हिन्दी पखवाडे के तहत
भारत से बाहर हिन्दी और भारतीय संस्कृति विषय पर
एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन
भाषायी विकास नहीं, पूरी संस्कृति का अस्तित्व है हिन्दी – डॉ. सुरेश ऋतुपर्णा
उदयपुर 16 सितम्बर / जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संघटक लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की ओर से हिन्दी दिवस पर आयोजित हिन्दी पखवाड़े के तहत शुक्रवार को भारत से बाहर हिन्दी और भारतीय संस्कृति विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य वक्ता के.के. बिडला फाउण्डेशन नई दिल्ली के निदेशक डॉ. सुरेश ऋतुपर्णा ने कहा कि हिंदी भाषा को अपनाना और उसे गोर्वानुभूति से बोलने का जज्बा जब तक हम सभी अपने भीतर पैदा नही करेंगे तब तक हम हिंदी को लेकर निडर नहीं हो पाएंगे। अंग्रेजी के सामने अपनी मातृभाषा को प्रखरता से रखने और उसकी विशेषताओं तथा वैज्ञानिकता को सीखे और जाने बिना हम हिंदी को वांछित रूप में सम्मानित करने के प्रयास के सफल नही हो पाएंगे। हिंदी को केवल भाषाई विकास से साथ नही जोड़ा जा सकता। ये तो पूरी की पूरी संस्कृति से अस्तित्व को बनाए रखने का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होने कहा कि भारत जैसे विविधता भरे देश मे बिना भावनाओं को आहत किये हिंदी का आकर्षण बनाए रखना होगा। भाषायी खाई को मिटा कर हिंदी के लिए कर्म करने की जरूरत है। हिंदी महज देश की भाषा ही नही बल्कि भारतीय मूल्यों और सांस्कृतिक को देश विदेश में जीवित रखने का सशक्त माध्यम है। हिंदी ही वो ताकत है जिसने पूरे विश्व मे हमारे संस्कारों को न केवल सम्मान दिलाया है बल्कि उनको पोषित ओर पल्ल्वित भी किया है। हमें अपनी मातृ भाषा हिन्दी बोलने पर गर्व होना चाहिए, आज विश्व के 156 देशों में हिन्दी बोली जाती है , हिन्दी का सम्मान देना , हमारा सम्मान है। भारतीय संस्कृति ने विदेशों को सम्बल दिया है। विदेशों में सभी भारतीय त्यौहार बडे ही उत्साह व उमंग के साथ मनाये जाते है, यही भारतीय संस्कृति की एकता का प्रमाण है। उन्होने विद्यार्थियोें से आव्हान किया कि वे हम हमारे तीज, त्यौहार उसी रूप में मनाये जिस रूप में हमारे पुरखें मनाया करती थी तब ही हमारी संस्कृति जीवित रह सकती है। जीवन में सफल होने लिए सार्थकता जरूरी है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि भाषा हमारी विचाराभिव्यक्ति के साथ साथ हमारे पूर्णरूपेण विकास की भी द्योत्तक है। हिंदी भारत ही नहीं विश्व के कई देशों में बोली जाती है जो भारतीयता के महत्व और उसके संस्कारों की सार्वभौमिकता को प्रतिलक्षित करती है। और यही किसी भी भाषा की महानता का श्रेष्ठ रूप कहा जा सकता है। भारतीय संस्कृति, सभ्यता हमारी पहचान है। देश में 60 करोड व विदेशों में 55 करोड़ व्यक्ति हिन्दी भाषा का उपयोग करते है। उन्होने कहा कि भारत विविधताओं का देश है , यहॉ हर 20 मील पर बोलिया , रहन सहन बदल जाता है। उन्होने कहा कि हर भाषा का सम्मान होना चाहिए, किसी को अहत किए बिना हमारी भाषा को और अधिक उत्कृष्ट कैसे बनाया जाये इस पर जोर देना चाहिए। आज भारतीयों ने पूरे विश्व में अपनी निष्ठा , ईमानदारी की अपनी छाप छोडी है और अपने देश का नाम रोशन किया है।
विशिष्ठ अतिथि कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर ने कहा कि हिंदी को उसके महत के अनुरूप स्थापित करने का एक मात्र तरीका यही है कि हम उसे उस रूप में अपनाए जिसमें जनमानस से वो सीधे सीधे जुड़े । संवाद के साथ लेखन में भी जनमानस को हिंदी से जोड़ कर ही हिन्दी के महत्व और आवश्यकता को सिद्ध कर पाएंगे। इस काम मे युवा पीढी की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं।इस दिशा में काम करके हम अपनी भाषा को उन्नत बनाने के कार्य को पूर्ण कर पाएंगे।
संचालन डॉ. हरीश चौबीसा ने किया जबकि आभार डॉ. रचना राठौड ने दिया। संगोष्ठी में डॉ. ऋतुपर्णा का शॉल, उपरणा, पगडी एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। संगोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों द्वारा मॉ सरस्वती के प्रतिमा पर दीप प्रज्जवलित कर किया।
संगोष्ठी में मदुलिका ऋतुपर्णा, डॉ. सुनिता मुर्डिया, सुभाष बोहरा, डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव, डॉ. रेखा कुमावत, डॉ. अनिता कोठारी, डॉ. इंदू आचार्य, डॉ. ममता कुमावत, डॉ. हरीश मेनारिया, डॉ. पुनित पण्ड्या, डॉ. सरिता मेनारिया, डॉ. गुणबाला आमेटा, डॉ. पल्लव पाण्डे्य, डॉ. रोहित कुमावत सहित विधार्थी उपस्थित थे।