उदयपुर। श्राद्ध पक्ष में घरों की बाहरी दीवारों पर संजा बन रही है जिसे सांझी या हंजा भी कहा जाता है। वहीं शहर के मंदिरों में भगवान के सम्मुख जल सांझी के दर्शन हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पितृपक्ष के 16 दिनों तक यानी भाद्रपद माह के शुक्ल पूर्णिमा से पितृमोक्ष अमावस्या तक कुआंरी कन्याओं द्वारा मनाया जाने वाला पर्व हैं। इस प्रकार श्राद्धपक्ष के इन सोलह दिनों तक घर की दहलीज की दीवार पर हिरमिच से लीपकर ताजे गोबर से संजा तैयार की जाती हैं। कन्याएं गोबर की अलग – अलग संजा मांड़ती हैं तथा उसे फूल, पत्तियों व अन्य सामग्री से सजाती हैं। गोबर से विभिन्न आकृतियां जिसमें चांद, सूरज, तारे, लड़का-लड़की, सीडी, बैलगाडी आदि बना कर उसे रंगबिरंगी पन्नी, मोती, फूल-पत्ती से और आकर्षक बनाया जाता हैं। कुवांरी कन्याएं संध्या समय संजा मांड़ती है, व संजा की आरती कर प्रसाद बांटती हैं और संजा के गीत गाती है –
संजा तो मांगे हरो हरो गोबर
कंहा से लाउ भई हरो हरो गोबर,
किसान घर सूं लाउ हरो हरो गोबर
ले मारी संजा हरो हरो गोबर।
संजा तो मांगे हरो पीला फुलड़ा
कंहा से लाउ भई हरो पीला फुलड़ा,
माली घर सूं लाउ हरो पीला फुलड़ा
ले मारी संजा हरो पीला फुलड़ा।
संजा तो मांगे …………………………
कहा जाता है की सांझी का प्रारंभ राधा रानी ने किया था। प्राचीन समय में कुंवारी कन्याएं सांझी बनाती थी। लेकिन वक्त के साथ यह परंपरा अब लुप्त हो गई है। शहर की कलाकार डॉ दीपिका माली ने वर्ष 2019 में विश्व की सबसे बड़ी संजा (25×25 फीट) शहर के शिल्पग्राम में बनाई थी। जिसके पीछे यही सोच थी की लुप्त होती इस परंपरा से नई पीढ़ी रूबरू हो सके। दीपिका पिछले कई वर्षो से इस लोक परंपरा को बचाने में जुटी हुई है, जिसका असर अब शहरभर में देखा जा सकता है। शहर के कई क्षेत्रों में आज कन्याओं को संजा बनाते देखा जा सकता है जो की एक सुखद एहसास है।