दुग्धाभिषेक के साथ महाराणा प्रताप को जयंती पर नमन

-प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’
उदयपुर, 9 जून। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जयंती पर उदयपुर के प्रताप गौरव केंद्र राष्ट्रीय तीर्थ में 57 फीट ऊंची महाराणा प्रताप की बैठक प्रतिमा का प्रातः वेला में दुग्धाभिषेक किया गया। दुग्धाभिषेक व पुष्पांजलि नमन के साथ ही केन्द्र में जयंती के दिन भर के होने वाले कार्यक्रमों का आरंभ हुआ।
प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने बताया कि इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक निंबाराम का मुख्य आतिथ्य रहा। उन्होंने महाराणा प्रताप की प्रतिमा के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की और सभी से महाराणा प्रताप के जीवन से प्रेरणा लेने के साथ उनके जीवन के हर पहलू पर गहन शोध की आवश्यकता भी बताई। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप शूरवीर योद्धा ही नहीं, अपितु कुशल प्रशासक, कला साधक, लोकहित के दूरदृष्टा, अर्थशास्त्री, कृषि विकास के चिंतक थे। इन सभी क्षेत्रों में उनके योगदान को रेखांकित किया जाना चाहिए।
महाराणा प्रताप जयंती समारोह के संयोजक सीए महावीर चपलोत ने बताया कि इस अवसर पर जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के अध्यक्ष भगवती प्रकाश शर्मा, महामंत्री पवन शर्मा, कोषाध्यक्ष अशोक पुरोहित, प्रचार मंत्री जयदीप आमेटा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र कार्यकारिणी सदस्य हनुमान सिंह राठौड़, विभाग संघचालक हेमेन्द्र श्रीमाली, महानगर संघचालक गोविन्द अग्रवाल, उदयपुर ग्रामीण विधायक फूल सिंह मीणा, महापौर गोविन्द सिंह टांक, उपमहापौर पारस सिंघवी सहित कई गणमान्यजन उपस्थित थे।

सभ्यता बाजार से और संस्कृति आत्मा से जुड़ी होती है – अरुणकांत
-प्रताप गौरव केन्द्र में राष्ट्रीय कला कार्यशाला की मास्टर क्लास
भारतीय कला में सांस्कृतिक राष्ट्र दृष्टि पर विशेष व्याख्यान  
उदयपुर, 9 जून। सभ्यता बाजार से जुड़ी होती है और संस्कृति आत्मा से जुड़ी होती है। और संस्कृति हमारी कलाओं में दृष्टिगोचर होती है। भारतीय कला दृष्टि जीवन का अभिन्न अंग रही है।
यह बात संस्कार भारती के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य तथा संगीत विधा प्रमुख अरुण कांत ने रविवार को यहां प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ में चल रहे महाराणा प्रताप जयंती समारोह के तहत ‘भारतीय कला में सांस्कृतिक राष्ट्र दृष्टि’ विषयक विशेष व्याख्यान में कही।
उन्होंने कहा कि जीवन की सहजता कला का अंग है। जब हम कलाओं का नाम लेते है तो सबसे पहले वेदों की ओर ध्यान जाता है। हम मूलतः ललित कला की 5 विधाओं से परिचित हैं। अथर्ववेद में 64 कलाओं का वर्णन है। गहराई में जाकर विचार करेंगे तो भारतीय कलाओं में सर्वकल्याण का संदेश प्रतिपादित होगा।
अयोध्या में प्रतिष्ठापित भगवान रामलला का चित्र स्वरूप बनाने वाले डॉ. सुनील विश्वकर्मा भी मंचासीन थे। उन्होंने ‘चोरी भी एक कला है’ विषय परएक चोर की कहानी सुनाते हुए कहा कि कला की नकारात्मकता के बजाय सकारात्मकता की ओर बढ़ना भारतीय संस्कृति का बोध है। भारतीय संस्कृति में कला को जीवन कल्याण का मार्ग कहा गया है। कला मान-अभिमान व अन्य विकारों से विमुक्त करती है।
उन्होंने कहा कि वे उस जगह से आए हैं जहां प्रसिद्ध कवि श्यामनारायण पांडेय ने महाराणा प्रताप की तलवार की ख्याति पर अपनी रचना लिखी है।
डॉ. विश्वकर्मा ने अपनी चीन यात्रा के संस्मरणों को सुनाते हुए कहा कि चीनी प्रोफेसर भारतीय चित्रकला का मजाक उड़ा रहे थे, तब विश्वकर्मा ने उन्हें एक चुनौती दी, जिसे चीनी प्रोफेसर पूरा नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि भारतीय चित्रकला में वे सभी विधाएं हैं जो किसी भी विषय वस्तु का जीवंत चित्रण कर सकती हैं।
उन्होंने कहा कि जहां ग्रंथ किसी विषय को समझाने में कमजोर रह जाते हैं, वहां उनका चित्ररूप उस विषय को सहजता से समझा देता है। आज भी यह बात नन्हें बालकों की आरंभिक शिक्षा में अक्षरशः लागू होती है। डॉ. विश्वकर्मा ने व्याख्यान के दौरान मात्र 30 मिनट में एक्रिलिक कलर से लाइव डेमो देते हुए महाराणा प्रताप की पेंटिंग भी बनाई।
व्याख्यान के आरंभ में संस्कार भारती उदयपुर के अध्यक्ष व सुखाड़िया विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट प्रोफेसर मदन सिंह राठौड़ ने दोनों अतिथियों का स्वागत किया और परिचय दिया।

