मिक अब अपने परिवार का पालन पोषण कैसे करेगे इस पर प्रश्नचिन्ह लग चूका है।
2030 तक रखा एड्स उन्मूलन का लक्ष्य, क्या ऐसे प्राप्त होगा?
पूरी दूनिया 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाती है अर्थात इस दिन सभी व्यक्ति इस वैश्विक महामारी से स्वयं को व दूसरो को बचाने का वादा करते हैं तथा एड्स पिड़ितों के साथ समाज में भेदभाव व कलंक को मिटाकर उन्हें एक सामान्य नागरिक के समान जीने के अवसर प्रदान करने की शपथ लेते है। देश में एड्स रोग की जॉच, परामर्श, उपचार व जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से सन् 1992 में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की शुरूआत हुई यह वर्तमान में देश में एड्स शत प्रतिशत केंद्र द्वारा वित्त पोषित कार्यक्रम है, जिसे राज्य सरकारों के स्वास्थ विभाग द्वारा राज्य एड्स सोसायटी के माध्यम से संचालित किया जाता है। वर्ष 2030 तक भारत सरकार ने इस महामारी के अंत का लक्ष्य रखा है। देश में नाको द्वारा एचआईवी की जॉच के लिए आईसीटीसी 5423, एफआईसीटीसी 29077, डीएसआरसी 1167 केन्द्रों का संचालन किया जा रहा है। इसी प्रकार देश में एड्स रोगियों के जॉच, परामर्श व उपचार हेतु 682 एआरटी सेंटर्स तथा 1270 लिंक एआरटी सेंटर्स का संचालन किया जा रहा है। युवाओं में रोग के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 13011 रेड रिबन क्लब संचालित हैं। हाई रिस्क समूह में आने वाले रोगियों जैसे प्रवासी जनसंख्या, महिला यौन कर्मी, समलैंगिक यौन आचरण करने वाले, ट्रक ड्रायवर इत्यादि की मॉनिटरिंग व सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए 1596 टी आई एनजीओ भी कार्यरत है।स्वैच्छिक एचआईवी की जॉच हर वो व्यक्ति जो किसी जोखिय युक्त वातावरण में रहता है को करवानी चाहिए तथा प्रत्येक गर्भवती महिला की एचआईवी जॉच को सुनिश्चित किया गया है।
एचआईवी व एड्स रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम 2017 को लागू किया गया जिसमें एड्स रोगियों को विभिन्न प्रकार के अधिकार व सुरक्षा प्रदान की गई है। जिसमें उनके साथ किसी भी स्तर पर होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए कड़े नियम बनाये गये है।लेकिन इन रोगियों को सेवा देने और उनके जीवन बचाने वाले कर्मचारियों के कल्याण के लिए इस अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं किये गये।
केंद्र से पर्याप्त बजट की कमी
नाको द्वारा विगत लगभग एक वर्ष से रोगियों की औषधियों की नियमित आपूर्ति भी नहीं कर पा रही जिसके फलस्वरूप देश भर के रोगियों ने नाको कार्यालय के सामने प्रदर्शन भी किया। जॉच की किट व अन्य सामग्री के लिए लगातार कम बजट का हवाला देते हुए अब नौबत यहॉ तक आ गई कि कर्मचारियों की छंटनी करने के आदेश भी निकाल दिये। जब विभाग के पास बजट की कमी थी, तो गत दो वर्षों में 150 से ज्यादा नये केंद्र क्योंखोले गये? व कार्मिकों की भर्ती क्योंकी गयी? यदि बजट नहीं था तो पहले से जो कार्मिक अन्य केंद्रों पर काम कर रहे थे, उन्हें ही नये केंद्रों पर स्थानांतरित कर देना था।जिससे आज उनकी नौकरी छीनने की नौबत नहीं आती। जहॉ देश के प्रधानमंत्रीजी रोजगार मेला लगाकर युवाओं को नौकरियां बांट रहे हैं, वही दूसरी और उनके ही स्वास्थ मंत्रालय के अधीन कार्यरत एड्स कार्मिकों डाटा मैनेजर की छंटनी का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। कर्मचारियों द्वारा इस हेतु प्रधानमंत्रीजी व विभाग का ध्यानाकर्षण करते हुए निवेदन किया है कि, इन कर्मचारियों को सेवा से न निकालते हुए नये केंद्रो पर स्थानांतरित कर देवें या अन्य रिक्त पदों पर लगा देवें जिससे इनके रोजगार पर संकट न आते हुए इनके परिवार को भूखों मरने की नौबत न आये।
वहीं दूसरी और नाको द्वारा देश भर में कई सामाजिक संस्थाओं को करोड़ों रूपये का बजट एड्स के प्रति जागरूकता व रोगियों की देखभाल के नाम से आवंटित कर देती है जिसका कोई व्यवस्थित लेखा जोखा और कितनी सुविधायें उन रोगियों को वो संस्थायें दे रही है इसका आंकलन ही नहीं किया जाता।
राज्य सरकारों द्वारा एड्स कार्यक्रम के प्रति असंवेदनशिलता व आर्थिक मदद नहीं देना
