उदयपुर, 26 अगस्त। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने सोमवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति के दो पक्ष हैं-पहला श्रमण संस्कृति और दूसरा वैदिक संस्कृति। वैदिक संस्कृति में कृष्ण को अवतार माना गया है। श्रीकृष्ण उत्सर्पिणी काल की चौबीसी में 12वें तीर्थंकर ‘‘अमम्’’ बनेंगे। जन्माष्टमी देश में ही नहीं अपितु विदेश में भी मनाई जाती है। जवाहराचार्य जी ने स्वरचित उदाहरणमाला के भाग 1 व 2 में जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के पराक्रम एवं माहात्म्य की विशद विवेचना की। श्रीकृष्ण ने सदैव अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों का पालन किया। उनसे हम सभी को राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय एवं पारिवारिक जीवन में कर्तव्यपालन का बोध लेना चाहिए। इस अवसर पर आचार्य श्री जी ने ‘‘आओ रे सखी री धीमी-धीमी चाला के जन्म्यो-जन्म्यो गोकुल में कान्हो बंसी वालो’’ सुमधुर तान में गाकर उपस्थित जनमेदिनी को भाव-विभोर कर दिया। श्रीकृष्ण वर्तमान चौबीसी के 22वें तीर्थंकर अरिष्टनेमी के चचेरे भाई थे एवं अत्यंत बलशाली थे। सेवाभावी श्रीकृष्ण ने दीक्षा दिलवाने में जबरदस्त दलाली कर तीर्थंकर नामकर्म का बंध किया। इतिहास गवाह है कि कौरवों ने मक्खन (श्रीकृष्ण की सेना) मांगा और पांडवों ने माखन चोर मांगा। माखन चोर जिनके साथ होता है वही विजय का वरण करता है। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने फरमाया कि निष्कंखा मार्गानुसारिता का नवां बोल है जिसे आम जन निष्काम योग के रूप में जानते हैं। श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्म की शिक्षा देते हुए युद्ध भूमि में उतर रहे अर्जुन से कहा कि तुम मोह में मत पड़ना, कर्तापन का अहंकार मत करना तभी तू निर्दोष रहेगा। बी और डी के बीच सी होता है अर्थात् बर्थ और डेथ के बीच उत्तम चॉइस रखना, इसी से जन्म व मरण दोनों सुधर सकते हैं। जीवन में छाछ की नहीं, मक्खन की अभिलाषा रखना क्योंकि जो मक्खन तिर रहा है उसे चुनो। तिरने वाला ही तिरा सकता है।
माखन चोर जिनके साथ होता है वही विजय का वरण करता है : आचार्य विजयराज
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