बच्चों की बौद्धिक क्षमता बढ़ाने वाली शिक्षा की जरूरत: बागडे

एमपीयूएटी का भव्य 18वां दीक्षांत समारोह संपन्न
– भारत दूध, फल-सब्जी व खाद्यान्न्ा उत्पादन में आत्मनिर्भर: मुखोपाध्याय

उदयपुर, 21 दिसम्बर। कुलाधिपति एवं प्रदेश के राज्यपाल माननीय श्री हरिभाऊ बागडे ने कहा कि टैस्ट बुक (पाठ्यक्रम) से डिग्री जरूर मिल जाएगी लेकिन जीवन नहीं सुधरेगा। जीवन सुधारने के लिए बच्चों की बौद्धिक क्षमता बढ़ानी होगी और यह तभी संभव है जब विश्वविद्यालय के शिक्षक अपने मन-मस्तिष्क में समाया तमाम ज्ञान बच्चों में ट्रांसफर करे।
माननीय राज्यपाल बागडे शनिवार को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर का अठारहवें भव्य दीक्षांत समारोह में उपाधियां, पदक व डिग्रियां प्रदान करने के बाद सदन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत ऋषि व कृषि प्रधान राष्ट्र है। देश आजाद हुआ तो 1950 में अमरीका से अनाज का आयात होता था। तब आबादी भी 40 करोड़ के भीतर थी। देश के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत के बूते आज 140 करोड़ की आबादी के बावजूद हम खाद्यान्न्ा में आत्मनिर्भर है। 1980 तक बाहर से अनाज मंगाना मजबूरी था, लेकिन इसके बाद क्रांतिकारी परिर्वतन हुआ। हरित क्रांति, पीत क्रांति व श्वेत क्रांति के चलते खाद्यान्न्ा, दलहन और दुग्ध उत्पादन में भारत का नाम शीर्ष पर आ गया।
उन्होंने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि हम आज भी लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति पर चल रहे हैं जबकि अंग्रेज यह बखूबी जानते थे कि किसी भी राष्ट्र को बर्बाद करना है तो वहां की शिक्षा को बिगाड़ दो। भारत अपनी संस्कृति और यहां की गुरूकुल परम्परा के कारण आज भी विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखता है। उन्होंने कहा कि गुरूत्वाकर्षण के बारे में पहली खोज संवत 1530 में मानी गई जो किसी मार्कोज के नाम पर ह,ै लेकिन हमारे यहां तो भास्कराचार्य ने 12वीं शताब्दी में ही गुरूत्वाकर्षण के बारे में बता दिया था। ऋगवेद – यजुर्वेद में बकायदा इसका उल्लेख आज भी है।


