जहां जलते अंगारों पर चलते हैं लोग, पत्थर-टमाटरों से खेली जाती है राड़!
जुगल कलाल
डूंगरपुर, 11 मार्च : होली का पर्व देशभर में उल्लास और रंगों के साथ मनाया जाता है, लेकिन सागवाड़ा उपखंड क्षेत्र में यह त्योहार अपने अनूठे पारंपरिक आयोजनों के लिए प्रसिद्ध है। यहां होली का जश्न आठ दिन पहले ही शुरू हो जाता है और इसका उत्साह सप्ताहभर बाद भी बरकरार रहता है। सागवाड़ा की होली में परंपराओं का ऐसा संगम देखने को मिलता है, जो कहीं और दुर्लभ है। कोकापुर में दहकते अंगारों पर चलने की परंपरा, भीलूड़ा में पत्थरों की राड़, सागवाड़ा नगर में टमाटरों की राड़, जेठाणा में गैर नृत्य, ओबरी में फुतरा पंचमी और ढूंढ रस्म – ये परंपराएं न केवल स्थानीय लोगों को रोमांचित करती हैं, बल्कि विदेशों में बसे प्रवासी भी इस दौरान अपने गांव लौट आते हैं।
ढूंढोत्सव: नवजात के लिए मंगलकामना : होली पर ढूंढोत्सव का विशेष महत्व है। इस परंपरा के तहत परिवार में जन्मे शिशु की पहली होली पर उसे माता-पिता और परिजनों के साथ होलिका दहन स्थल पर ले जाया जाता है। वहां पूजन और प्रदक्षिणा करवाई जाती है। मान्यता है कि होली की पवित्र अग्नि की तपन से नवजात का जीवन निरोगी और दीर्घायु होता है।
गांवों में गूंजता कुंडी-ढोल, राड़ का रोमांच : होली से करीब एक माह पूर्व ही गांवों में कुंडी-ढोल की गूंज सुनाई देने लगती है। हर शाम गांव के चौक-चौराहों पर युवक परंपरागत वाद्य यंत्रों की थाप पर गैर नृत्य करते हैं। फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा को रंगों की मस्ती के बीच दो टोलियां एक-दूसरे पर कंडे (गोबर के उपले) बरसाकर राड़ खेलती हैं। यह खेल न केवल कौशल, बल्कि सहनशक्ति की भी परीक्षा लेता है।
सागवाड़ा की टमाटर राड़: रोमांच और उत्साह से भरी परंपरा : सागवाड़ा नगर में होली के दूज से लेकर दशमी तक कंडों की राड़ खेली जाती है। नेहरू पार्क के सामने आदिवासी समाज के युवाओं द्वारा खेले जाने वाली यह परंपरा बेहद खास होती है। टमाटर की राड़ भी इस त्योहार का आकर्षण होती है, जिसमें लोग एक-दूसरे पर टमाटर फेंककर होली का आनंद लेते हैं।
कोकापुर: दहकते अंगारों पर चलने की अद्भुत परंपरा : कोकापुर की होली में एक ऐसा नजारा देखने को मिलता है, जो हर किसी को अचंभित कर देता है। होली दहन के अगले दिन गांव के बुजुर्ग और युवा जलते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं। यह आत्मविश्वास, आस्था और साहस का अद्भुत प्रदर्शन होता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
भीलूड़ा: पत्थरों की राड़ का अद्भुत नजारा : भीलूड़ा में रघुनाथजी मंदिर के पास होली के अगले दिन खेली जाने वाली पत्थरों की राड़ पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है। इस खेल में दो टोलियां गोफण (गुलेल) से एक-दूसरे पर पत्थर बरसाती हैं। कई लोग इसमें घायल भी होते हैं, लेकिन इसके बावजूद वर्षों पुरानी यह परंपरा आज भी जीवंत है।
सरौदा की मिठास: हर घर में बंटता है गुड़ : सरौदा में होली की खुशी को अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। संतान प्राप्ति की खुशी में हर घर से एक-एक किलो गुड़ बांटा जाता है, जिससे यह त्योहार और भी मधुर हो जाता है।