भाषा, भूषा और भावना से बनता है भारत – ईश्वरशरण विश्वकर्मा
-प्रताप गौरव केन्द्र में महाराणा प्रताप जयंती समारोह
-‘भारतीय परम्परा में जीवंत भारत’ पर विशेष व्याख्यान
उदयपुर, 9 जून। भाषा संस्कृति की जननी है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में पौराणिक काल से ब्राह्मी और संस्कृत का व्याप रहा है। यही वजह है कि भारतवर्ष में सांस्कृतिक और संस्कारिक समानता – समरूपता के दर्शन होते हैं। भाषा, भूषा और भावना से भारत बनता है।
यह बात रविवार को यहां प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ में चल रहे महाराणा प्रताप जयंती समारोह के तहत आयोजित ‘भारतीय परम्परा में जीवंत भारत’ विषयक विशेष व्याख्यान में इतिहासविदों और पुराविदों ने कही। सभी ने साररूप से इस बात को प्रतिपादित किया कि विश्व में भारत श्रेष्ठतम है।
व्याख्यान में भारतीय इतिहास संकलन योजना के कार्यकारी अध्यक्ष ईश्वरशरण विश्वकर्मा ने कहा कि भारत ऐसी अद्भुत भूमि है जहां विभिन्न संस्कृतियों की झलक, भाषाओं की विभिन्नता, खान-पान, रीतियां, नीतियां हैं और यही सब भारतभूमि को महान बनाती है।
उन्होंने बताया कि एक सेमिनार हुआ जिसमें भाषायी विषयक बहस हुई। भाषायी षड्यंत्रों पर चर्चा हुई। अंत में यही निष्कर्ष निकला कि विश्व की सभी भाषाओं के मूल में भारत का योगदान रहा है। भारत से ही भाषाओं का प्रवाह बाहर चला।
उन्होंने कहा कि भाषा विज्ञान, भाषा शास्त्र, भाषा विधा के आधार पर यदि भारत को जानना है तो भाषायी स्वरूप को समझना होगा। मैक्समूलर ने जब इस पर काम किया तो उसने कहा कि दुनिया की प्राचीनतम भाषाओं में संस्कृत समृद्ध भाषा है। जीवन के सारे आयाम इस भाषा में प्रस्फुटित होते हैं। भाषा, भूषा और भावना से भारत बनता है।
उन्होंने कहा कि जो मनस्वी होते हैं उनकी दो वृत्तियां होती हैं। फूल को जहब तोड़ा जाता है तो किसी पावन उद्देश्य के लिए समर्पित होता है। यदि नहीं तोड़ा जाता तो बीज बनता है और पल्लवित होकर फल का रूप प्राप्त कर पुनः किसी के काम आता है। इसी तरह, जीवन की दो वृत्तियां हैं, रण में व वन में। संस्कृति के तीन तत्व हैं, विचार, वाणी व व्यवहार।
व्याख्यान में दक्कन कॉलेज पूना के सहायक प्राचार्य अभिजीत दांडेकर व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक टीएस रविशंकर ने भी विचार रखे। संयोजक डॉ. विवेक भटनागर ने बताया कि विषय विशेषज्ञों का स्वागत इतिहास संकलन समिति राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्रीय संगठन मंत्री छगनलाल बोहरा व वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के जयदीप आमेटा ने अतिथियों का स्वागत किया।

