आदिवासी समाज राष्ट्र प्रेम व वैदिक ज्ञान से परिपूर्ण – प्रो. सारंगदेवोत

भगवान बिरसा मुंडा जयंति एवं जनजातीय गौरव दिवस पर
‘‘ राजस्थान के जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी ’’ विषय पर
दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आगाज
राजनैतिक हस्तक्षेप से इतिहास की पवित्रता खतरे में – प्रो. शर्मा
जनजाति समाज सामाजिक सौहार्द्व-समरसता का प्रतीक – पंण्ड्या

उदयपुर  15 नवम्बर/ इतिहास ज्ञान की महत्वपूर्ण शाखा है जिससे किसी भी राष्ट्र के बारे में उन तथ्यों की समझ पैदा होती है जिससे वहां के सामाजिक , संास्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक वातावरण को जाना समझा जा सके , किन्तु वर्तमान परिदृश्य में जो राजनैतिक हस्तक्षेप इतिहास के क्षेत्र में बढा है उससे उन तथ्यों को इसमें समाहित किया जा रहा है जिनका इससे कोई सरोकार नहीं है। इतिहास को प्रदूषित होने से बचाने और उसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए हमें सकीर्णता छोड़ कर निष्पक्ष इतिहास लेखन की दिशा में कार्य करना होगा। उक्त विचार मंगलवार को भगवान बिरसा मंुडा जयंती एवं जनजातीय गौरव दिवस पर माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान एवं जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संघटक साहित्य संस्थान के संयुक्त तत्वावधान प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में ‘‘ राजस्थान के  जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी ’’ विषय  पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में कोटा विवि के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं इतिहासविद् प्रो. बी.के. शर्मा ने बतौर मुख्य वक्ता कही। प्रो. शर्मा ने कहा कि राजस्थान के इतिहास में यहां की जनजातियों का महत्वपूर्ण स्थान है। स्वतंत्रता संग्राम की बात की जाए तो अंग्रेजी हुकूमत से सर्वाधिक पीड़ित यही जनजातियॉ रही है और इन्हीं जनजातियों ने अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिरोध भी सबसे पहले किया। उन्होने कहा कि जनजाति आंदोलनों  के माध्यम से राज्य की विभिन्न जनजातियों द्वारा स्वतंत्रता हेतु शहीद होने और राष्ट्र प्रेम हेतु सर्वस्व त्याग का इतिहास है। जहॉ राजव्यवस्था में इन जनजातियों की वीरता और देश भक्ति के कारण इन्हे सम्मान मिला, वही अग्रेजी शासन में प्रताड़ना।  आवश्यकता है जनजातियों के उत्थान करने वाले गोविन्द गिरी, भोगीलाल पंड्या, माणिक्यलाल वर्मा, मोतीलाल तेजावत जैसे अग्रगामियों के दर्शन को समझने की।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवेात ने कहा कि भारत का अतीत, वर्तमान एवं भविष्य तीनों ही आदिवासी समुदाय के बिना कभी पूरा नहीं हो सकता। इसी प्रकार स्वतंत्रता संग्राम आदिवासी – जनजातियों की वीरता के बिना पूरा नहीं है। जनजातियों के संस्कारों व रिवाजों को अपनाने की जरूरत है। ये सहकारिता तथा भाईचारे सहयोग की वो मिसाल है जो हमारे सभ्य समाज मेें भी आसानी से देखने को नहीं मिलती। प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि वेदों में धरती को माता एवं पंचतत्वों की बात कही गई है। हमारी जनजातियॉ इस वैदिक ज्ञान को पूर्ण रूपेण अंगीकृत करते हुए धरती को मातृभूति और पंचतत्वों को पर्यावरण के रूप में स्वीकार करती है। उनका संरक्षण करती है।
निदेशक प्रो. जीवनसिंह खरकवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए दो दिवसीय संगोष्ठी की जानकारी देते हुए बताया कि संगोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों द्वारा मॉ सरस्वती की प्रतिमा दीप प्रज्जवलित कर किया।
मुख्य अतिथि राजस्थान अनुसूचित जनजाति परामर्शदात्री परिषद् राजस्थान सरकार के सदस्य लक्ष्मीनारायण पण्ड्या ने इतिहास में बढ़ते जातिगत, वर्गवाद के हस्तक्षेप पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आने वाले समय में इसके दुखद प्रभाव सभी के सामने होगे। आदिवासी समाज और हमारी जनजातियों ने अपने सामाजिक सौहार्द्ध और समरसता से देश भक्ति केा न केवल पोषित किया वरन् उसके माध्यम से हमारे समाज को भाईचारे व प्रेम का पाठ भी पढाया। पण्ड्या ने कहा कि आदिवासी स्वतंत्रता सैनानियों के इतिहास को आमजन तक पहुंचानें की आवश्यकता है। हमें राजनीति से उपर उठकर इतिहास के उन अनछूए पहलुओं को सामने लाने की आवश्यकता है।
संगोष्ठी में सीसीआरटी के निदेशक ओपी शर्मा, टीआरआई के निदेशक महेश चन्द्र जोशी, उपनिदेशक प्रज्ञा सक्सेना ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में सहायक आचार्य डॉ.़ सीता गुर्जर द्वारा सम्पादित ‘‘ पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं की भागीदारी ’’ पुस्तक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।
संचालन डॉ. कुल शेखर व्यास ने किया जबकि आभार डॉ. हेमेन्द्र चौधरी ने दिया।

इस अवसर पर प्रो. गिरिशनाथ माथुर, डॉ. जेके ओझा, डॉ. राजेन्द्र नाथ पुरोहित, डॉ. जीएल मेनारिया, प्रो. प्रतिभा पाण्डे्य, डॉ. दिग्विजय भटनागर, प्रो. सुशीला शक्तावत, डॉ.़ प्रियदर्शी ओझा, डॉ. मनीष श्रीमाली, डॉ. विवेक भटनागर, डॉ. महावीर प्रसाद जैनर, डॉ. मदन लाल मीणा, प्रो. मंजू मांडोत, डॉ. अवनीश नागर, डॉ. लाला राम जाट, डॉ. हीना खान, डॉ. नीरू राठौड, डॉ. मानसिंह  सहित शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बिहार, झालावाड, बांसवाडा, पाली, भीलवाडा, सीकर, डुंगरपुर, जयपुर, जोधपुर , महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, बिहार के 125 से अधिक विषय विशेषज्ञ एवं शोधार्थी भाग ले रहे है।
इन विषयों पर हुई चर्चा:- शोध अधिकारी डॉ. कुल शेखर व्यास ने बताया कि संगोष्ठी में विभिन्न तकनीेकी सत्रों का आयोजन किया गया जिसमें जनजाति वर्ग के सहयेाग से प्रजामंडल आंदोलन, जनजाति लोक गीतों में स्वतंत्रता आंदोलन, स्वतंत्रता आंदोलन में जनजाति की भूमिका, साहित्य में जनजातीय स्वतंत्रता आंदोलन, राजस्थान में एकीकरण में जनजातियों की भूमिका, मानगढ़ धाम पर विषय विशेषज्ञों ने अपने अपने विचार व्यक्त किए।

समापन बुधवार को:-

दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन समारोह बुधवार को दोपहर 02 बजे प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में होगा, जिसके मुख्य अतिथि पूर्व सांसद रघुवीर मीणा होगे जबकि अध्यक्षता कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत करेगे।

By Udaipurviews

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