उदयपुर: साधुमार्गी शान्त-क्रान्ति संघ का दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन आज से, देशभर से आएंगे श्रावक-श्राविकाएं

उदयपुर, 15 अक्टूबर। केशवनगर स्थित आत्मोदय वर्षावास में हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. की निश्रा में आगामी 16 एवं 17 अक्टूबर को श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी शान्त-क्रान्ति जैन श्रावक संघ का 28वां राष्ट्रीय अधिवेशन अरिहंत वाटिका में आयोजित होगा।
श्रीसंघ अध्यक्ष इंदर सिंह मेहता ने बताया कि 28वें राष्ट्रीय अधिवेशन के मुख्य अतिथि लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ होंगे, वहीं ध्वजारोहणकर्ता सेवानिवृत्त डीजी भूपेन्द्र दक, मुख्य वक्ता चकोर गांधी पूना, समारोह गौरव राजू एम. बोरा इलकल होंगे, कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय अध्यक्ष राजू भूरट करेंगे एवं नगर निगम उप महापौर पारस सिंघवी, समाजसेवी भूपेन्द्र बाबेल, प्रताप सिंह खमेसरा, विजय सिंह लोढ़ा, यशवंत आंचलिया एवं श्यामसुंदर मारू विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगे। दो दिवसीय अधिवेशन में श्रावक संघ, महिला संघ एवं युवा संघ की मीटिंग के साथ ही पूरे भारत वर्ष से धर्म, त्याग-तपस्या एवं विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट उपलब्धि प्राप्त नवरत्नों का चयन कर उन्हें संघ नवरत्न अलंकरण प्रदान किया जाएगा। इस अवसर पर संयत परिजन एवं अन्य संघ समर्पित सदस्यों का भी बहुमान किया जाएगा। श्रीसंघ मंत्री पुष्पेन्द्र बड़ाला ने बताया कि अधिवेशन को लेकर सारी तैयारियां कर ली गई है। पूरे देश से लगभग तीन से चार हजार श्रावक-श्राविकाओं के अधिवेशन में भाग लेने हेतु झीलों की नगरी में आने की संभावना है। अधिवेशन में नये आयाम के साथ इसे भव्य बनाने को लेकर पूरी टीम दिन-रात लगी हुई है और इसे लेकर सभी में उत्साह का माहौल बना हुआ है।
मंगलवार को आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि जिनके राग, द्वेष, मोह और अज्ञान नष्ट हो गए हैं ऐसे आप्त पुरूषों की आज्ञा से जो नवतत्वों पर रूचि रखता है वह आज्ञा रूचि है। मानव तीन तरह के होते हैं-संज्ञा प्रधान, प्रज्ञा प्रधान एवं आज्ञा प्रधान। आहारादि दस संज्ञा प्रधान जीवन जीने वाले अज्ञ कहलाते हैं। जो इन संज्ञाओं की व्यर्थता को समझ कर विवेकपूर्वक जीवन जीते हैं वे प्रज्ञा प्रधान हैं। जो अपनी गुरू की आज्ञा का पालन करते हुए जीवन जीते हैं वे आज्ञा प्रधान कहलाते हैं। वास्तव में मोह ही सभी समस्याओं का मूल है, जिसके कारण भोग बुद्धि बढ़ती है, इसके चलते आश्रव, प्रमाद आदि बढ़ते हैं। भोग बुद्धि का त्याग व्यक्ति को पावरफुल बना देता है। भोग बुद्धि का त्याग करने पर आज्ञा रूचि में प्रवेश हो जाता है। इसलिए कहा है-जो त्यागे सो आगे। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने कहा कि जब धर्म आत्मा व हृदय के अन्दर होता है तो व्यक्ति चाहे धर्मस्थल में हो, घर या दुकान में हो तो भी धर्म कर सकता है। आज व्यक्ति सांसारिक रिश्तों एवं भौतिक वस्तुओं का दास बन गया है, ऐसा व्यक्ति धर्म से दूर हो जाता है। संवर और निर्जरा धर्म है। यदि व्यक्ति पाप बांधने से बचे एवं बंधे हुए कर्मों को खपाने के लिए तप-त्याग करे तो जीवन संवर सकता है। तपस्वीरत्न श्री विश्वास मुनि जी म.सा. ने भी सभा को सम्बोधित किया।

By Udaipurviews

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