शव के 10 टुकड़े कर खंडहर में फेंक दिया था
—आरोपी के मां—बाप को भी 4 साल की सजा
—आरोपी बोला पुलिस ने दबाव बनाया, हाईकोर्ट में अपील करूंगा
उदयपुर, 4 नवंबर : आठ साल की मासूम बच्ची से पहले रेप और उसके बाद उसकी नृशंस हत्या कर लाश के दस टुकड़े कर उसे खंडहर में फेंकने का जघन्य अपराध करने वाले बेरहम हत्यारे को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है। पॉक्सो—2 कोर्ट के पीठासीन अधिकारी संजय भटनागर ने दोषी कमलेश राजपूत (21) के माता पिता को भी हत्या के बाद शव को ठिकाने लगाने का दोषी माना और उन्हें भी चार—चार साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।
मामले की जानकारी देते हुए विशिष्ट लोक अभियोजक सैयद हुसैन ने बताया कि दोषी युवक ने मार्च 2023 में 8 साल की बच्ची को टॉफी देने के बहाने अपने घर ले गया और उसके मुंह में कपड़ा ठूंस कर उससे दुष्कर्म किया। घटना के बाद आरोपी ने बच्ची के शव के 10 टुकड़े कर उसे अपने घर से 200 मीटर दूर एक खंडहर में फेंक दिया। इधर जब 29 मार्च 2023 को बच्ची के माता पिता के मावली थाने रिपोर्ट देकर पुलिस को सूचना उनकी आठ वर्षीय बच्ची के गुम होने की खबर दी तो पुलिस ने बच्ची की तलाश शुरू की। परिजनों ने पुलिस को बताया था कि नाबालिग बच्ची 4 बजे स्कूल से घर आकर अपने ताउ जी के घर जाने के लिए निकली थी, लेकिन वापस नहीं लौटी। पुलिस ने जब मामले की गहराई से छानबीन की उसे बच्ची का शव दस टुकड़ों के साथ एक बोरे भरकर खंडहर में पड़ा मिला।
तलाशी के दौरान आरोपी के घर से मिले हत्या के सबूत
बच्ची का शव मिलने के बाद जब पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लोगों से पूछताछ की और लोगों के घरों को खंगालना शुरू किया तो पुलिस को आरोपी कमलेश के घर के बाथरूम से कुछ खून निशान मिले। जिससे पुलिस को युवक पर शक हुआ। उसे डिटेन कर पूछताछ शुरू की तो उसने घटना का पूरा सच उगल दिया। आरोपी ने पुलिस को बताया कि वह घटना के दिन वह अपने घर की खिड़की में बैठकर मोबाइल पर पोर्न देख रहा था। हवस की आग में अंधे हुए कमलेश ने जब गली से बच्ची को जाते देखा तो उसे टॉफी का लालच देकर अंदर बुला लिया। उस वक्त उसके माता—पिता घर पर नहीं थे। हालांकि मासूम बच्ची उसे भैया कहकर बुलाती थी, मगर इन सब बातों को दरकिनार करते हुए दुष्कर्मी ने बच्ची को बाथरूम में ले जाकर उसके साथ कुकृत्य कर डाला। बच्ची शोर ना मचा सके इसके लिए उसने मासूम के मुंह में कपड़ा ठूंस कर उसका मुंह बंद कर दिया और फिर उसे अपनी वासना का शिकार बना डाला। जब तक वासना का भूत सिर से उतरा, तब तक मासूम की मौत हो चुकी थी। इस पर भेद खुल जाने के डर से आरोपी ने बाथरूम में ही उसके टुकड़े किए थैलियों में भरकर बाथरूम में ही छुपा दिया। जब अगले दिन दोषी के माता—पिता को इस हत्याकांड की खबर लगी तो उन्होंने पुत्र मोह में अंधे होकर दुष्कर्मी बेटे का साथ दिया और बेटे के साथ मिलकर देर रात टुकड़ों को बोरे में भरकर घर से थोड़ी दूर एक खंडहर में फेंक दिया।
मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद हुसैन आरोपियों का दोष सिद्ध करने के लिए एक साल से भी लंबी चली सुनवाई के दौरान 42 गवाह और 178 दस्तावेज पेश किए। जिनके आधार पर पोक्सो—2 कोर्ट के पीठासीन अधिकारी संजय भटनागर ने तीनों आरोपियों को दोषी माना और मुख्य आरोपी कमलेश राजपूत (21) को फांसी तथा उसके माता—पिता को चार साल कैद की सजा सुनाई।
वहीं इस मौके पर उदयपुर कोर्ट के कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने इतिहास के पन्नों को पलटते हुए बताया कि इससे पहले उदयपुर कोर्ट द्वारा सन् 1995—96 में रामा कांड मामले में फांसी की सजा सुनाई गई थी। एडीजे—1 कोर्ट के न्यायाधीश भुवनेश कुलश्रेष्ठ ने दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। हालांकि बाद में दोषियों ने इस मामले में हाईकोर्ट में अपील की और हाईकोर्ट ने उनकी फांसी की सजा पर रोक लगाकर उन्हें राहत प्रदान की। जानकार बताते हैं कि उससे भी पहले 60 से 70 के दशक में लादूलाल पहलवान को उदयपुर के डीजे कोर्ट से फांसी की सजा मिली थी। जिसने मामले में पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील की और सुप्रीम कोर्ट ने उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में तबदील कर दिया था।