मां की कोख से क्या बोली बेटी …?

-प्रियादुबे
मां के गर्भ में पल रहा एक कन्या भ्रूण बोला- मां मेरे जन्म के बाद तेरे आंचल में बड़ी मैं बड़ी होऊंगी,बात-बात में मचलूंगी,रूठ जाऊंगी, स्कूल जाऊंगी, सयानी भी होऊंगी और ससुराल भी जाऊंगी…., लेकिन ससुराल वालों को मेरी कीमत से मत नवाजना चाहे पीपल पूजनी पड़े या मीरा स्वरूप में जिदंगी बीतानी पड़ जाए शादी जीवन चलाने के लिए पुरखों द्वारा बनायीं गयी। एक ऐसी सभ्यता है, जो दुनिया भर में है भारत में शादी के समय दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे के परिवार को दिए जाने वाले रूपये, आभूषण, महंगी वस्तुएँ और अचल संपति आदि उपहार में देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है । जिससे बेटियां अपने भविष्य को लेकर निश्चिंत रहे। लेकिन समय के साथ यह परंपरा काफी वीभत्स होकर कुरीति हो गई है जो देश में सुरसा के मुंह की तरह फैली हुई है। यानि सदियों से चली आ रही इस परंपरा का दुरुपयोग भी खूब हो रहा है । लोग दहेज लेने और देने में अपनी शान और ईज्जत समझने लगे है । अगर देखा जाए तो दहेज़ इस समाज के लिए एक अभिशाप बनकर रह गया है। वर्तमान समय में दहेज़ के कारण समाज में ऐसी घटनाएं हो रही है, जो हमारे लिए शर्म की बात है।कईं बार जब लड़की के परिवार वाले शादी में दहेज़ नहीं दे पाते है, तो लड़के वाले रिश्ता ही तोड़ देते है और यदि शादी हो भी जाती है, तो लड़के के परिवार वाले लड़की को दहेज़ के लिए परेशान करते है। बेटियों पर अत्याचार की सीमा उनको जिंदा जलाने तक पंहुच जाती हैं लोगों की मानसिक तो ही बदल चुकी है लड़की को वस्तु की तरह देखा जाता है और उसकी कीमत लगाई जाती है। जिससे एक लड़की पर भावनात्मक असर पड़ता है और वह तनाव में रहने लगती है लेकर बेटी का पिता भी पारिवारिक जिम्मेदारी का हवाला देकर बात को रफा -दफा करने के लिए सहजता के साथ दहेज देने की शर्त मंजूर कर लेता हैं जिससे लोभ में तृप्त समाज की मांग और भी बढ़ जाती है! हैसियत से ज्यादा की होने पर आये दिन प्रताड़ना आत्म हत्या और जिंदा जलाने जैसे मामले देखने सुनने को मिलते है । जो शिक्षित समाज के लिए शर्म की बात है ! इसका मूल कारण यही है कि इससे समाज में उनके परिवार की छवि अच्छी बनती है। इसलिए भले ही कई परिवार इन खर्चों को बर्दाश्त ना कर पाएं पर वे शानदार शादी का प्रबंध करते हैं और दूल्हे तथा उसके रिश्तेदारों को कई उपहार देते हैं। यह इन दिनों एक प्रतियोगिता जैसा हो गया है जहाँ हर कोई दूसरे को हराना चाहता है।सास-ससुर अक्सर उनकी बहू द्वारा लाए गए उपहारों की तुलना उनके आसपास की अन्य दुल्हनों द्वारा लाए गए उपहारों से करते हैं और उन्हें नीचा महसूस कराते हुए व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हैं। लड़कियां अक्सर इस वजह से भावनात्मक रूप से तनाव महसूस करती हैं और मानसिक अवसाद से पीड़ित होती हैं।दुल्हन के परिवार की स्थिति का अनुमान दूल्हे और उसके परिवार को गहने, नकद, कपड़े, संपत्ति, फर्नीचर और अन्य परिसंपत्तियों के रूप में उपहार देने से लगाया जाता है। यह चलन दशकों से प्रचलित है। इसे देश के विभिन्न भागों में परंपरा का नाम दिया गया है और जब शादी जैसा अवसर होता है तो लोग इस परंपरा को नजरअंदाज करने की हिम्मत नहीं कर पाते। लोग इस परंपरा का अंधाधुंध पालन कर रहे हैं हालांकि यह अधिकांश मामलों में दुल्हन के परिवार के लिए कहीं ना कहीं बोझ साबित होती दिखाई पड़ रही है । जबकि बात अगर कानून की दृष्टि से की जाए तो दहेज को एक दंडनीय अपराध है । लेकिन दंडनीय अपराध घोषित करने और कई अभियानों से इस प्रथा को खत्म करने की जागरूकता फैलाने के बाद भी लोगों पर असर नहीं हो रहा है । इसके विपरीत शिक्षित होने के बावजूद इस तरह की मानसिकता के साथ आज भी कई समाज अपनी बहन बेटियों की बलि दे रहे है। लेकिन हमें इस प्रथा को खत्म करने में एक सकारात्मक पहल अवश्य करनी चाहिए । ताकि देहज प्रथा तो खत्म हो ही,साथ ही महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा यातना जैसे मामला भी थम जाए और देश व समाज बेटी पैदा होने पर जश्न मनाए जब एक गर्भ में पल रहा भ्रूण अपनी व्यथा बता सकता है तो बहनों आप तो दुनियादारी समझ चुकी है ना…..!!

 

By Udaipurviews

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