परदेशी पार्क में साहित्यकारों-कवियों ने मनाई परदेशी की 101वीं जयंती

प्रतापगढ़, 26 जुलाई। ख्यातनाम साहित्यकार परदेशी की 101वीं जयंती के अवसर पर शुक्रवार को शहर के परदेशी पार्क में जिले के साहित्यकारों और कवियों ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इस अवसर पर जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी मनीष जैन, सहायक जनसंपर्क अधिकारी नवधा परदेशी, अरुण वोरा, सुरेंद्र सुमन,  चन्द्र प्रकाश द्विवेदी, अजगर अली बोहरा, सुरेश ‘सुरज’, विजय सिंह ‘विद्रोही’, दुर्गाशंकर सुथार, कैलाश राव ‘रसिक’, भंवर जी ‘भंवर’, अनिता गुप्ता, मीना सुमन, धनपाल ‘धमाका’, आदि उपस्थित माल्यार्पण के पश्चात सभी ने अपनी-अपनी कविताओं का काव्य पाठ किया।
परदेशी का जन्म 26 जुलाई 1923 को प्रतापगढ़ जिले के पानमोड़ी ग्राम में हुआ था। उनका वास्तविक नाम मन्नालाल शर्मा था। नौ वर्ष की उम्र में परदेशी उपनाम रखकर काव्य लेखन आरंभ किया। चौदह वर्ष की उम्र में परदेशी का लिखा ‘चितौड़’ खंड काव्य प्रकाशित हुआ, जिसकी राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने काफी प्रशंसा की थी। 1941 में उनका विवाह अरनोद कस्बे की लक्ष्मी देवी के साथ हुआ। विवाह के बाद उन्होंने लक्ष्मी को ‘तारा’ नाम दिया। 1942 में आजीविका के लिए मध्य प्रदेश के मंदसौर शहर चले गए। जहां क्लर्क की नौकरी की। सात माह पुरानी नौकरी छोड़कर वहां साहित्यिक पत्रिका ‘ज्योति’ का संपादन-प्रकाशन किया। परदेशी ‘भारत सोवियत मैत्री संघ’ और ‘प्रगतिशील लेखक संघ, मुम्बई’ के संस्थापक सदस्य थे। 1954 में धर्मयुग में प्रथम उपन्यास ‘चट्टानें’ धारावाहिक प्रकाशित हुआ। 1962 में राजस्थान साहित्य अकादमी ने परदेशी के उपन्यास ‘जय महाकाल’ को सर्वश्रेष्ठ उपन्यास का पुरस्कार दिया। 1939 से 1947 की अवधि में सोलह काव्य संग्रह प्रकाशित हुए।
परदेशी ने उपन्यास, कहानियां, राजनीति, धर्म दर्शन, बाल साहित्य, सभी विधाओं में लिखा है। वे अपने कुछ उपन्यासों के कारण काफी चर्चित रहे हैं। परदेशी के प्रमुख उपन्यायों में चट्टानें (1954), पाप की पुजारिन, न्याय के सींग (1974 में ‘रंग’ में धारावाहिक), कच्ची धूप (1954 में ‘मानव मासिक’ में धारावाहिक), दूध के बादल, औरत, रात और रोटी (1956), भगवान बुद्घ की आत्मकथा, औरत एक : चेहरे हजार (1954 में ‘गोरी’ में धारावाहिक), बड़ी मछली : छोटी मछली (1958), जय महाकाल (1961), त्याग का देवता (1965), सपनों की जंजीरें (1961), मैला सपना, जय एकलिंग, कुआरी किरण, जयगढ़ का जोगी, आत्मसिद्धा, काला सोना, मोम की पुतली, सिंदूर की हथकडिय़ां आदि शामिल है।
इसी तरह कहानी संग्रहों चंपा के फूल, संदेह का सिंदूर, बंद कमरा, राजस्थान के शौर्य एवं पराक्रम की कहानियां, खातू रावत और अन्य कहानियां, विश्वयुद्ध की रोमांचकारी कहानियां, कविता संग्रहों चित्तौड़, बादल, धरती माता, मदालसा, प्यार, रक्तदान, जयहिंद, कश्मीर को छोड़ दो, वातायन, परदेशी के गीत, लाल तारा, हंसिया, हथौड़ा और लेखनी, 42 के बाद का वर्ग संघर्ष, चालीस करोड़, परिंदा, पूर्व-अपूर्व, नाटकों कल्पना, जनता की जीत, धरती का सिंगार, राजनीति विषयक पुस्तकों एशिया की राजनीति, कश्मीर का सवाल, दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावाद क्या है? की परदेशी ने रचना की।
बाल साहित्य में परदेशी ने सपनों के विधाता, सौदागर सुंदर, डॉ. अल्बर्ट स्वीत्ज़र, गुजरात की लोककथाएं, गढ़बंका और रणबंका, भारत की लोककथाएं, सोए आलसी की आंख, लेख और निबंध संग्रहों में अर्जन और सर्जन, बेंजामिन फ्रेंकलिन, कोनटिकी, तूफान, हेनरी फोर्ड, व्यापार के नव क्षितिज की रचना की। अनुवाद विधा में लता, राय हरिहर, राय रेखा, कृष्णाजी नायक, महात्मा माधव, एक परछाईं दो दायरे, मगधपति, काम और कामिनी का अनुवाद किया। सेठ जमनालाल बजाज को गांधीजी के पत्र (हरिभाऊ उपाध्याय के साथ संपादन, 1953) किया।
By Udaipurviews

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