उदयपुर, 28 दिसम्बर। भगवा ध्वज त्याग, समर्पण का प्रतीक है। स्वयं जलते हुए सारे विश्व को प्रकाश देने वाले सूर्य के रंग का प्रतीक है। संपूर्ण जीवों के शाश्वत सुख के लिए समर्पण करने वाले साधु, संत भगवा वस्त्र धारण करते हैं, इसलिए भगवा, केसरिया त्याग का प्रतीक है यह बात चित्तोड़ प्रान्त के महिला समन्वय संयोजिका रजनी डांगी ने राष्ट्र सेविका समिति उदयपुर के विद्या निकेतन सेक्टर 4 में चल रहे पांच दिवसीय प्रारंभिक शिक्षा वर्ग में शिक्षार्थियों के बौद्धिक में कही।
बौद्धिक कार्यक्रम की अध्यक्षता समाजसेवी शशि अग्रवाल ने की।
भगवा ध्वज को गुरु क्यों माना है, इस पर डांगी ने अपने उद्बोधन में कहा कि गुरु व्यक्ति नहीं, तत्व है। अपने समाज में हजारों सालों से, व्यास भगवान से लेकर आज तक, श्रेष्ठ गुरु परम्परा चलती आई है। व्यक्तिगत रीति से करोड़ों लोग अपने-अपने गुरु को चुनते हैं, श्रद्धा से, भक्ति से वंदना करते हैं, अनेक अच्छे संस्कारों को पाते हैं। इसी कारण अनेक आक्रमणों के बाद भी अपना समाज, देश, राष्ट्र आज भी जीवित है। विश्व के अन्दर भारत हिन्दू राष्ट्र, समाज जीवन में एकात्मता की, एक रस जीवन की कमी है। राष्ट्रीय भावना की कमी, त्याग भावना की कमी के कारण भ्रष्टाचार, विषमय, संकुचित भावनाओं से, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, शोक रहित (चारित्र्य दोष) आदि दिखते हैं। इसलिए राष्ट्र सेविका समिति ने अपने गुरु स्थान पर भगवा ध्वज को स्थापित किया है।
शारीरिक प्रमुख धरा गुप्ता ने बताया कि वर्ग का आयोजन 25 जून से प्रारम्भ हुआ। वर्ग में 282 शिक्षार्थी, 25 शिक्षिका एवं 26 प्रबंधिका अपनी सहभागिता दे रहे है। वर्ग में प्रातः 5:00 जागरण से रात्रि 10:00 बजे तक अनुशाशित दिनचर्या का पालन करते हुए आत्मरक्षा के साथ सामाजिक , सांस्कृतिक व वैचारिक रूप से सेविकाओं को तैयार किया जा रहा है।
वर्ग कार्यवाहिका श्रीमती जसवंत बौद्धिक प्रबोधन हेतू चर्चा, उद्बोधन, मनोरंजन कार्यक्रम व शारीरिक प्रशिक्षण मे आत्मरक्षा के लिए दंड, बया ने बताया कि वर्ग में निःयुद्ध ,योग व खेल आदि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।