यूरिया संकट : सत्ता के दो पाटों में फंसा किसान

– पूरे प्रदेश में लाइनों में खड़ा है किसान
– बिगडऩे लगी कानून व्यवस्था

-राम शर्मा
रासायनिक खाद विशेषकर यूरिया और डीएपी का संकट पूरे देश में चरम पर है। किसान इन दिनों यूरिया खाद के लिए दिनभर लाइन में खड़ा रहता है। लेकिन उसे जरूरत के मुताबिक खाद नहीं मिल रहा। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और एमपी में ज्यादा खराब हालात है। जहां तक राजस्थान की स्थिति है। कमोबेश सभी जिलों में यूरिया की कमी है। किसान सहकारी समितियों दरवाजे पर खड़ा होकर निराश लौट रहा है। अब तो उसका धैर्य भी जवाब देने लगा है। जुलाई अगस्त में में दो-दो दिन तक लाइन में लगने के बाद भी पर्याप्त यूरिया नहीं मिल रहा था, लेकिन किसान शांत था, उसे उम्मीद थी कि कुछ दिनों में हालत सही हो जाएगी और उसे पर्याप्त मात्रा में यूरिया मिल जाएगा। लेकिन ज्यों-ज्यों रबी की बुवाई का काम जोर पकडऩे लगा। उसका धैर्य चुकने लगा। वह उग्र होने लगा। हर दिन किसी न किसी जिले से किसानों के आंदोलित होने की खबरें आने लगी है। राज्य सरकार का कहना है कि केन्द्र से यूरिया की सप्लाई कम आ रही है। इसलिए मांग के अनुरूप किसानों को यूरिया नहीं दिया जा रहा। दूसरी तरफ केन्द्र सरकार का कहना है कि देश में यूरिया की कोई कमी नहीं, वितरण व्यवस्था में कहीं न कहीं खामी है। कुल मिलाकर राजस्थान में किसान राज्य और केन्द्र सरकार के बीच फंसा हुआ है। उसकी समस्या का निदान नहीं हो रहा।
इस बार मानसून कीे मेहरबानी अच्छी रही। इस कारण बुवाई का रकबा भी बढ़ा है। किसान को रबी की फसल से अच्छी उम्मीद है। किसान रबी की फसलों की बुवाई में जुट गया। ऐसे में उसे रासायनिक खाद की भी ज्यादा जरूरत है। किसान अगस्त से ही यूरिया लेने के लिए सहकारी समितियों के चक्कर काटने लगे थे। लेकिन किसान को न अब यूरिया मिल रहा और न पहले डीएपी मिला। किसान का पूरा साल खाद के लिए लाइनें लगाने में ही बीत गया।
कालाबाजारी बढ़ी…
राजस्थान में यूरिया क्रय विक्रय सहकारी समिति के माध्यम से वितरित किया जा रहा है। लेकिन समिति की वितरण व्यवस्था में कहीं न कहीं खामी है। इसके चलते यूरिया की कालाबाजारी बढ़ गई। यही कारण है कि समितियों में यूरिया नहीं मिल रहा। लेकिन निजी दुकानों में ब्लैक से यूरिया मिल रहा है। बांसवाड़ा जिले में यूरिया का एक कट्टा 1350 रुपए की जगह 1500 से 1700 रूपए तक मिल रहा था। यानि सहकारी समितियों के गोदामों से निकलकर यूरिया निजी दुकानों तक पहुंचने लगा है।
बिगडऩे लगी कानून व्यवस्था की स्थिति…
किसानों ने अगस्त में ही यूरिया की मांग शुरू कर दी थी। दो तीन महीने किसान शांति से सहकारी समिति के यहां लाइन में लगा रहा। लेकिन नवम्बर तक आते आते वह परेशान हो गया और प्रदर्शन पर उतर आया। पिछले दिनों सवाईमाधोपुर के खंडार में तो उग्र किसानों ने सहकारी समिति के व्यवस्थापक की पिटाई तक कर दी। पुलिस ने बड़ी मुश्किल से स्थिति को संभाला। यूं तो राजस्थान के सभी जिलों में यूरिया की मांग आ रही है। लेकिन जयपुर, कोटा, सवाईमाधोपुर, बूंदी, सीकर और भीलवाड़ा जिलों में यूरिया की मांग ज्यादा है। ऐसे में यहां से किसानों के उग्र होने की खबरें भी मिल रही है। किसानों का कहना है कि उन्हें पर्याप्त यूरिया नहीं मिल रहा। जबकि कृषि विभाग के अधिकारियों का दावा है कि 80 प्रतिशत किसानों को यूरिया खाद मिल चुका है। कुछ किसान जरूरत से ज्यादा स्टॉक कर रहे हैं। इसलिए समस्या उत्पन्न हो रही है।
केन्द्र से मांग का आधा ही मिला यूरिया
इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किसानों से शांति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने लोगों से यूरिया का अनावश्यक भंडारण नहीं करने को कहा। मुख्यमंत्री ने यूरिया संकट के लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि केन्द्र से यूरिया की आपूर्ति मांग के अनुरूप नहीं हो रही। अक्टूबर में 4.50 लाख मीट्रिक टन की मांग की थी। इसकी एवज में सरकार ने 2.90 लाख मीट्रिक टन यूरिया की आपूर्ति की। उन्होंने कहा है कि हम इसके लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। इधर केन्द्र सरकार के उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने पिछले दिनों अपने बयान में कहा कि देश में यूरिया की कोई कमी नहीं है। सरकार एडवांस स्टॉक मंगाकर रखती है।
मांग और आपूर्ति में अंतर है समस्या का मूल कारण
केन्द्र और राज्य सरकारें कुछ भी दावा करें, लेकिन हकीकत यह है कि देश मेें रासायनिक खाद की कमी है। खाद की कमी का मूल कारण मांग और आपूर्ति में अंतर है। दूसरा वितरण की व्यवस्था सही नहंी है। भारत वास्तव में रासायनिक खाद का सबसे बड़ा आयातक देश है। इसके अलावा, भारत घरेलू उत्पादन के लिए कच्चे माल जैसे यूरिया बनाने के लिए प्राकृतिक गैस और डीएपी बनाने के लिए फॉस्फोरिक एसिड का आयात करता है।
पिछले दो वर्षों से उर्वरक स्टॉक में गिरावट आ रही है। उदाहरण के लिए सितंबर 2021 में स्टॉक 69 लाख टन था, जबकि सितंबर 2018 में यह 25 लाख टन था। विशेषज्ञों का कहना है कि उर्वरक उद्योग को नीतिगत अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, सरकार रासायनिक खाद पर सब्सिडी देती है। कितनी सब्सिडी देनी है। इसका फैसला हर साल होता है। इस निर्णय के बाद ही उर्वरक कंपनियां आयात का ऑर्डर देती है। इस बार भी यह निर्णय विलंब से हुआ, जिसके कारण आर्डर देने में देरी हुई और यूरिया की आपूर्ति में भी विलंब हआ।
दूसरा बड़ा कारण यह है कि भारत ने उर्वरकों के घरेलू उत्पादन को बहुत ज्यादा घटा दिया। क्योंकि उसे लगता है कि देश में उर्वरक उत्पादन आयात की तुलना में महंगा पड़ रहा है। ऐसे में उसने उर्वरक का उत्पादन देश में कम कर दिया और आयात बढ़ा दिया। इन दिनों रूस यूक्रेन युद्ध से पूरी दुनिया की अर्थव्यव्यस्था गड़बड़ाई हुई है। इसका असर खाद के आयात पर भी पड़ा है, जिससे जरूरत के मुताबिक रासायनिक खाद देश में समय पर नहीं आ सका।
रासायनिक खाद के संकट का तीसरा कारण, पूरे देश में बुवाई का लगभग एक ही समय पर होना है। इस वजह से पूरे देश में यूरिया हो या डीएपी सभी रासायनिक खादों की मांग एक ही समय पर उत्पन्न होती है। एक साथ मांग बढऩे से उसकी एक साथ आपूर्ति डिलीवर नहीं हो पाती और किसानों की सहकारी समितियेां में लाइन लगने लग जाती है।
चौथा बड़ा कारण भारत में किसानों के पास खाद की भंडारण क्षमता की कमी भी है। भारतीय किसान इतना सक्षम नहीं होता कि वह एडवांस में यूरिया खरीद कर रख ले। बुवाई की जरूरत पडऩे पर वह यूरिया खरीदता है। लगभग सारे किसान एक साथ एक ही समय में यूरिया की मांग करते हैं। इससे मांग और आपूर्ति का संतुलन गड़बड़ा जाता है। कुल मिलाकर केन्द्र सरकार को रासायनिक खाद की आपूर्ति की सही समय पर व्यवस्था करनी होगी। इसके लिए उसे एडवांस में मांग का अनुमान कर आयात के आदेश जारी करने होंगे। साथ ही देश में भी रासायनिक खाद के उत्पादन को प्रोत्साहन देना चाहिए। दूसरी ओर राज्य सरकारेां को खाद वितरण की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि अन्नदाता को अनावश्यक लाइनो में नहीं लगना पड़े।

By Udaipurviews

Related Posts

error: Content is protected !!