मेवाड़ राजपरिवार के विश्वराज सिंह मेवाड़ का अंगूठा चीर कर रक्त से राजतिलक हुआ

उदयपुर/चित्तौड़गढ़, 25 नवम्बर : चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित फतह प्रकाश महल के प्रांगण में जैसे ही मेवाड़ राजपरिवार के विश्वराज सिंह मेवाड़ का अंगूठा चीर कर रक्त से राजतिलक हुआ, पूरा प्रांगण भगवान एकलिंगनाथ के जयकारों से गूंज उठा। समारोह में मौजूद जनमैदिनी ने वीर शिरामणि महाराणा प्रताप और नए महाराणा के जयकारे भी लगाए। पारम्परिक वाद्य वांक्या और ढोल-मांदल की हर्षध्वनि के बीच चहुंओर से पुष्पवर्षा हुई। वेदपाठी बालकों ने वैदिक ऋचाओं का सस्वर पाठ किया तो लोक गायकों ने मेवाड़ी में मंगलाचार गाया। 21 तोपों की सलामी भी दी गई।
भारत गणराज्य में रियासतों के विलीनीकरण के बाद राजव्यवस्था खत्म होकर लोकतंत्र में तब्दील हो गई, लेकिन क्षेत्रीय मान्यताओं, सांस्कृतिक और भावनात्मक परम्पराओं और राजपरिवार के प्रति लोगों का जुड़ाव फतह प्रकाश पैलेस के प्रांगण में दिखाई दिया। इस अवसर के साक्षी बनने के लिए न केवल मेवाड़ क्षेत्र यानी दक्षिणी राजस्थान, बल्कि देश के विभिन्न कोनों से भी पूर्व राजपरिवारों के सदस्य चित्तौड़गढ़ पहुंचे।
सबसे पहले नजराना पुत्र का : -राजतिलक के उपरांत सबसे पहला नजराना विश्वराज के पुत्र देवजादित्य ने पेश किया। राजपरिवार से जुड़े इतिहासविद डॉ. विवेक भटनागर ने बताया कि पुत्र द्वारा सबसे पहले नजराना दिए जाने की परम्परा पूर्व समय में सम्राट के राज्याभिषेक से जुड़ी हुई है। तत्कालीन महाराणा सांगा उस समय सर्वमान्य सम्राट थे, उनके बाद कोई हिन्दू सम्राट नहीं था, इसलिए मेवाड़ के महाराणाओं को ही उत्तराधिकार में सम्राट का उत्तराधिकार मिलता रहा। इसी कारण इनकी पदवी के साथ ‘आर्य कमल कुल दिवाकर’ लिखा जाता रहा है। इसी परम्परा में अनुसार सबसे पहले नजराना ज्येष्ठ पुत्र पेश करता है, जबकि अन्य राजघरानों में पुत्र दूसरे क्रम पर नजराना पेश करते हैं। अब देवजादित्य भी पूर्व राजपरिवार की परम्परानुसार महाराज कुमार कहलाएंगे। उनके उपरांत 16 उमराव, बत्तीसा सरदार, 84 गोल के सरदारों ने नजराना (उपहार) भी पेश किया। 16 उमराव में तीन बड़ी सादड़ी, देलवाड़ा, गोगुन्दा के झाला परिवार, तीन कोठारिया, बेदला, पारसोली के चौहान परिवार, सलूम्बर, देवगढ़, आमेट, बेगूं के चार चुण्डावत परिवार, भीण्डर, बांसी के दो शक्तावत परिवार, बदनोर, घाणेराव के दो राठौड़ परिवार, कानोड़ के सारंगदेवोत तथा बिजौलिया के पंवार शामिल हैं। राजतिलक के साथ ही वहां पूर्व राजव्यवस्था के अनुरूप दरबार भी लगा।
जनप्रतिनिधि भी बने साक्षी : -दस्तूर समारोह में चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी, विधायक चंद्रभान सिंह आक्या सहित कई स्थानीय जनप्रतिनिधि और गणमान्य शामिल हुए।
बड़ी संख्या में पहुंचा जनजाति समाज : -वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के मुगलों से संघर्ष के साथी रहे वनवासी जनजाति समाज के लोग भी बड़ी संख्या में समारोह में शामिल हुए। उन्होंने न केवल थाली-मांदल से अपना हर्ष व्यक्त किया, बल्कि पुष्प वर्षा से नए महाराणा का अभिनंदन किया।
भोजन में परम्परागत मीठी मैथी : -आयोजन में बड़ी संख्या में आए समाजजनों के लिए परम्परानुसार भोजन की व्यवस्था रही। खास बात यह रही कि चने की दाल, पूड़ी, सब्जी, बेसन की चक्की के साथ परम्परानुसार मैथी दाना की मीठी सब्जी बनी।
