उदयपुर, 14 सितम्बर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में शनिवार को हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया कि बत्तीस आगमों में से एक भगवती सूत्र में जीव अर्थात् आत्मा की पांच शक्तियां बतलाई गई हैं-उत्थान शक्ति, कर्म शक्ति, बल, वीर्य अर्थात् उत्साह की शक्ति एवं पुरूषाकार पराक्रम की शक्ति। ये पांचों शक्तियां अन्य जीवों की अपेक्षा से मनुष्य में अधिक अनावृत होती है। मनुष्य अपनी इन शक्तियों को पहचान कर इसका भलीभांति उपयोग कर सकता है। सरल शब्दों में उठो, कर्म करो, शक्ति लगाओ, उत्साह के साथ पुरूषाकार पराक्रम करो तो अनंत वीर्य भी प्रकट हा सकता है। संसार में दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं-भाग्यवादी व भाग्यशाली। संसारी जीव ज्यादातर भाग्यवादी होते हैं, जबकि संयमी स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं एवं शुद्ध श्रद्धा के साथ लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु सतत प्रयत्नशील रहते हैं। कामयाबी की पहली सीढ़ी कोशिश है, सफल हो गए तो स्पीड बढ़ जाती है, गलती हुई है तो सबक एवं तजुर्बा दे जाती है। ऐसा होने पर रिवर्स हों और सही दिशा में पुनः कोशिश करें। कर्तव्यनिष्ठा से किए गए कार्य में कभी भी निराशा पैदा नहीं होती। कर्तव्य की परिधि असीम व अनंत है। निष्काम भाव से कर्म करें। यही कर्तव्य आपके कर्तृत्व को बनाता है। कर्तृत्व से व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व से अस्तित्व की पहचान बनती है। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने मार्गानुसारी के बोलों की चर्चा करते हुए कहा कि व्यक्ति को संवेदनशील बनना चाहिए। अगर आप किसी को साता दे सकें तो बहुत अच्छी बात है और नहीं दे सकें तो कम से कम असाता न पहुँचाएं। यदि हम सम्पूर्ण जीव जगत के प्रति संवेदनशील बनेंगे तो दर्शनावरणीय कर्म टूटेगा एवं दर्शन गुण निर्मल बनेगा। इससे पूर्व श्रद्धेय श्री रत्नेश मुनि जी म.सा. ने अशक्त, आसक्त एवं विरक्त इन तीन पदों की व्याख्या की। श्रीसंघ अध्यक्ष इंदर सिंह मेहता ने बताया कि आज पूना, अहमदाबाद, बैल्लारी एवं इंदौर संघ ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। सेक्टर-4 से सुविधि महिला मंडल की 50 श्राविकाएं अध्यक्षा चंचल मांडावत के नेतृत्व में प्रवचन में उपस्थित हुई। 15 सितम्बर को दोपहर में विद्वत गोष्ठी का आयोजन होगा।
कामयाबी की पहली सीढ़ी कोशिश है, सफल हो गए तो स्पीड बढ़ जाती है, गलती हुई है तो तजुर्बा दे जाती है : आचार्य विजयराज
