उदयपुर 03 दिसम्बर। भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर के संस्थापक, संचालक पद्मश्री स्व. देवीलालजी सामर की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन
पुष्पांजली, भजन कीर्तन, ‘‘लोक कलाओं का सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ’’ विषय पर संगोष्ठी एवं ‘‘पद्मश्री देवीलाल सामर सम्मान ’’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने बताया कि प्रति वर्ष की भाँति इस वर्ष भी पद्मश्री स्व. देवीलालजी सामर की पुण्यतिथि के अवसर दो दिवसीय कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पुण्यतिथि के दिन अर्थात दिनांक 03 दिसम्बर 2024 को संस्था प्रांगण में स्थित पद्मश्री स्व. देवीलालजी सामर साहब की आदमकद प्रतिमा एवं समाधि स्थल पर प्रातः पुष्पांजली भजन कीर्तन के कार्यक्रम आयोजित हुए, तो अपरान्ह 04 बजे से ‘‘लोक कलाओं का सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ’’ विषय पर सेमीनार का आयोजन किया गया इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भानु भारती, अध्यक्ष प्रो. नीरज शर्मा, मुख्य वक्ता श्रीनिवासन अय्यर, संस्था के मानद सचिव सत्य प्रकाश गौड़, डॉ. सुरेश सालवी, डॉ. हुसैनी बोहरा एवं अन्य अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरूआत की।
डॉ. हुसैन ने बताया कि संस्था के मानद सचिव सत्य प्रकाश गौड़ द्वारा संगोष्ठी में उपस्थित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भानु भारती, अध्यक्ष प्रो. नीरज शर्मा, मुख्य वक्ता श्रीनिवासन अय्यर, गणमान्य अतिथियों एवं वक्ताओं का शॉल एवं माला पहना कर स्वागत किया गया। उसके पश्चात ‘‘लोक कलाओं का सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ’’ विषय पर डॉ. सुरेश सालवी ने अपने शोध पत्र वाचन के दौरान पारम्पिरिक भवनों, मकानों, वास्तुकला, चित्रकारी, लोक शिल्प एवं लोक नृत्यों के बारे में बताते हुए कहा कि लोककलाएँ मिटृी से जुड़ी हुई है और हम इससे दिनों दिन दूर जा रहे है यदि लोक कलाओं को संग्रहित करना है तो मिटृी से जुड़ा रहना आवश्यक है। इसी क्रम में डॉ. हुसैनी बोहरा ने अपने पत्र वाचन में लोक की परिभाषा एवं लोक का अन्य कलाओं से सम्बन्ध के विषय पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ श्रीनिवासन्न अय्यर ने महाकवि कालिदास का उदाहरण देते हुए कहा कि कालिदास जैसे महान संस्कृत कवि की रचनाएँ भी लोक से ही जुड़ी हुई है। इस अवसर पर श्री भानु भारती ने कहा कि लोक को समझने के लिए सहजता और सरलता आवश्यक है और वास्तव में मानव जीवन में सहजता और सरलता और तरलता ही लोक है। उन्होंने मेवाड़ के भील जाति के साथ गवरी नृत्य नाट्य के अनुभव साझा करते हुए कहा कि एक साधरण ग्रामीण जो नृत्य, अभिनय, चित्रकारी में पारम्परिक रूप से जुड़ा होता है और उसका उसे कोई अभिमान नहीं होता बल्कि वह बहुत ही सहज और सरल होता है और इन्हीं लोगों से बहुत सी बातें जीवन में सीखने को मिली है। प्रो. नीरज शर्मा ने कहा कि लोक बहुत ही व्यापक है, उन्होंने महाभारत और भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में लोक और उसके महत्व के बारे में विस्तार से बताया कि लोक ही वेद है।
इसके पश्चात गणमान्य अतिथियों ने देश के प्रख्यात नाटककार एवं निर्देशक भानु भारती को लाईफ टाईम अचीवमेन्ट पद्मश्री देवीलाल सामर सम्मान प्रदान किया जाएगा।
कार्यक्रम के अंत में संस्था निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने संगोष्ठी में पधारे सभी अतिथियों, वक्ताओं एवं आमजन का धन्यवाद ज्ञापित किया।
अंत में उन्होंने बताया कि समारोह के दूसरे दिन दिनांक 04 दिसम्बर, 2024 को भारतीय लोक कला मण्डल के कलाकारों द्वारा सायं 6ः15 बजे ‘कठपुतली नाटिका ‘‘रामायण’’ की प्रस्तुति की जाएगी जिसमें आमजन का प्रवेश निशुल्क रहेगा।