उदयपुर। सेक्टर 4 श्री संघ में विराजित श्रमण संघीय जैन दिवाकरिया महासाध्वी डॉ. संयमलता म. सा.,डॉ. अमितप्रज्ञाजी म. सा.,कमलप्रज्ञाजी म. सा.,सौरभप्रज्ञा म. सा. आदि ठाणा 4 के सानिध्य में धर्म सभा को संबोधित करते हुए महासती संयमलता ने कहा कि तीन गुणव्रत पांच अणुव्रत में शक्ति का संचार करते हैं,उनमें विशेषता पैदा करते हैं, उनके परिपालन में होने वाली कठिनाइयों को दूर करते हैं।
साध्वी ने आगे कहा कि दिशाओं का, दिशाओं में गमनागमन का परिमाण या सीमा अथवा मर्यादा रखना दिशा परिमाण व्रत रहते हैं। दिशा परिमाण व्रत एक प्रकार की लक्ष्मण रेखा है जैसे लक्ष्मण ने अपनी भाभी सीता के सतीत्व की सुरक्षा के लिए एक रेखा खींच दी थी जैसे ही सीता ने रेखा का उल्लंघन किया उनके लिए अपहरण का खतरा उपस्थित हो गया। वैसे ही दिशा परिमाण व्रती साधक भी अपनी खींची हुई लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करेगा उसके जीवन में खतरा पैदा हो सकता है। व्रत धारी को अपनी इस सीमा रेखा का अतिक्रमण न हो इसकी सावधानी रखनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि जीवन के खेल का जो मैदान साधक ने निश्चित किया है उसमें श्रावक को खिलाड़ी बनकर खेलना है यदि वह प्रत्येक दिशा में अपने निर्धारित सीमा से बाहर जाता है तो वह आउट हो जाता है।
साध्वी सौरभ प्रज्ञा ने कहा – सत्य सुनना जीवन का दर्पण है उसमें अपनी आत्मा का प्रतिबिंब पड़ता है। अपने कान से दूसरों के निंदा सुनना कान का दुरुपयोग है, जबकि उसके सद्गुण सुनना सदुपयोग है। निंदा करना व सुनना दोनों ही बुरा है। ऐसी कोई बात नहीं सुना जिससे मन में राग द्वेष उत्पन्न हो कान का यह श्रेष्ठ सदुपयोग होगा।