उदयपुर। समता मूर्ति परम् पूज्य जयप्रभा श्री जी म.सा. की सुशिष्या साध्वी संयम ज्योति ने कहा कि ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है। अन्याय और अनीति से मिलने वाले धन का त्याग ही सबसे बड़ा दान है। वे सोमवार को दादाबाड़ी स्थित वासुपूज्य मंदिर में आयोजित व्याख्यान को संबोधित कर रही थीं।
साध्वी ने कहा कि पारिवारिक, मानसिक, बौद्धिक और कायिक, इनमें से किसी भी प्रकार की चोरी नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि चोरी करने वाला सभी प्रकार के पाप करता है। वह चोरी में अवरोध पैदा करने वाले की हिंसा करता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है, अब्रह्मचर्य का सेवन करता है और परिग्रह करता है।
साध्वी ने कहा कि चोरी पाप ही नही है, व्यसन है। इसको प्रारंभ से ही रोक देना चाहिए। जो माँ अपने बच्चों में चोरी के संस्कार डालती है, उसको चोरी करने मे प्रोत्साहन देती है वह बच्चों की शत्रु है। वहीं जो माँ प्रारंभ से बच्चे में ईमानदारी के संस्कार डालती है वह बच्चों की कल्याण मित्र बनती है।
साध्वी ने कहा कि जो पाप बहुजन वर्ग स्वीकार कर लेता है उसे स्वीकार करने में व्यक्ति को शर्म महसूस नही होती परंतु पाप तो पाप ही है। भले ही उसे अल्पवर्ग स्वीकार करे अथवा बहुजन वर्ग।
साध्वी ने कहा कि घर में हाय, हराम का पैसा नही आना चाहिए। वह व्यक्ति के वजूद को जला देगा वहीं दुआ का पैसा अमन चौन देगा।
साध्वी संयम साक्षी ने शटकायिक जीवों का विवेचन करते हुए कहा कि वनस्पतिकाय के जीवों का संरक्षण हमारा संरक्षण है क्योकि एक व्यक्ति को श्वास लेने के लिए 22 वयस्क पेड़ों की आवश्यकता है। पेड़ों को काटनेवाला श्वासों को काटता है वहीं पेड़ों का संरक्षण करने वाला पर्यावरण संतुलन में सहायक बनता है।
साध्वी ने कहा-जंगलों को नष्ट करनेवाले अपने व दूसरों के जीवन को नष्ट करके महा अपराधी बन रहे हैं।