उदयपुर, 27 सितम्बर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में शुक्रवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि जिज्ञासा से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। जिज्ञासा का कोई तटबंध नहीं होता, वह अविरल बहती रहती है। जिज्ञासा के जागे बिना तत्व तो क्या स्वयं का भी ज्ञान नहीं हो सकता। पूरा संसार नवतत्वों से बना है, इनमें जीव-अजीव दो तत्व प्रमुख हैं एवं शेष इनकी पर्याय हैं। क्या का प्रश्न उठना जिज्ञासा है और क्यों है का प्रश्न उठना तर्क है। हमें और किसी से नहीं, किन्तु पाप से डरना चाहिए, क्योंकि पाप बहुत आसानी से बंध जाते हैं, किंतु पाप का फल भोगना बहुत कठिन है। रो-रो कर पाप का फल भोगना पड़ता है, फिर भी पाप का प्रवाह चलता रहता है। पाप किए हैं तो फल भोगने ही पड़ेंगे। पुण्य किया है तो पुण्य का फल मिलेगा। पाप बहुत जल्दी एवं आसानी से बंध जाता है। पुण्य का बंध कठिनाई से होता है। बूंद-बंद करके घट भरता है। पुण्य का घट धीरे-धीरे भरता है, पाप का घट जल्दी भरता है। प्रभु अपने अनुयायी से कहते हैं पापभीरू बनो। पाप से डरेंगे तो पाप से बचेंगे। आगम में उल्लेख आता है कि शय्यंभव स्वामी वेद-वेदान्त के प्रकांड पंडित थे, बुद्धिशाली थे पर तत्व के जानकार नहीं थे। उस काल में प्रभवाचार्य जो 14 पूर्वधारी थे उन्हें एक योग्य उत्तराधिकारी की तलाश थी। उन्होंने अपने दो शिष्यों के माध्यम से प्रयोग व सही प्रक्रिया को समझ कर शय्यंभव स्वामी में तत्व को जानने हेतु जिज्ञासा जागृत की। उनकी जिज्ञासा को शान्त कर शय्यंभव स्वामी को आचार्य रूप में अपना उत्तराधिकारी बनाया। योग्य व्यक्ति को दिया गया ज्ञान सार्थकता को प्राप्त करता है। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने कहा कि क्रोध, मान, माया व लोभ से चारों कषाय हमारे जन्म-मरण रूपी वृक्ष की जड़ों को सींचते हैं। हम क्रोध को नहीं, क्षमा को धारण करें, अहंकार को छोड़ विनम्र बनें, माया को नहीं सरलता को अपनायें, लोक में भटकाने वाले लोभ को छोड़ संतोष को धारण करें। लोभ का अंतिम परिणाम विनाश है। महालोभी नरक में ही जाता है। अतः हम लोभी नहीं पुणिया श्रावक की तरह संतोषी बनें। श्री विशालप्रिय जी म.सा. ने भी धर्मसभा को सम्बोधित किया। मंत्री पुष्पेंद्र बड़ाला ने दो दिवसीय राष्ट्रीय युवा सम्मेलन का आयोजन शनिवार से होने जा रहा है जिसे लेकर श्रीसंघ ने सारी तैयारियां पूरी कर ली है।
जिज्ञासा के जागे बिना तत्व को क्या स्वयं का भी ज्ञान नहीं हो सकता : आचार्य विजयराज
