सुभाष शर्मा
उदयपुर, 30 अगस्त: राजस्थान के उदयपुर जिले का पिपलांत्री गांव एक अद्भुत परंपरा के लिए प्रसिद्ध है, जहां हर साल राखी के मौके पर बहनें अपने भाई के साथ-साथ पेड़ों को भी राखी बांधती हैं। यह परंपरा न केवल गांव में बल्कि पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही है।
यह परंपरा सदियों पुरानी है और यहां की बहनें राखी के दिन पेड़ों को राखी बांधकर उन्हें सुरक्षा का वचन देती हैं, ताकि पेड़ सुरक्षित रहें और बढ़ते रहें। इस गांव के लोग पेड़ों से एक अनूठा प्रेम रखते हैं और प्रकृति को संरक्षित करने के लिए कठिन मेहनत करते हैं।
पिपलांत्री गांव की पर्यावरण प्रेमी परंपरा
राजसमंद जिले से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित पिपलांत्री गांव में यह परंपरा हर साल राखी के दिन मनाई जाती है। यहां की बहनें ना केवल अपने भाइयों को राखी बांधती हैं, बल्कि 111 पौधे लगाने के बाद उन पौधों को भी राखी बांधकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हैं। यह परंपरा गांव की बेटियों द्वारा उठाए गए एक अनूठे कदम का हिस्सा है, जिसमें हर बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाए जाते हैं और उनका परिवार उन्हें पेड़ बनने तक संजीदगी से देखभाल करता है।
राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया का पिपलांत्री दौरा
पिपलांत्री की इस प्रेरणादायक परंपरा को देखने और सराहने के लिए असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया भी पिपलांत्री पहुंचे। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण रक्षाबंधन कार्यक्रम में भाग लिया और वहां के ग्रामीणों की इस पहल की सराहना की। इस मौके पर कारगिल युद्ध के शहीद योगेंद्र यादव को भी सम्मानित किया गया।
डेनमार्क में भी चर्चित हुआ पिपलांत्री मॉडल
यह मॉडल इतना प्रभावशाली है कि इसे अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा जा रहा है। डेनमार्क के स्कूलों में पिपलांत्री मॉडल को पढ़ाया जा रहा है। यह मॉडल पर्यावरण संरक्षण के लिए एक उदाहरण बन चुका है, और इसके प्रभाव ने वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है।
ग्रामीणों द्वारा उठाए गए कदम
पिपलांत्री के ग्रामीणों ने खेतों की सिंचाई के लिए 4500 चेक डेम बनाए हैं और सरकारी भूमि को भू-माफियाओं से बचाकर उसे आम लोगों के लिए उपलब्ध किया है। इस तरह, पिपलांत्री गांव ने पर्यावरण संरक्षण और समाज कल्याण के लिए कई अहम कदम उठाए हैं। पिपलांत्री गांव की यह अनूठी परंपरा न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश और दुनिया में एक मिसाल बन गई है।