उमड़ी भीड़, लगा जाम : -चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित फतह प्रकाश पैलेस के प्रांगण में लगभग 10 हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई। सुरक्षा के लिए चित्तौड़गढ़ पुलिस ने कड़े इंतजाम किए। खासतौर पर यातायात को संभालने के लिए स्वयंसेवक भी लगाए गए। हालांकि, आयोजन में शामिल होने वाली गाड़ियों के लिए विशेष स्टीकर वितरित कर दिए गए थे, जिससे उन्हीं गाड़ियों को आयोजन स्थल की पार्किंग में प्रवेश दिया गया। इसके बावजूद, बड़ी संख्या में पहुंच रहे पैदल और दुपहिया-तिपहिया वाहनों से कई बार यातायात अटका।
जो दृढ़ राखे धर्म को, ताहि राखे करतार
-राजतिलक दस्तूर के बाद महाराणा विश्वराज सिंह ने मेवाड़ के राजमंत्र ‘जो दृढ़ राखे धर्म को, ताहि राखे करतार’ को सभी ग्रंथों का सार बताते हुए कहा, ‘आज आप सभी की भावनाओं और मेरे मन की भावनाओं का वर्णन शब्दों में किया जाना संभव नहीं है। करीब 500 साल बाद चित्तौड़गढ़ का इतिहास बदला है और यहां पर यह दस्तूर हुआ है। मेवाड़ की परम्परा का मान आपको और मुझे साथ मिलकर रखना है। मेवाड़ के मान के लिए जो भी संघर्ष है, वह आप सभी के साथ से ही सफल होगा।‘ उन्होंने अपना संबोधन मेवाड़ी में दिया।
धूणी का महत्व
-प्रयागगिरी महाराज की धूणी का महत्व इसलिए है कि प्रयागगिरी महाराज ने ही महाराणा उदयसिंह को उदयपुर बसाने का स्थान सुझाया था।
मेवाड़ का सेंगोल, चांदी की छड़ी
-सिटी पैलेस में दर्शन के बाद एकलिंगजी मंदिर में ‘रंग दस्तूर’ की रस्म भी होती है, जिसमें नए महाराणा को चांदी की छड़ी कंधे पर धारण कराई जाती है। इसे एक तरह से ‘मेवाड़ का सेंगोल’ कहा जा सकता है। इसे एकलिंगजी के दीवान के रूप में उनके कर्तव्यों का प्रतीक माना जाता है।
मेवाड़ की राजधानी का पुन: स्थानांतरण
-इतिहास में रियासतकाल के दौरान चित्तौड़गढ़ लम्बे समय तक मेवाड़ की प्रमुख राजधानी रहा है। परिस्थितिवश महाराणा उदयसिंह ने राजधानी को उदयपुर में बनाया था। ब्रिटिश शासन से देश की स्वतंत्रता और रियासतों के विलीनीकरण के साथ ही सम्पूर्ण मेवाड़ भी भारत गणराज्य का हिस्सा बना। इसके बाद भी दिवंगत पूर्व महाराणा महेन्द्र सिंह मेवाड़ का दस्तूर उदयपुर के ही सिटी पैलेस के माणक चौक में हुआ था। फतह प्रकाश महल में 493 साल बाद सोमवार 25 नवम्बर 2024 को राजपरिवार के उत्तराधिकार का दस्तूर कार्यक्रम हुआ। राजतिलक दस्तूर के बाद स्वयं विश्वराज सिंह मेवाड़ ने अपने संबोधन में कहा कि 500 साल बाद यहां फिर से ऐसा अवसर आया है, इस पर उनके पास कहने के लिए शब्द नहीं हैं। इस पर इतिहासविदों का कहना है कि संभवत: अब इतिहास के पन्नों में मेवाड़ की राजधानी का पुन: चित्तौड़गढ़ में स्थानांतरण का जिक्र जुड़ेगा। इस संदर्भ में इतिहासविदों का कहना है कि मेवाड़ की सांस्कृतिक, पारम्परिक और भावनात्मक विरासत यही कहती है। मेवाड़ की जनता की भावनाएं आज भी पूर्व राजपरिवार के प्रति गरिमापूर्ण है।
1983 से चल रहा है उदयपुर के पूर्व राजपरिवार में सम्पत्ति विवाद
दरअसल, उदयपुर के पूर्व महाराणा भगवत सिंह (दिवंगत महेन्द्र सिंह मेवाड़ के पिता) ने 1963 से 1983 तक राजघराने की कई सम्पत्तियों को लीज पर दे दिया, तो कुछ सम्पत्तियों में हिस्सेदारी बेच दी। इनमें लेक पैलेस, जग निवास, जग मंदिर, फतह प्रकाश, शिव निवास, गार्डन होटल, सिटी पैलेस म्यूजियम जैसी बेशकीमती सम्पत्तियां शामिल थीं। ये सभी सम्पत्तियां राजघराने द्वारा स्थापित एक कंपनी को ट्रांसफर हो गई थीं। यहीं से विवाद शुरू हुआ।