राज्यपाल बागडे ने पानी के दुरूपयोग पर चिंता जताते हुए कहा कि धरती पर सिचांई व पीने योग्य मात्र 4 प्रतिशत पानी उपलब्ध है। शेष सारा पानी समुद्र में या बर्फ के रूप में पहाड़ों पर है। पानी की बचत ही पानी का निर्माण है। उन्होंने आह्वान किया कि वर्षा जल को व्यर्थ बहकर न जाने दें। खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में रोककर भूजल स्तर को सुधारने की दिशा में प्रयास होेने चाहिए। यही नहीं पानी की कमी के चलते हमें प्राकृतिक खेती की ओर जाना होगा। खेतों में अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग से कैंसर जैसे भयानक रोग हो रहे हैं। फसल की वृद्धि एवं उससे उत्पादन लेने के लिए जो भी तत्व चाहिए, सभी भूमि और वातावरण में मौजूद है। प्राकृतिक खेती स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों पर आधारित एक रसायनमुक्त कृषि पद्धति है। यह स्वदेशी तकनीकों को प्रोत्साहन देती है।
उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति सहित वैज्ञानिकों शिक्षकों से आह्वान किया कि वे कृषि में नवाचारों, अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास के साथ प्राकृतिक खेती के लिए मुहिम चलाकर भविष्य में उत्कृष्ट प्रदर्शन करे।
दीक्षांत उद्बोधन देते हुए प्रख्यात वैज्ञानिक व असम कृषि विश्वविद्यालय जोरहाट के पूर्व कुलपति डॉ. अमरनाथ मुखोपाध्याय ने कहा कि भारत ने तीन प्रमुख क्षेत्रों कृषि, अंतरिक्ष और आईटी क्षेत्र में जबर्दस्त प्रगति हासिल की है। पिछले पांच दशकों में कृषि में अपूर्व वृद्धि हासिल की जिसके परिणामस्वरूप 70 मीट्रिक टन बफर के साथ 332.29 मिलियन टन से अधिक खाद्यान्न का उत्पादन हुआ है। भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक, सब्जी, फलों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, अंडे का सबसे बड़ा उत्पादक और दुनिया में मछली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र है।
उन्होंने कहा कि मेरा जन्म स्वतंत्रता पूर्व 1940 में हुआ और मैंने बचपन में गरीबी, खाद्यान्न की कमी और बहु-पोषण को खूब जनदीक से देखा है। हम अब चावल, गेहूं, सब्जी, फल, चाय और चीनी का निर्यात कर रहे हैं। प्रारंभिक खेती के सरल, श्रम से लेकर आज की अत्यधिक तकनीकी और डेटा-संचालित प्रथाओं तक, इसमें काफी विकास हुआ है। इसे कृषि 1.0, 2.0, 3.0 और 4.0 कहा जाता है। कृषि 1.0 वह थी, जिसमें किसान भूमि, मौसम के पैटर्न और पारंपरिक कृषि पद्धतियों के बारे में अपने ज्ञान पर निर्भर थे, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते रहे। कृषि 2.0 में ट्रैक्टर, टिलर और हार्वेस्टर जैसी मशीनरी की शुरुआत हुई, जिसने मैनुअल श्रम की जगह ले ली और औद्योगिक क्रांति के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाने में मदद की। कृषि 3.0, जिसे सटीक कृषि के युग के रूप में भी जाना जाता है। इसने खेती के तरीकों को अनुकूलित करने के लिए प्रौद्योगिकी के प्रभाव को चिह्नित किया। कृषि 4.0 खेती में वर्तमान डिजिटल क्रांति का प्रतिनिधित्व करता है। यह इंटरनेट ऑफ थिंग्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग, रोबोटिक्स, ड्रोन, बिग डेटा एनालिटिक्स और ब्लॉक चेन जैसी तकनीकों के अभिसरण की विशेषता है। खेत स्वचालित होते जा रहे हैं, जिसमें रोबोट रोपण, निराई और कटाई जैसे कार्य कर रहे हैं। और आने वाला कृषि का भविष्य और भी सुनहरा है।
आरंभ में एमपीयूएटी के कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने विश्वविद्यालय में विगत एक वर्ष की उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। उन्होंने विश्वास दिलाया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार प्रदेश की कृषि शिक्षण व्यवस्था, शोध, प्रसार व उद्यमिता विकास को आगे ले जाने के लिए हमारा विश्वविद्यालय कटिबद्ध है। महाराणा प्रताप जैसे कर्मवीर के नाम पर स्थापित यह विश्वविद्यालय पूरे मनोयोग से अपने कर्म में लगा हुआ है।
डॉ. कर्नाटक ने बताया कि हमने इसी अकादमिक वर्ष 2024-25 से राष्ट्रीय शिक्षा नीती 2020 के आलोक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा कृषि, सामुदायिक विज्ञान, मात्स्यकी विज्ञान, डेयरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी की संकायों के लिए अनुमोदित पाठ्यक्रम आंरभ कर दिए हैं। सभी नए पाठ्यक्रम का शुभांरम 5 सितम्बर 2024 को समारोह पूर्वक किया गया। मानव संसाधन की कमी को देखते हुए 15 शैक्षणिक व 92 शैक्षणेत्तर कार्मिकों की भर्ती के अलावा केरियर एडवांस स्कीम में पदोन्न्ातियां भी की गई। वर्ष 2024 में 26 पेटेंट एवं डिजाइन पंजीकरण अर्जित कर विश्वविद्यालय एवं कीर्तिमान बनाया है।
इसके अलावा विश्वविद्यालय की ओर से तैयार प्रताप संकर मक्का-6 किस्म को राष्ट्रीय स्तर पर अनुमोदित किया गया है। साथ ही ज्वार की किस्म प्रताप ज्वार – 2510 भारतीय बजट में अधिसूचित किया गया है। वर्ष 2024 में मूगंफली, अश्वगंधा, असालिया एवं ईसबगोल फसलों की चार किस्में राज्य स्तरीय किस्म रिलीज समिति द्वारा अनुमोदन के लिए चिन्हित की गई है।
नवीन शोध के लिए एमपीयूएटी के वैज्ञानिकों ने विगत डेढ़ वर्ष में 11 करोड़ रूपए की 26 अनुसंधान परियोजनाएं स्वीकृत कराने में सफलता अर्जित की। साथ ही जनजाति बहुल किसानों व पशुपालकों के लिए मतस्य, मुर्गीपालन, फसलोत्पादन आदि क्षेत्र में अनेक सुविधाएं प्रदान की गई।
राजस्थान के माननीय राज्यपाल व विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री हरिभाऊ बागडे ने अकादमिक वर्ष 2023-24 में उत्तीर्ण 938 स्नातक, 181 निष्णात व 62 विद्यावाचस्पति अभ्यर्थियों को दीक्षा प्रदान की। तदुपरांत माननीय राज्यपाल ने विद्यावाचस्पति अभ्यर्थियों तथा विभिन्न संकायों के प्रतिभावान योग्य 42 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए। इस अवसर पर सुश्री ए वितोली चिशी, निष्णात (कृषि अभियांत्रिकी) प्रसंस्करण एवं खाद्य अभियांत्रिकी को चांसलर गोल्ड मेडल प्रदान किया गया।
इससे पूर्व विश्वविद्यालय परिसर स्थित विवेकानन्द सभागार, डेयरी व खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के सामने कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने माननीय राज्यपाल की आगवानी की तथा एन.सी.सी. कैडेट ने गॉर्ड ऑफ ऑनर दिया। वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा स्वागत के उपरांत माननीय राज्यपाल एकेडमिक प्रोसेशन के साथ सभागार में पहंुचे। कुलाधिपति ने 1181 उपाधि प्राप्तकर्ताओं को दीक्षा, उपाधियां तथा पदक प्रदान किए। दीक्षांत समारोह में विश्वविद्यालय की विगत दो वर्षों में अर्जित उपलब्धियों तथा नेतृत्व द्वारा दिए गए प्रेरक व दूरदर्शी व्याख्यानों पर आधारित दो प्रकाशनों का माननीय राज्यपाल महोदय ने विमोचन किया। कार्यक्रम का विधिवत समापन माननीय राज्यपाल की घोषणा से हुआ।
कार्यक्रम में विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतिगण, पूर्व कुलपति, प्रबंध मंडल व अकादमिक परिषद के सदस्यगण मौजूद रहे। समारोह में उदयपुर सांसद श्री मन्ना लाल रावत, बेंगू विधायक श्री सुरेश धाकड़, सुखाड़िया विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुनिता मिश्रा, विद्यापीठ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सारंगदेवोत, कुलसचिव श्री सुधाशु सिहं,एमपीयूएटी के पूर्व कुलपति डॉ. एस.एल. मेहता, डॉ. उमाशंकर शर्मा, एसओसी मेंमर, डीन, डायेरेक्टर, समारोह समन्यवयक डॉ. लोकेश गुप्ता एवं परीक्षा नियंत्रक डॉ. राम हरि मीणा उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती विशाखा बंसल ने किया।

