उदयपुर। श्री कृष्ण आर्ट एंड क्राफ्ट्स की ओर से नगर निगम प्रांगण में चल रहा सिल्क ऑफ़ इंडिया मेला अब अपने यौवन पर पहुंच चुका है। यहां पर मेला प्रारंभ होने से लेकर मेला के दिन समाप्ति तक सैकड़ांे लोगों की भीड़ देखी जा रही है।
सिल्क मेले में अपनी स्टोल सजा कर बैठे कई व्यापारियों ने बताया कि अब उदयपुर में सिल्क के प्रति लोगों का आकर्षण लगातार बढ़ता जा रहा है। सिल्क मेले में कई व्यापारी ऐसे हैं जो उदयपुर में जब सिल्क मेले की शुरुआत हुई थी तब से लेकर आज तक इस मेले में अपनी स्टोल लगाते आ रहे हैं। कई व्यापारियों ने बताया कि हम सालों से उदयपुर में आ रहे हैं। हर बार पिछले साल से अगले साल में हमें लोगों का बहुत प्यार मिलता है। इस बार तो सिल्क के प्रति शहर वासियों का उत्साह देखते ही बन रहा है।
कश्मीर से उदयपुर सिल्क मेले में आए फिरदोस ने बताया कि वह स्टॉल नंबर 48 पर कश्मीरी सालों की बिक्री कर रहे हैं। उनके पास 400 रूपयें से लेकर से 2 लाख, ढाई लाख, 3 लाख, 4 लाख से लगाकर 6 लाख रुपए तक की पशमीना शॉलें हैं। हालांकि उदयपुर में पशमीना शॉल को लेकर लोगों में इतनी समझ नहीं बन पाई है फिर भी इस बार उन्होंने यह तय कर लिया है की हर आने वाले खरीदारों को वह पशमीना शॉल की उपयोगिता और उसके महत्व के बारें में बताएंगे और ढाई लाख से लगाकर 6 लाख तक के शॉल जरूर बेच कर जाएंगे। ऐसा नहीं है कि पशमीना शॉल लोग खरीदते नहीं है लेकिन उन्हें शुद्ध माल की पहचान नहीं होने से वह अक्सर पशमीना के नाम से सस्ती शॉले ले लेते हैं।
उन्होंने बताया कि ढाई लाख से 6 और 7 लाख तक की 1 साल को बनाने में 6 माह से 1 साल तक का समय लगता है। इसमें 4 से 6 कारीगर लगातार मेहनत करते हैं। इसमें जो रेशा व ऊन काम में आता है वह हर कहीं नहीं मिलता है। इसके लिए उन्हें लद्दाख से कीड़े लाकरके उन्हें घर में पालने पड़ते हैं। वही कीड़े उन्हें ऊन और रेशा देते हैं। पशमीना शाल शुद्ध रूप से हाथों से ही बनाई जाती है इसमें मशीन का कोई काम नहीं होता है यह खरीदने में जरूर महंगे लगती है लेकिन यह शाले दिखने में खूबसूरत और बहुत ही गर्म होती है।
सर्दी के मौसम में महिलाआंे की पसन्द बन रही शॉल एवं पशमीना