पिता के फैसले से नाराज होकर महेंद्र सिंह मेवाड़ ने 1983 में पिता भगवत सिंह पर कोर्ट में केस फाइल कर दिया। महेंद्र सिंह ने कोर्ट में कहा कि रूल ऑफ प्रोइमोजेनीचर प्रथा को छोड़कर पैतृक संपत्तियों को सब में बराबर बांटा जाए। दरअसल, रूल ऑफ प्राइमोजेनीचर आजादी के बाद लागू हुआ था, इसका मतलब था कि जो परिवार का बड़ा बेटा होगा, वो राजा बनेगा। स्टेट की सारी संपत्ति उसी के पास होगी। अपने बेटे द्वारा केस फाइल करने से भगवत सिंह नाराज हो गए। भगवत सिंह ने बेटे के केस पर कोर्ट में जवाब दिया कि इन सभी प्रॉपर्टी का हिस्सा नहीं हो सकता। ये इम्पोर्टेबल एस्टेट यानी अविभाजीय है।
भगवत सिंह ने 15 मई 1984 को अपनी वसीयत में संपत्तियों का एग्जीक्यूटर छोटे बेटे अरविंद सिंह को बना दिया। 3 नवंबर 1984 को भगवत सिंह का निधन हो गया। उदयपुर के पूर्व राजपरिवार में पूरा झगड़ा उदयपुर सिटी पैलेस से जुड़ी तीन महत्वपूर्ण सम्पत्तियों पर है। इनमें राजघराने का शाही पैलेस शंभू निवास, बड़ी पाल और घास घर शामिल हैं। प्रॉपर्टी से बाहर करने के बाद महेंद्र सिंह मेवाड़ और उनके छोटे भाई अरविंद सिंह के बीच विवाद खुलकर सामने आ गया। दोनों अलग-अलग हो गए। इसके बाद अरविंद सिंह शंभू निवास और महेंद्र सिंह समोर बाग में रहने लगे।
कोर्ट में 37 साल सुनवाई चलने के बाद उदयपुर की जिला अदालत ने 2020 में फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि जो संपत्तियां भगवत सिंह ने अपने जीवनकाल में बेच दी थीं, उन्हें दावे में शामिल नहीं किया जाएगा। इस फैसले में सिर्फ तीन संपत्तियों शंभू निवास पैलेस, बड़ी पाल और घास घर को बराबर हिस्सों में बांटे जाने की बात कही गई।
कोर्ट ने संपत्ति का एक चौथाई हिस्सा भगवत सिंह, एक चौथाई महेंद्र सिंह, एक चौथाई बहन योगेश्वरी और एक चौथाई अरविंद सिंह को दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने यह कहा कि शंभू निवास पर 1 अप्रैल 2021 से 4-4 साल के लिए महेंद्र मेवाड़, योगेश्वरी और अरविंद सिंह रहेंगे।
अरविंद सिंह मेवाड़ शंभू निवास में 35 साल रह लिए थे। ऐसे में 1 अप्रैल 2021 से चार साल महेंद्र मेवाड़ और चार साल योगेश्वरी देवी को रहने के लिए कहा गया। इस दौरान संपत्तियों के व्यवसायिक उपयोग पर भी कोर्ट ने रोक लगाई। इसके बाद घास घर और बड़ी पाल पर व्यावसायिक कार्यक्रम नहीं किए गए।
उदयपुर कोर्ट के फैसले के खिलाफ 30 अगस्त 2020 को अरविंद सिंह हाईकोर्ट पहुंच गए। उन्होंने 3 अलग-अलग अपील दायर की। पहली अपील अरविंद सिंह ने खुद पार्टी बनते हुए दायर की, दूसरी अपील वसीयत के एग्जीक्यूटर की हैसियत से और तीसरी अपील दादी वीरद कंवर के कानूनी वारिस के रूप में दायर की गई। इस अपील के बाद सभी पक्षों ने सहमति दी कि इस मामले में अभी कोई कार्यवाही नहीं करेंगे।
28 जून 2022 को हाईकोर्ट ने उदयपुर कोर्ट के फैसले और उसे लागू करने पर रोक लगा दी। यह रोक अपीलों के अंतिम निर्णय तक के लिए लगाई गई। इस फैसले के बाद अब शंभू निवास, घास घर और बड़ी पाल अरविंद सिंह के पास ही रह गए।
महेंद्र सिंह के अधिवक्ता के अनुसार हाईकोर्ट द्वारा प्रॉपर्टी अलाइनमेंट पर जो रोक लगी थी, वह जारी रहेगी। इसके तहत प्रॉपर्टीज बेची नहीं जा सकती, थर्ड पार्टी गिरवी नहीं रख सकते, किसी को हैंडओवर, डेस्ट्रॉय या लीज पर नहीं दे सकते। साथ ही प्रॉपर्टी के उपयोग से जुड़े अकाउंट्स भी कोर्ट में पेश करने होंगे।

 

 

By Udaipurviews

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