जल, जमीन और जलवायु बचाएं-प्राकृतिक खेती अपनाएं

भीलवाड़ा, 26 दिसंबर। कृषि विज्ञान केन्द्र पर कृषि प्रौद्योगिकी प्रबन्ध अभिकरण (आत्मा) द्वारा प्रायोजित दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण प्राकृतिक खेती तकनीकी विषय पर आयोजित किया गया। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. सी.एम. यादव ने बताया कि प्राकृतिक खेती रसायन मुक्त एवं पशुधन आधारित होने के साथ ही कृषि-पारिस्थितिकी के मानकों पर आधारित विविध कृषि प्रणाली है जिससे मिट्टी की उर्वरता एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बढ़ाने ग्रीन हाऊस प्रभाव को कम करते हुए किसानों की आमदनी बढ़ाने में सहायक है।

डॉ. यादव ने बताया कि प्राकृतिक खेती का प्रमुख उद्देश्य घरेलू संसाधनों का उपयोग कर जैविक आदान तैयार करना तथा उत्पादन लागत में कटौती करना है।

प्रोफेसर के.सी. नागर ने प्राकृतिक खेती की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो चुकी है तथा जल, जमीन और जलवायु मे काफी बदलाव देखने को मिल रहा है जो मानव जाति के लिए बहुत नुकसानदायक है। डॉ. नागर ने प्राकृतिक खेती में जीवामृत, बीजामृत एवं घनजीवामृत की उपयोगिता बताते हुए बनाने की विधि एवं प्रयोग करने के टिप्स दिए।

उपनिदेशक कृषि एवं पदेन परियोजना निदेशक आत्मा डॉ. जी.एल. चावला ने कृषक हितार्थ संचालित विभिन्न योजनाओं की जानकारी देते हुए मिट्टी की उपजाऊ क्षमता का बढ़ना, रासायनिक खाद पर कम निर्भरता, उत्पादन लागत में कमी आदि प्राकृतिक खेती के प्रमुख लाभ बताये।

सहायक कृषि अधिकारी श्री नन्द लाल सेन ने केन्द्र पर स्थापित सजीव इकाईयों का भ्रमण करवाते हुए प्राकृतिक खेती की ओर लौटने का आह्वान किया।

वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता श्री प्रकाश कुमावत ने बताया कि प्रशिक्षण के अन्त में प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसे प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रशिक्षणार्थी को पुरस्कार प्रदान किए गए। प्रशिक्षण में 30 कृषकों की सहभागिता रही।

By Udaipurviews

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