उदयपुर की प्रसिद्ध झीलें: एक पुकार जागरूकता की

उदयपुर, जिसे “झीलों की नगरी” के नाम से जाना जाता है, सदियों से अपने सुंदर जल निकायों के कारण एक पर्यटन केंद्र रहा है। इन झीलों का न केवल ऐतिहासिक महत्व है, बल्कि उदयपुर की आत्मा और अस्तित्व इन्हीं से जुड़ा हुआ है। झीलों का निर्माण महाराणा उदय सिंह द्वारा किया गया था, जिन्होंने पिछोला झील के किनारे इस शहर की स्थापना की। कालांतर में फतेहसागर, स्वरूप सागर, रंग सागर, बड़ी और उदयसागर जैसी झीलों का निर्माण हुआ, जो शहर के जल प्रबंधन और सौंदर्य को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती रहीं। विभिन्न महाराणाओं ने अपने समय में इन झीलों में विकास कार्य कराए और बांध बनाए।

लेकिन आज ये झीलें अपनी प्राचीन महिमा खो रही हैं। जिस जल को हम जीवनदायी मानते हैं, वह आज हमारे लिए खतरे की घंटी बन गया है। क्या हम सच में ‘जल देवता’ की उपेक्षा कर रहे हैं? 2024 में, जब भारत विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर है, क्या हम उदयपुर की आत्मा, हमारी झीलों की दुर्दशा को नजरअंदाज कर रहे हैं?

पाँच तत्वों में जल का महत्व:  
प्रकृति के पाँच तत्व—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश—हमारे अस्तित्व का मूल आधार हैं। इनमें से जल सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह जीवन का आधार है। उदयपुर की झीलें इस शहर के लिए केवल पानी का स्रोत नहीं हैं, बल्कि ये हमारी सभ्यता, संस्कृति, और समृद्धि का प्रतीक हैं। लेकिन, क्या हम इन झीलों की रक्षा करने के लिए तत्पर हैं?

झीलों की वर्तमान स्थिति:  
आज उदयपुर की झीलें गंदगी, कचरे, प्लास्टिक, और अवशिष्ट से भरी पड़ी हैं। इनमें सीवेज का बहाव सीधे जाता है, जो इन झीलों के पानी को जहरीला बना रहा है। सोचिए, जिस पानी से हमारा जीवन चलता है, वह अब पीने योग्य भी नहीं रह गया है। फतेहसागर, पिछोला, स्वरूप सागर—ये सभी झीलें कभी स्वच्छ और निर्मल थीं, लेकिन आज इनका पानी प्रदूषित और संक्रमित हो चुका है। क्या हम इस संकट को नजरअंदाज कर सकते हैं?

समाज और प्रशासन की भूमिका:  
आज हम एक समाज के रूप में और हमारी प्रशासनिक व्यवस्था इस संकट के प्रति उदासीन दिखाई देती है। हम अपनी झीलों की सफाई, संरक्षण और सुरक्षा के लिए क्या कर रहे हैं? क्या हम इस गंदगी और सीवेज के प्रवाह को रोकने के लिए ठोस कदम उठा रहे हैं? झीलों में डाला जा रहा कचरा और अपशिष्ट हमारे पानी की गुणवत्ता को नष्ट कर रहा है, और इसके परिणामस्वरूप आने वाले समय में हमें गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।

क्या हम जाग चुके हैं?  
एक सवाल है जो हमें खुद से पूछना चाहिए—क्या हम जाग चुके हैं? एक शहर के रूप में, एक नागरिक के रूप में, और एक समाज के रूप में, क्या हम अपनी झीलों को बचाने के लिए एकजुट होकर काम कर रहे हैं? या हम केवल विकास की बड़ी योजनाओं में उलझ कर अपनी विरासत को खो रहे हैं? यदि हम आज नहीं जागे, तो कल बहुत देर हो जाएगी।

पर्यटन पर प्रभाव:  
उदयपुर की झीलें न केवल हमारे लिए जल का स्रोत हैं, बल्कि ये हमारे पर्यटन उद्योग की भी रीढ़ हैं। हर साल लाखों पर्यटक यहां की प्राकृतिक सुंदरता को देखने आते हैं। यदि हमारी झीलें दूषित हो जाएंगी, तो यह पर्यटन पर भारी नकारात्मक प्रभाव डालेगा। यह न केवल उदयपुर की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाएगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाएगा। हमें यह समझना होगा कि झीलों की दुर्दशा केवल हमारे स्वास्थ्य को ही नहीं बल्कि हमारे शहर के आर्थिक भविष्य को भी खतरे में डाल रही है।

अब वक्त है जागने का:  
समय आ गया है कि हम इस मुद्दे पर ठोस कार्रवाई करें। हमें अपनी झीलों की सफाई और संरक्षण के लिए एकजुट होना होगा। सोशल मीडिया पर सक्रिय हों, जागरूकता फैलाएं और प्रशासन और नेताओं से सवाल पूछें। अगर हम सच में “पूर्व का वेनिस” कहलाना चाहते हैं, तो यह केवल कागजों पर नहीं बल्कि हकीकत में होना चाहिए। जब सभी नागरिक एकजुट होंगे, तो एक बदलाव अवश्य आएगा।

हम सभी के छोटे-छोटे प्रयास मिलकर इस संकट को टाल सकते हैं। यह समय है सोते से जागने का और अपने शहर की आत्मा को बचाने का। हमें जल की शक्ति को समझना होगा और उसे सम्मान देना होगा, क्योंकि यही हमारे अस्तित्व की कुंजी है। यदि हम आज नहीं जागे, तो कल हमारे पास पछतावे के सिवा कुछ नहीं बचेगा। तो आइए, इस महाअभियान का हिस्सा बनें और उदयपुर की झीलों को पुनः स्वच्छ और सुंदर बनाएं। हमारी डबल इंजन सरकार हमारी ज़रूर सुनेगी और हम मिलकर एकजुट होकर यह मुद्दा उठाएंगे।

सजग हों, सक्रिय हों, और एकजुट हों—उदयपुर की झीलें आपका आह्वान कर रही हैं! आइए इस दिवाली एक नई कहानी लिखें, ‘उदयपुर की झीलों का सर्वांगीण विकास’।

यशवर्धन राणावत  
उपाध्यक्ष, होटल एसोसिएशन उदयपुर
चार्टर अध्यक्ष, बीसीआई टूरिज़म
संगठन सचिव, मेवाड़ क्षत्रिय महासभा संस्थान

By Udaipurviews

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