तीन दिवसीय प्रथम अंतरराष्ट्रीय जल सम्मेलन का हुआ समापन

 मानव अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण है जल एवं प्रकृति का अधिकार- डॉ. राजेन्द्र सिंह
अंतरराष्ट्रीय आयोजनों से होती है मानवता की सेवा – प्रो. सारंगेदेवोत
जल की सहज उपलब्धता ने जल उपभोग में अविवेक को बढा जल के देवत्व को नष्ट किया- डॉ. शिव सिंह राठौड
कृषि क्षेत्र में जल के उपभोग को विवेकपूर्ण तरीके से करना होगा संस्कारित – प्रो.एन.एस. राठौड
झील संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालों का किया सम्मान
तीस से अधिक देशांे के प्रतिनिधियों ने की शिरकत …..

उदयपुर 10 दिसंबर / विश्व में सूखे व बाढ की वैश्विक समस्या पर जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय) एवं विश्व जन आयोग स्वीडन के संयुक्त तत्वावधान में भारत में पहली बार आयोजित तीन दिवसीय विश्व जल सम्मेलन का शनिवार को समापन हुआ। विशिष्ट अतिथि राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. शिव सिंह राठौड ने भारत की स्वतंत्रता के समय कुल जी डी पी के 51 प्रतिशत कृषि के योगदान को वर्तमान में 16 प्रतिशत तक सीमित होने पर ध्यानाकर्षण करते हुए इसका कारण बढते औद्योगिकरण को घोषित किया। जल की सहज उपलब्धता ने जल उपभोग में मानव के अविवेक को बढाया और जल के देवत्व को नष्ट किया है । डॉ. शिव सिंह ने इसका उपाय हाइड्रो जियो ट्यूरिज्म को बताते हुए राजस्थान में इसकी विपुल संभावनाओं एवं उपलब्धताओं के बारे में बताया।
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए  कुलपति प्रो. शिव सिंह सारंगदेवोत ने प्रथम अंतरराष्ट्रीय जल सम्मेलन की आयोजन रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए ऐसे आयोजनों को मानवता के लिए अति आवश्यक घोषित किया। प्रो. सारंगदेवोत ने विगत सत्रों की चर्चा को सार्थक मानते हुए इसके दूरगामी परिणामों की अपेक्षा की । साथ ही ऐसे प्रत्येक आयोजनों में विद्यापीठ विश्वविद्यालय की सहभागिता को सहर्ष स्वीकार किया। कुलपति ने विश्व जल सम्मेलन के घोषणा पत्र को जारी किया। साथ ही जल संरक्षण के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए आगामी जल सम्मेलनों की रूपरेखा प्रस्तुत की। प्रो. सारंगदेवोत ने सुभाष चंद्र सिंह भाटी  से प्राप्त पत्र का उल्लेख करते हुए बनास नदी के संरक्षण पर कार्ययोजना की बना शीघ्र इसकी तथ्यात्मक रिपोर्ट विश्व जल आयोग को प्रस्तुत करने की बात कही ।
मुख्य अतिथि मैग्सेसे पुरस्कार विजेता व सूखा एवं बाढ के विश्व जन आयोग , स्वीडन के अध्यक्ष वाटर मैन ऑफ इंडिया डॉ राजेंद्र सिंह ने तृतीय विश्व युद्ध के होरिजेंटल होने की संभावना पर चिंता व्यक्त करते हुआ कहा कि पहले के दो विश्व युद्धों के समान इसमें दुनिया दो ध्रुवों मे बंटी हुई नहीं होगी अपितु जल संकट को केन्द्र में रख एक ही तरफ होगी। डॉ. सिंह ने योजना निर्माण नहीं अपितु केवल व्यवहारिक क्रियान्वयन की बात  करते हुए भारत के जल संरक्षण व संवर्द्धन में परंपरागत ज्ञान  को आधार बनाने का आव्हान किया।
विशिष्ट अतिथि महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एन. एस. राठौड ने शिक्षा के प्रारंभिक स्तर से ही जल संरक्षण के संस्कार पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने का सुझाव दिया। प्रो. राठौड ने बताया कि केवल 5 प्रतिशत जल ही घरेलू उपभोग में आता है जबकि 80 प्रतिशत जल कृषि कार्य में तथा 15 प्रतिशत जल औद्योगिक उत्पादनों के लिए होता है। ऐसे में नीति निर्माण के दौरान सिंचाई के दौरान वैज्ञानिक प्रविधि का इस्तेमाल कर नवाचार परक संसाधनों का उपयोग कर कृषि क्षेत्र में जल के उपभोग को विवेकपूर्ण तरीके से  करने की मुहिम चलाने की आवश्यकता पर बल दिया।
