राष्ट्र निर्माण में हर नागरिक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आज का नवजात शिशु कल देश का भविष्य बनेगा। उसकी शिक्षा-दीक्षा और संस्कार पर ही देश की सफलता और उन्नति निर्भर करेंगी। जिस किसी व्यक्ति या कार्य को जरुरी ना समझकर छोड़ दिया जाता है। हो सकता है वहीं आगे चलकर युग परिवर्तनकारी हो जाता है। इसे ध्यान में रखने के लिए एक पारखी नजर जरुरी है। इसीलिए तो हमारे ऋषि -मुनियों ने समाज में संस्कारों और परम्पराओं पर जोर दिया था। पर बदलते युग में पाश्चात्य संस्कृति भारी पड़ी। आज भारतवासी संस्कार भूलने लगे हैं। जिसे याद दिलाने का जिम्मा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उठाया है। सबसे पहले उन्होंने स्वच्छता का अभियान चलाया। अब वे देश के गरीब-आदिवासी व महिला वर्ग को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का प्रयास कर रहे हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री ने वाराणसी बरकी ग्रामसभा में राधा महिला स्वयं सहायता समूह की चंदा देवी से बात करते हुए खड़े-खड़े भोजन करने की परम्परा और भोजन की बर्बादी पर चिंता व्यक्त की। संस्कारों पर जोर देते हुए बैठकर भोजन करने और झूठा नहीं छोड़ने और भोजन की परोसकारी करने के साथ रोजगार उपलब्ध कराने के सुझाव दिए। सच में आज देश और समाज संस्कार विहीन तथा स्वच्छ परम्पराओं से विमुक्त हो दिखावे और मानसिक दिवालियापन की ओर भागे जा रहे हैं। ‘अति भोजनं रोगमूलम’ तथा ‘जैसा खाये अन्न वैसा होए मन’ को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने भोजन जैसे उपयोगी विषय को उठाया है।
भोजन दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिस पर किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाना चाहिए। भोजन हर जीव के प्राण है। जिसे युक्तिपूर्वक करने का विधान सनातन संस्कृति से चला आ रहा है। शूरवीर की शूरता और न्यायाधिपति की विचारशीलता बिना भोजन विलीन हो जाती है। भोजन ही बल और तन की रक्षा का कारक है। जीवन बलाधीन है। यह कदापि न भूलें। बावजूद भी जन्मदिन, शादी और समारोहों में भोजन के विषय में कई लोग नासमझी करते हैं और बड़ी मात्रा में भोजन व्यर्थ कर देते हैं। विचार करना चाहिए की इस अमूल्य अन्न को किसान ने अपने बच्चे की तरह पोषित कर हम तक पहुँचाया है। एक सभ्य समाज के लिए भोजन की बर्बादी शोभा देगी क्या?
शास्त्रों में भोजन को देवत्व स्वरूप माना गया है। भोजन माँ अन्नपूर्णा की कृपा से मिलता है। इसे आदरपूर्वक ही ग्रहण करना चाहिए। जो व्यक्ति भोजन को खड़े-खड़े खाता है और झूठा छोड़ता है या किसी भी तरह से अन्न का अपमान करता है, उससे लक्ष्मी जी रुष्ठ हो जाती है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। कुण्डली का चन्द्रमा ग्रह कुपित होकर अशुभ फल देने लगता है। व्यक्ति बीमार पड़ जाता है और उसके बनते काम बिगड़ने लगते हैं।
इसीलिए जरुरी है कि हम सनातन संस्कृति, मार्कण्डेय पुराण और महाभारत के अनुसार धरती पर बैठ कर ही खाना खाएं और सेहत बनाएं। पाचन तंत्र, जठराग्नि को मजबूत बनाएं और रोगों से अपने को बचाएं।
प्रधानमंत्री की पहल पर देश के बच्चे -बच्चे को आगे आकर सनातन संस्कारों को जीवन में अपनाना चाहिए। भोजन को प्रसाद मानें। सुखासन या पालथी में बैठकर ही भोजन प्रसाद पाएं। थाली में उतना ही लें जितनी जरुरत हो। आने वाली पीढ़ियों के लिए अन्न संरक्षित करें तथा अन्नदाता किसानों का सम्मान बढ़ाएं।
निश्चित ही भोजन का सम्मान संस्कारों में लाने से देश और समाज को मानसिक तनाव, मोटापा,कब्ज, एसिडिटी जैसी विभिन्न रोगों से बचाया जा सकेगा। अन्नदेव की आदरपूर्वक परोसकारी से अन्न की बर्बादी नहीं होगी और परोसकारों को रोजगार मिलने का मार्ग प्रशस्त होगा। पूर्ण प्राण प्रतिज्ञा से संस्कारों को पुर्न स्थापित करने के लिए कमर कसी जाए तो विकसित भारत का मधुर स्वप्न साकार होकर ही रहेगा।
भगवान प्रसाद गौड़, पत्रकार, उदयपुर