बेस्ट स्टोरी टेलर तो हमारी दादी-नानी हुआ करती थीं – गोस्वामी
-कथा कथन पर ‘धरती से जुड़ी कहानियां’ विषयक सेमिनार में कहा वक्ताओं ने
-प्रताप गौरव केन्द्र महाराणा प्रताप जयंती समारोह
उदयपुर, 9 जून। बेस्ट स्टोरी टेलर तो हमारी दादी-नानी हुआ करती थीं। आज स्टोरी टेलिंग को कमर्शियल रूप दे दिया गया है। कहानियां तो हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं। दशामाता व्रत कथा हो या वट सावित्री की व्रत कथा, हमारी माताओं में कहानी कहने और सुनने का परम्परागत चलन है और उन्हें सीखने के लिए किसी विशेषज्ञ के पास नहीं जाना पड़ता, बुजुर्ग माताएं ही उनकी गुरु होती हैं।
यह बात रविवार को यहां प्रताप गौरव केन्द्र राष्ट्रीय तीर्थ में कथा कथन पर विशेष व्याख्यान ‘धरती से जुड़ी कहानियां’ में उभरकर आईं। जाने-माने स्टोरी टेलर सुशील गोस्वामी ने कहा कि आप एक अच्छे कहानीकार बन सकते हैं यदि आपके मन में कहानी लिखने व कहने का जज्बा हो। कहानियां तो बिखरी पड़ी हैं, उसमें से कहानी कैसे निकालें, इसके लिए कुछ जरूरी बातों को सीखना जरूरी है।
तेलुगू फिल्मों के अभिनेता-निर्देशक आदित्य ओम ने कहा कि इंसान के बनने की भी एक कहानी है। कहानियां लोगों में बदलाव लाती है, लोगों को जिम्मेदार बनाती हैं। कहानियों से ही जन-जन में प्रेरक संदेश प्रचारित होते हैं। उन्होंने कहा कि प्रताप गौरव केन्द्र का बनाया जाना भी एक कहानी है। कहानियों में संवेदनाओं का विशेष स्थान होना चाहिए।
कथा कथन कार्यशाला संयोजक गौरीकांत शर्मा ने बताया कि सुशील गोस्वामी, आदित्य ओम के सत्र को निधीश गोयल ने संचालित किया। उन्होंनेे स्टोरी टेलिंग के विभिन्न पहलुओं पर विचार रखे और कहानियां भी सुनाईं। आरंभ में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के महामंत्री पवन शर्मा ने सभी का सम्मान किया।

ऐतिहासिक तथ्यों की फिल्मों में व्यावसायिकता कम, शोध ज्यादा जरूरी – चाणक्य
-शॉर्ट फिल्म कार्यशाला की मास्टर क्लास में डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी और अशोक बांठिया प्रतिभागियों से हुए रू-ब-रू
उदयपुर, 9 जून। प्रसिद्ध चाणक्य धारावाहिक के लेखक-निर्माता-निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि व्यावसायिकता के चलते ऐतिहासिक तथ्यों पर बनने वाली कहानियों और उनके फिल्मांकन के साथ समझौता कर लिया जाता है, ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐतिहासिक तथ्यों की फिल्मों में व्यावसायिकता के बजाय शोध पर ज्यादा समय दिया जाना चाहिए।
वे रविवार को यहां प्रताप गौरव केन्द्र में चल रहे महाराणा प्रताप जयंती समारोह के तहत ‘सिनेमा और भारतीय विमर्श’ विषयक विशेष व्याख्यान में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि चाणक्य धारावाहिक बनाने के लिए उन्होंने शोध पर समय दिया और उसका प्रस्तुतीकरण वैसा ही किया जैसा उस समय की संस्कृति थी। आजकल ऐतिहासिक फिल्मों में भी आधुनिकता का इतना मिश्रण है कि कई दृश्यों पर तार्किकता की तलवार खड़ी हो जाती है।
व्याख्यान में अशोक बांठिया ने राजस्थान और राजस्थानी फिल्मों के पिछड़ने के कारणों पर चर्चा करते हुए कहा कि फिल्म निर्माता सोचते हिन्दी में हैं, बनाते राजस्थानी में हैं, इस कारण राजस्थानी परिवेश का अहसास फिल्म के प्रस्तुतीकरण में नहीं हो पाता। शॉर्ट फिल्मों की तरफ बढ़ते युवा रुझान पर उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में भी राजस्थानी का प्रतिशत काफी कम नजर आता है, युवाओं को इस दिशा में भी राजस्थानी परिवेश को लेकर अवसर तलाशने चाहिए। सोशल मीडिया के उपयोग से राजस्थानी बचेगी भी और सुदृढ़ भी होगी।
संयोजक डॉ. सतीश अग्रवाल ने बताया कि इस सत्र के संचालक लेखक-निर्देशक-टीवी प्रस्तोता अतुल गंगवार थे। अतिथियों का स्वागत महाराणा प्रताप जयंती समारोह के संयोजक सीए महावीर चपलोत ने किया।

