यह मानव जीवन बड़ा अनमोल है-प्रमाद में न खोना : साध्वी प्रफुल्लप्रभा

– आयड़ जैन तीर्थ में बह रही है धर्म ज्ञान की गंगा  
उदयपुर, 26 नवम्बर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में रविवार को चातुर्मासिक मांगलिक प्रवचन हुए। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।   जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने अपने प्रवचन के माध्यम से बताया कि चरम तीर्थपति भगवान महावीर की अंतिम देशना, जो आज भी उत्तराध्ययन सूत्र के रूप में विद्यमान है, उसी उत्तराध्ययन सूत्र के चौथे अध्ययन में मानव जीवन की क्षणभंगुरता का निर्देश करते हुए भगनान महावीर परमात्मा ने गौतम स्वामी को संबोधित करते हुए कहा कि जिस प्रकार शरद ऋतु में घास के अग्र भाग पर रहे हुए जलबिंदु का अस्तित्व एक क्षणभर के लिए होता है। सूर्य की लाप की एक किरण मात्र से ही उसका अस्तित्व सदा के लिए समाप्त हो जाता है उसी प्रकार मानव जीवन का भी अस्तित्व क्षणभंगुर यानी एक क्षण में नष्ट हो जाने के स्वभाव वाला हैं। आयुष्य की इस क्षणभंगुरता को जानकर प्रमाद के वशीभूत होने जैसा नहीं है, क्योंकि जब आयुष्य ही नहीं रहेगा तो धर्म आराधना के तुम्हारे जो-जो – मनोरथ है वे कैसे पूर्ण हो सकेंगे? आत्म साधना के लिए जिस प्रकार पाँच इन्द्रियों की परिपूर्णता, शारीरिक आरोग्य आदि की अपेक्षा रहती है, उसी प्रकार – आयुष्य का अस्तित्व भी बहुत जरूरी है, यदि आयुष्य ही नहीं होगा तो तुम धर्म साधना कैसे कर पाओगे? अत: थोड़ा भी प्रमाद करने जैसा नहीं है। तुम बोध पाओ।  तुम्हें बोध क्यों नहीं होता है। वास्तव में परलोक में बोधि की प्राप्ति होना दुर्लभ है। जिस प्रकार बीते हुए रात-दिन वापस नहीं लौटते हैं, उसी प्रकार यह जीवन सुक्तभ नहीं है। मरने के बाद पता नहीं कहाँ जाता होणा कोनसी गति प्राप्त होगी। इस जीवन में धर्मबोध पाने के लिए ढेर सारी सामग्री हुई है, अगले जन्म में ये सब सामग्रियाँ प्राप्त होगी भा नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है, तो इसी समय बोध को प्राप्त कर ले-सावचेत हो जाये।

चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि कल कार्तिक पूर्णिमा के दिन शाश्वतगिरीराज पालीताणा तीर्थ की भाव यात्रा का आयोजन होगा। असंख्य वर्ष पूर्व कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन पालीताणा तीर्थ भूमि पर दश क्रोड मुनिवरों का निर्वाण हुआ था। ऐसे पवित्र शुभ दिन कतिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र आचार्य जी का एवं महत्तरा साध्वी सुमंगला श्रीजी न का जन्म भी हुआ। उनके गुणों को भी स्मरण करेंगे। चातुर्मास काल पूर्ण होने से चातुर्मास परिवर्तन होगा। जिसका लाभ श्रीमती विद्या देवी- रमेश कुमार सिरोया परिवार ने लिया है। आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

By Udaipurviews

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