दीक्षांत समारोह – कुछ खास झलकियां
– पूरा समारोह पूर्ण सादगी वाले माहौल में आयोजित हुआ।
– माननीय कुलाधिपति व राज्यपाल ने अपने अभिभाषण मंे मनोविनोद पूर्ण भाषा के कारण छात्र-छात्राओं और अतिथियों को खूब हंसाया।
– राज्यपाल बागडे तब विद्यार्थियों से सीधे कनेक्ट हुए जब उन्होंने शिक्षकों से कहा कि साथ कुछ नहीं आएगा। सारा ज्ञान यहीं बच्चों में बांटो………….फेंको।
– राज्यपाल ने चुटकी लेते हुए कहा कि वे आज भी एक बाल्टी यानी 15 लीटर पानी से स्नान करते हैं। जबकि लोग 5-6 बाल्टी पानी बर्बाद करते हैं। होटलों में टब में कितना पानी बर्बाद होता है?
– शिवाजी राज महाराज, महाराणा प्रताप ने ताउम्र अपनी संस्कृति, सांस्कृतिक मूल्यों को बचाने के लिए लड़ाई लड़ी।
– राज्यपाल बागडे ने कहा कि खेतों में प्रतिवर्ष फसल परिर्वतन करते रहना चाहिए ताकि अच्छी उपज मिले।

By Udaipurviews

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