समापन सत्र से पूर्व ओपन सेशन का आयोजन कुलपति एवं वाटरमैन डॉ. राजेन्द्र सिंह के संयुक्त अध्यक्षता में आयोजित किया गया। इस सत्र में संभागियों ने जल संरक्षण पर किए जारहे प्रयासों की जानकारी दी।  माबाद पीस सेंटर एन्ड कम्युनिटी, मिस्र की मोना ने जल ब्रह्मांड को जोडने वाली कडी घोषित करते हुए नीर, नारी, नदी की संकल्पना को भारत एवं मिस्र की सभ्यता को जोडने वाली कहा। वहीं ख्यातनाम लघु फिल्म निर्माता लुसी एवं मार्टिन ने आधुनिकता के  बढते दबाव में परंपरागत बुद्धि का इस्तेमाल कर जल संरक्षण के प्रयासों को समर्पित एक डॉक्युमेंटरी का प्रदर्शन किया। डॉ. अभिनंदन सैकिया ने सिंहली भाषा में गंगा शब्द का अर्थ नदी बताते हुए नदी संरक्षण के प्रयासों में केवल गंगा नदी को ही पवित्र न मान समस्त नदियों को एक जनकल्याणकारी स्वरूप में अधिरेखांकित किया। चर्चा को संबोधित करते हुए वॉटरमैन राजेन्द्र सिंह ने मानव अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण जल एवं प्रकृति के अधिकार को घोषित करते हुए लर्निंग फॉर अर्निंग के स्थान पर आनंद के अधिगम की वकालत की जो कि विश्व बंधुत्व का कारक होती है। सत्र में कलकत्ता से आए थिएटर कलाकार सुशांता दास ने जीवन के प्राकृतिक स्वरूप पर मानवीय हस्तक्षेप का कालांतर में परमाणु उर्जा संयंत्रों के रूप मंे पडने वाले प्रभावों को मूकानिभय द्वारा प्रस्तुत किया। ख्यातनाम मराठी फिल्म कलाकार चिन्मय उडगिरकर ने स्वयं को प्रवाह का व्यक्ति घोषित करते हुए अभिनेता के रूप में प्राप्त पुरस्कारों की चमक को अल्पकालिक परंतु प्रकृति से प्राप्त पुरस्कारों को शाश्वत  बताया। चिन्मय ने दक्षिण की गंगा , गोदावरी के उद्गम स्थल ब्रह्मगिरी पर्वत पर मूल निवासियों को प्रेरित कर पुनर्प्रवाह को सुगम बनाने के लिए किए गए प्रयासों की जानकारी देते हुए आंध्र प्रदेश से प्रारंभ हुए ’मेंरी भाषा , मेरी नदी’ अभियान के क्षेत्र को पूरे देश में व्यापक करने का आह्वान किया। सत्र में नेपाल के प्रतिनिधि व हिमालय क्षेत्र के कमीश्नर दीपक ग्वाली ने उदयपुर घोषणा पत्र का प्रारंभिक स्वरूप चर्चा के लिए सदन के सम्मुख रखा।
समारेाह में प्रो. आशुतोष तिवारी  डॉ. बलिदान जैन एवं डॉ. प्रिया चौहान द्वारा संपादित माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों में गणित  संबंधी दुश्चिंताओं के निवारण हेतु निर्मित व्युहरचनाओं की प्रभावशीलता का अध्ययन शिक्षण द्वारा लिखित पुस्तकों का विमोचन किया गया।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए आयोजन सचिव डॉ. युवराज सिंह ने बताया कि दिवसीय अंतरराष्ट्रीय जल सम्मेलन में विश्व के 30 से अधिक देश जिसमें अफ्रीका , अमेरीका, उत्तरी अमेरिका, एशिया, यूरोप, बोस्निया, स्वीडन, कनाड़ा, मिस्र, पुर्तगाल, लिथूआनिया, आस्ट्रेलिया, नेपाल सहित भारत  के महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, लद्दाख, दिल्ली, तमिलनाडु, कर्नाटक , राजस्थान के विभिन्न राज्यों के 175 से अधिक प्रतिभागी एवं विषय विशेषज्ञों ने शिरकत की।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. हीना खान ने किया जबकि आभार की रस्म डॉ. पंकज रावल ने अदा की।  समारेाह में उदयपुर शहर में झील संरक्षण के लिए उल्लेखनीय कार्य करने वाले एडवोकेट डॉ. प्रवीण खण्डेलवाल, पूर्व पार्षद एडवोकेट दिनेश गुप्ता, एडवोकेट अशोक सिंघवी, एडवोकेट महेश बागड़ी का माला, उपरणा, शॉल एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
रात्रि को संास्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न देशों से आये देसी एवं विदेशी मेहमानों ने राजस्थानी एवं गुजराती गानो  का लुफ्त उठा अपने अलग ही अंदाज में डांस किया। सभी प्रतिभागियों का मेवाड़ी परम्परानुसार स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।
इस अवसर पर प्रो. सुमन पामेचा, प्रो. सरोज गर्ग, डॉ. हेमेन्द्र चौधरी, डॉ. धमेन्द्र राजौरा, डॉ. युवराज सिंह राठौड़ डॉ. हीना खान, डॉ. नीरू राठौड, डॉ. सुनिता मुर्डिया, डॉ. रचना राठौड, डॉ. बलिदान जैन, डॉ. अमी राठौड, डॉ. तरूण श्रीमाली, डॉ. दिनेश श्रीमाली, डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव, डॉ. मधू मुर्डिया, डॉ. गुणाबाला आमेटा, शीतल चुग, डॉ. अमित बाहेती, डॉ. प्रेरणा भाटी, सहित विद्यापीठ के डीन, डायरेक्टर एवं कार्यकर्ता उपस्थित थे।

By Udaipurviews

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