उदयपुर, 26 दिसम्बर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव में सोमवार को एक ओर जहां शिल्पग्राम के हाट बाजार में कलात्मक वस्तुओं की खरीददारी पर लोगों का ज़ोर रहा वहीं शाम को मुक्ताकाशी रंगमंच पर अरब सागर के तट पर बसे गोवा प्रदेश की संस्कृति की झलक वहां के लोक नृत्यों के माध्यम से दर्शकों को देखने को मिली जिसमें देखणी, जागर घोड़े मोडनी व कुणबी जैसी आठ कला शैलियों में वहां की लोक और जनजाति की जीवन शैली का दर्शन देखने का अवसर मिला। उत्सव में ही केन्द्र द्वारा आयोजित ‘मुक्तांगन आर्ट कैम्प’ का समापन भी सोमवार को हुआ।
उत्सव के छठवें दिन सूर्य की मीठी तपिश के साथ मेला प्रारम्भ होते ही बड़ी संख्या में लोग शिल्पग्राम पहुंचना प्रारम्भ हो गये तथा हाटजार में खरीददारी में जुट से गये। हाट बाजार में लकड़ी के नक्काशीदार सजावटी सामान, इनमें टेबल, कुर्सी, गार्डन चेयर, वुडन फ्रेम, काॅर्नर ब्रकेट्स, फ्लाॅवर पाॅट्स, मिट्टी के कलात्मक उत्पाद जिसमें जादुई दीपक, वाॅटर बाॅटल, तुलसी वृंदावन ज्वैलरी में हाथ कंगन, कर्ण फूल, कान की झुमकियाँ, अंगूठी, नथ जूट के बैग आदि उल्लेखनीय है। इसके अलावा वस्त्र संसार में खरीददारों की खासी भीड़ रही।
मेला प्रारम्भ होते ही राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल सपरिवार शिल्पग्राम पहुंचे जहां मुख्य द्वार पर केन्द्र के अधिकारियों ने साफा पहना कर स्वागत किया। बाद में मित्तल ने हाट बाजार में खरीददारी भी की। केन्द्र निदेशक किरण सोनी गुप्ता ने मुख्य न्यायाधीश का स्वागत किया तथा स्मृति चिन्ह भेंट किया।
मेले में ही चित्तौडगढ़ तथा भीलवाड़ा के बहुरूपिया कलाकारों ने हाट बाजार में लोगों का मनोरंजन किया। इनमें करीब डेढ़ दश्क बाद आये अंतर्राष्ट्रीय ख्यति प्राप्त बहुरूपिया कलाकार जानकी लाल भी थे जिन्होंने लोहारण का वेश धारण कर अपनी अदायगी और संवादों से लोगों को रिझाया। एक अन्य बहुरूपिया ने मेरा नाम जोकर के गानों से दर्शकों का मनोरंजन किया। शाम को मुक्ताकाशी रंगमंच के समीप ही केन्द्र द्वारा आयोजित ‘मुक्तांगन आर्ट कैम्प’ का समपन हुआ तथा इस अवसर पर चित्रकारों द्वारा सृजित चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई। समापन पर चित्रकारों ने अपने अनुभव साझा किये तथा प्रदर्शनी में सृजित चित्रों पर चर्चा की। सृजित चित्रों में लोक जीवन, शिल्पग्राम उत्सव, नृत्य और संगीत से जुड़े विषयों को कैनवास पर उतारा गया जिसकी दर्शकों ने काफी प्रशंसा की। चित्रों में रंगो का प्रयोग वातावरण के अनुकूल पाया गया वहीं दृश्य बिम्ब स्पष्ट नजर आये।
सांध्यकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत सोमवार को मुक्ताकाशी रंगमंच पर ‘गोवा दिवस’ का आयोजन किया गया। गोवा के कला एवं संस्कृति निदेशालय द्वारा प्रायोजित इस कार्यक्रम की शुरूआत ‘गणेश वंदना’ से हुई। कोंकणी और मराठी मिश्रित संस्कृति के प्रदर्शन में इसके बाद ‘दिवली’ नृत्य में गोवा के कलाकारों ने लोक वाद्य ढोल, ताशा, समेळ, घुम्मट, हारमोनियम झांझ व डब के वादन के साथ अपने शीश पर दीप स्तम्भ ‘समई’ धारण कर विभिन्न संरचनाएँ बना कर अपनी सौम्य संस्कृति का बोध करवाया। देव स्तुति में किये जाने वाले इस नृत्य में प्रत्येक संरचनाएँ श्रेष्ठ बन सकी। इसके बाद गोवा में मनाये जाने वाले शिगमों तथा दसरा पर्व की झलक धनगर नृत्य में देखने को मिली।
गोवा दिवस के अवसर पर गोवा का प्रसिद्ध देखणी नृत्य अत्यंत लुभावनी प्रस्तुति रही। लावण्य से परिपूर्ण इस प्रस्तुति में भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति का मिश्रण देखने को मिला। नृत्य के साथ गाये जाने वाले गीत ‘हंव साहिबा फळतड़ी वेईता’ की धुन ने शो मैन राजकपूर की बाॅबी फिल्म की याद करवा दी। गोवा की कुणबी जाति द्वारा विभिन्न अवसरों पर किया जाने वाला कुणबी नृत्य इस जाति की संस्कृति को दर्शकों से जोड़ने वाला नृत्य रहा। कार्यक्रम में गोवा का पारंपरिक लोक नाट्य जागर दर्शकों के लिये सतरंगी प्रस्तुति रहा। शीश पर विशेष प्रकार का शिरस्त्राण धारण कर ढोल की लय पर नर्तकों ने मेवाड़ की गवरी जैसा रंग जमाया। इस अवसर पर ही शौर्य का प्रतीक घोड़े मोडनी ने मराठा शासकों की पुर्तगाली सेना पर विजय का स्मरण करवाया। इसके अलावा अंतरंग में गोवा राज्य की कला और संस्कृति के रंग बखूबी प्रसारित किये गये। इसे अवसर पर गोवा के कला और संस्कृति निदेशक सगुन वेलिप मुख्य अतिथि थे। केन्द्र निदेशक किरण सोनी गुप्ता ने कलाकार दलों तथा निदेशक सगुन वेलिप को स्मृति चिन्ह भेंट किये। शिल्पग्राम उत्सव में मंगलवार को ‘नृत्यम्’ का आयोजन होगा जिसमें कुचिपुड़ी की गुरू और प्रसिद्ध कोरियोग्राफर तथा अंर्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नृत्यांगना वनश्री राव व उनके दल द्वारा माइथोलाॅजी पर आधारित प्रस्तुति दी जायेगी। इन प्रस्तुतियों में दर्शकों को भरत नाट्यम, छाऊ तथा कुचिपुड़ी नृत्य की झलक देखने को मिल सकेगी।