भारत में कई ऐसे स्वास्थ कार्यक्रम हैं जिन्हें एनएचएम में वर्टिकल कार्यक्रम के नाम से सम्मिलित करते हुए पूरी मॉनिटरिंग व संचालन 60:40 के औसत से अर्थात केंद्र का 60 प्रतिशत व राज्य का 40 प्रतिशत योगदान होता है। किंतु एड्स जैसे गंभीर कार्यक्रम को जो कि 1992 से देश में संचालित है कभी भी स्वास्थ कार्यक्रमों की मुख्यधारा में सम्मिलित नहीं हो पाया। कहीं इसके पिछे मुख्य कारण पहले विश्व बैंक व अन्य अंतराष्ट्रीय संस्थाओं से एड्स कार्यक्रम को प्राप्त महाबजट की मलाई समेटना तो नहीं था? राज्य सरकारें भी इस विषय पर संवेदनशीलता दिखाते हुए एड्स कार्मिकों को राज्य कर्मचारी का दर्जा देते हुए नियमित कर दे तो, नाको पर पड़ रहा वेतन का वित्तीय भार कम हो जायेगा तथा उस राशी का उपयोग रोगियों की औषधियॉ क्रय करने मे किया जा सकेगा। वैसे तो स्वास्थ्य राज्य का विषय होता है तथा अपने राज्य के एड्स रोगियों को निःशुल्क उपचार व औषधियॉ राज्य सरकार को ही क्रय कर प्रदान करनी चाहिए जिससे नाको द्वारा केन्द्र के बजट का उपयोग कार्यक्रम की मॉनिटरिंग में कार्यरत कार्मिकों की नौकरी सुरक्षित करने में किया जा सके।
एड्स दिवस तो प्रतिवर्ष आता है किंतु सरकारें रोगियों के उपचार हेतु दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करे जिससे रोगियों की ड्रग अडेहरेन्स बनी रहे जिससे उनमें इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न न हो जाये। साथ ही इन न्यूनतम वेतन पर काम कर रहे कार्मिकों को मानव अधिकार आयोग, राज्य एवं केंद्र सरकार मानवियता के आधार पर इन्हें नियमित करने की पहल करे। एआरटी सेंटर के कार्मिकों ने रोगियों का हित सर्वोपरि रखते हुए कभी हड़ताल, धरना प्रदर्शन जैसी गतिविधयों को अंजाम नही दिया शायद इसी के फलस्वरूप इनका शोषण चलता आ रहा है।
राजस्थान सरकार द्वारा एड्स कार्मिकों के साथ भेदभाव
प्रदेश मे राजस्थान स्टेट एड्स नियंत्रण सोसायटी द्वारा राज्य में 28 राजकीय एआरटी केंद्रों तथा 7 पीपीपी मोड पर एआरटी सेंटर्स का संचालन किया जा रहा है। इन केंद्रों में लगभग 43 एड्स हजार रोगी नियमित उपचार ले रहे है। इन 28 सरकारी क्षेत्र के केंद्रों में लगभग 250 संविदा कार्मिक अपनी सेवायं दे रहे हैं। राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2013 से नर्सिंग, फार्मासिस्ट व लेब टेक्निशियन भर्ती में एड्स विभाग मे लगे नर्सिंग, फार्मासिस्ट व लेब टेक्निशियन को बोनस अंकों का लाभ देते हुए नियमित कर दिया किंतु अन्य पदों जैसे चिकित्सकों, डाटा मैनेजर्स, परामर्शदाता व सहायक कर्मचारियों को आज तक किसी भी भर्ती में बोनस अंकों या अनुभव के आधार पर नियमित करने के प्रयास नहीं किये गये। 10 वर्षों से राज्य सरकार का भेदभाव झेल रहे बचे हुए एड्स कार्मिकों को सरकार संविदा नियम 2022 के माध्यम से नियमित करने में भी पीछे हट रही है। एड्स कार्यक्रम भी केन्द्र सरकार की स्वास्थ परियोजना है, सरकार द्वारा वर्तमान संविदा नियम 2022 में समस्त केन्द्र व राज्य के स्वास्थ कार्यक्रमों में कार्यरत संविदा कार्मिकों को सम्मिलित किया जाना है किंतु एड्स कार्यक्रम के कार्मिकों को अभी तक इस हेतु योग्य नहीं माना जा रहा है। ऐसे में कर्मचारी जाये तो जाये कहॉ?
उक्त जानकारी देते हुए राष्ट्रीय एआरटी फेडरेशन के अध्यक्ष हितेश माहेश्वरी ने बताया कि देश में राष्ट्रीय एड्स कार्यक्रम को सफलता के शिखर पर पहुचाने तथा वर्ष 2030 तक सरकार के एड्स के उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने में वर्षो से कार्यरत कार्मिकों की बहुत आवश्यकता है, चाहे तो नाको नये कार्मिको की भर्ती कर देवे व आवश्यकता होने पर कार्यरत कार्मिको को ही जहॉ आवश्यकता हो वहॉ पदस्थापित कर दे, किंतु उन्हे नौकरी से न निकालकर उनके व उनपर आश्रित परिवार को भूखों मरने के लिए न छोड़ें क्योंकि हजारों कर्मी तो अब नौकरी की अधिकतम आयु को पार कर चुके हैं, वो अब कहां जायेंगे। प्रधानमंत्री जी, स्वास्थ्य मंत्री जी व नाकों के अधिकारियों से निवेदन है कि इस काले आदेश को निरस्त करते हुए कर्मचारियों को अन्य केद्रों पर पदस्थापित करने का फार्मूला निकाले एवं वर्तमान कार्यरत कार्मिकों को पुनः बहाल करने का मार्ग प्रशस्त करें।
हितेष माहेश्वरी
ऑल इंडिया एआरटीसी फेडरेशन