प्रताप जैसे समर्पण के लिए राष्ट्रीयता का भाव प्रबल होना जरूरी – राठौड़
-प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ के महाराणा प्रताप जयंती समारोह के समापन सत्र में मुख्य वक्ता ने किया आह्वान
उदयपुर, 9 जून। महाराणा प्रताप जैसे सर्वस्व समर्पण की भावना के लिए राष्ट्रीयता का भाव प्रबल होना जरूरी है। इस दिशा में प्रताप गौरव केन्द्र उल्लेखनीय कार्य कर रहा है और ऐसे केन्द्रों की और आवश्यकता है।
यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र की कार्यकारिणी के सदस्य हनुमान सिंह राठौड़ ने यहां प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ की ओर से आयोजित महाराणा प्रताप जयंती समारोह के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप को इसलिए याद नहीं किया जाना चाहिए कि उन्होंने हल्दीघाटी का युद्ध किया, बल्कि उन्हें इसलिए याद किया जाना चाहिए कि उन्होंने राष्ट्र की अस्मिता और संस्कृति के रक्षण के लिए राजमहल छोड़े, राजसी बिछौना छोड़ा, पत्तलों में भोजन किया।
राठौड़ ने कहा कि भारत वर्तमान में अपने सांस्कृतिक और राष्ट्रभाव से विचलित है, नई पीढ़ी में सांस्कृतिक राष्ट्रभाव को स्थापित करने के लिए हमें प्रताप गौरव केन्द्र जैसे राष्ट्र के प्रति प्रेरणा देने वाले स्थलों द्वारा किए जाने वाले प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए।
प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने बताया कि समापन सत्र में पांचों कार्यशालाओं के दो-दो प्रतिभागियों ने अनुभव कथन प्रस्तुत किए। समापन सत्र में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के अध्यक्ष डॉ. भगवती प्रकाश शर्मा, महामंत्री पवन शर्मा मंचासीन थे। संचालन समिति के सदस्य अनिल कोठारी ने किया। महाराणा प्रताप जयंती समारोह के संयोजक सीए महावीर चपलोत ने अतिथियों सहित समारोह में सहयोग प्रदान करने वाले सहयोगियों, स्वेच्छा से प्रबंध व्यवस्था से जुड़ने वाले स्वयंसेवकों, समय प्रदान करने वाले अनुदेशकों, बाहर से आए विषय विशेषज्ञों, पत्रकार साथियों सहित समारोह में पधारे गणमान्य शहरवासियों का आभार व्यक्त किया।

‘मैं ताजों के लिए समर्पण वंदन गीत नही गाता’
-महाराणा प्रताप जयंती पर प्रताप गौरव केन्द्र में खूब जमा कवि सम्मेलन
-वीर रस से ओत प्रोत रचनाओं ने श्रोताओं में भरा जोश
उदयपुर, 9 जून। प्रताप गौरव केन्द्र का परिसर और उसके आसपास टाइगर हिल की पहाड़ियां ‘राणा की जय-जय, शिवा की जय-जय’ से गूंज उठीं। अवसर था महाराणा प्रताप जयंती पर आयोजित ‘जो दृढ़ राखे धर्म को’ कवि सम्मेलन का। जैसे ही देश भर में वीर रस के प्रख्यात कवि डॉ. हरिओम सिंह पंवार ने ‘मैं ताजों के लिए समर्पण वंदन गीत नही गाता’ पंक्तियों को अपनी ओजस्वी आवाज दी, त्यों ही श्रोताओं ने पाण्डाल को भारत माता के जयकारों से गुंजा दिया।
सरस्वती वंदना और महाराणा प्रताप को नमन के साथ शुरू हुए कवि सम्मेलन में डॉ. हरिओम सिंह पंवार ने ‘मैं ताजों के लिए समर्पण वंदन गीत नही गाता, दरबारों के लिए कभी अभिनन्दन गीत नहीं गाता, गौण भले हो जाऊं लेकिन मौन नहीं हो सकता मैं, पुत्र मोह में शस्त्र त्यागकर द्रोण नहीं हो सकता मैं, मैं शब्दों की क्रांति ज्वाल हूं वर्तमान को गाऊंगा, जिस दिन मेरी आग बुझेगी मैं उस दिन मर जाऊंगा’ सुनाकर श्रोताओं में देशभक्ति का ज्वार भर दिया।
कवि किशोर पारीक ‘किशोर’ ने ‘स्वाभिमान के प्रबल प्रवर्तक, हिन्दू गौरव के उद्घोषक, जन्म जयन्ती पर राणा की श्रद्धा से, सारा भारत है नत मस्तक और ‘उस मेवाड़ी समरांगण में, चेतक के बलिदानी प्रण में, महाराणा का त्याग आज भी जिंदा है, हल्दीघाटी के कण कण में’ सुनाकर श्रोताओं की दाद लूटी।
कवयित्री मनु वैशाली ने ‘जौहर-कुण्डों, घास-रोटियों, बलिदानी परिपाटी को, वीर प्रसूता, स्वर्णिम धोरे, पावन हल्दीघाटी को, राजपुतानी, राजस्थानी, शान बान राणाओं की, सौ-सौ नमन निवेदित है इस धन्य मेवाड़ी माटी को’ सुनाकर भक्ति और शक्ति की धरा को नमन किया।
कवि बृजराज सिंह जगावत ‘हिंदुआ एक सूरज है तो ये इतिहास ज़िंदा है, अटल प्रण की धरा मेवाड़ स्वाभिमान जिंदा है’ सुनाकर प्रताप के स्वाभिमान की व्याख्या की। कवयित्री शिवांगी सिंह सिकरवार ‘नयनों से जी भर तुम्हें देखती हूं, चरणों के दर्शन से धन्य रहती हूं, क्या क्या मैं मांगू, और क्या न मांगू, श्रीनाथ तुमसे तुम्हें मांगती हूं’ सुनाते हुए माहौल में भक्ति रस घोल दिया।
जयपुर से आए कवि अशोक चारण ने ‘नयनों में ख़ून उतारा होठों पर हुंकार उठा ली, चेतक ने टाप भरी राणा ने भी तलवार उठा ली’ सुनाकर दिवेर युद्ध का दृश्य जीवंत कर दिया। कवि सुदीप भोला ने ‘बन गया मंदिर परमानेंट बन गया मंदिर परमानेंट, वहीं बना है जहां लगा था राम लला का टेंट, कारसेवकों ने दिखलाया था अपना टैलेंट, राम लला क़सम निभा दी हमने सौ परसेंट, जिसको भी करना है आकर कर ले आर्ग्युमेंट,, चौबीस में केसरिया रंग जाएगी पार्लियामेंट, ज्ञान वापी में पूजा होगी आया है जजमेंट, मथुरा के भी लगे हुए हैं कोर्ट में डॉक्यूमेंट’ सुनाकर दर्शकों को तुकबंदी से गुदगुदाया।
कवि सम्मेलन का संचालन कर रहे उदयपुर के कवि राव अजातशत्रु ने ‘रण चंडी बन दोधारी पल में दृश्य भयंकर करती थी, खप्पर में आज भवानी के श्रोणित की मदिरा भरती थी, मृत्यु का तांडव देख देख खुशियों का रंग उड़ जाता था, जिस ओर मुड़े राणा बिजली सा काल उधर मुड़ जाता था’ सुनाकर महाराणा प्रताप की शत्रुओं पर चढ़ाई की आक्रामकता का दर्शन कराया।
आरंभ में कवि किशोर पारीक ने सभी कवियों का परिचय कराया और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के पदाधिकारियों ने कवियों का सम्मान किया।

By Udaipurviews

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