राजस्थान विधानसभा उपचुनाव: गढ़ बचाने में लगी पार्टियां

राजस्थान में 13 नवंबर को उपचुनाव, पार्टियां पूरी ताकत लगा रही हैं

गोपाल लोहार
राजस्थान में आगामी 13 नवंबर को सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं। इनमें से पांच सीटों पर विधायकों के सांसद बनने के बाद इस्तीफे के कारण उपचुनाव हो रहे हैं, जबकि सलूंबर और रामगढ़ सीटों पर विधायकों के निधन के कारण यह उपचुनाव हो रहे हैं। हालांकि इन उपचुनावों के परिणामों से प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव होने की संभावना नहीं है, फिर भी यह चुनाव कई राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकते हैं।

सत्तारूढ़ दल की स्थिति

इन उपचुनावों के परिणाम मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के लिए अहम होंगे, क्योंकि यह उनकी पार्टी की राजनीतिक छवि को प्रभावित कर सकते हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में सात सीटों में से चार सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था, जबकि एक सीट भाजपा, एक सीट राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) और एक सीट भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) के पास थी। भाजपा के लिए सलूंबर सीट जीतना प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है, क्योंकि यह सीट दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा के निधन के कारण खाली हुई है। भाजपा ने सहानुभूति के आधार पर शांता मीणा को टिकट दिया है।

भाजपा का रणनीतिक प्रयास और चुनौती
भाजपा के लिए यह उपचुनाव अहम है, क्योंकि पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं मिला था। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा चाहते हैं कि इन उपचुनावों में भाजपा की जीत से पार्टी की मजबूती साबित हो और पार्टी की छवि में सुधार हो सके। भाजपा ने अपने बागियों को मना लिया है और एकजुटता का संदेश देने में सफल रही है। हालांकि, भाजपा ने इस उपचुनाव में अपनी नीति और सिद्धांतों को भी तिलांजलि दे दी है। दौसा सीट पर सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित सीट पर भाजपा ने अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है, जो कि पार्टी के परिवारवाद के आरोपों को बढ़ावा दे सकता है।

कांग्रेस की चुनौती और रणनीति
कांग्रेस पार्टी के लिए चार सीटें झुंझुनू, दौसा, देवली-उनियारा और रामगढ़ जीतने की चुनौती है। पार्टी ने इन सीटों पर मजबूत प्रत्याशी उतारे हैं, जैसे कि झुंझुनू से सांसद बने बृजेंद्र सिंह ओला के बेटे अमित ओला को टिकट दिया है। वहीं रामगढ़ सीट पर दिवंगत विधायक जुबेर खान के बेटे आर्यन खान को सहानुभूति के आधार पर मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने दौसा और देवली-उनियारा सीटों पर भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं, लेकिन कांग्रेस को अपने ही बागियों से भी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जो चुनाव में त्रिकोणात्मक मुकाबला बना रहे हैं।

रालोपा और बाप पार्टी का संघर्ष
रालोपा और बाप पार्टी के लिए यह उपचुनाव राजनीति में अपनी स्थिति को मजबूती से बनाए रखने का अवसर है। खींवसर सीट पर रालोपा के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है। पिछली बार वह केवल 2059 वोटों से जीते थे और अब उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल को चुनावी मैदान में उतारा गया है। यदि उनकी पत्नी हार जाती हैं, तो रालोपा का विधानसभा में प्रतिनिधित्व समाप्त हो सकता है, जिससे हनुमान बेनीवाल की राजनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है।
वहीं चौरासी सीट पर बाप पार्टी का भी दबदबा बढ़ रहा है, और पार्टी के बागी बदामीलाल ताबियाड़ ने चुनावी मैदान में उतरकर पार्टी के नेतृत्व को चुनौती दी है। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस ने नए उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया है।

विधानसभा उपचुनाव में तिकोने और चौकोने मुकाबले की स्थिति
झुंझुनू, देवली-उनियारा, खींवसर और चौरासी सीटों पर तिकोना और चौकोना मुकाबला होने जा रहा है। झुंझुनू में पूर्व मंत्री राजेंद्र गुड़ा के मैदान में उतरने से मुकाबला और भी कड़ा हो गया है। गुड़ा के मुस्लिम और अनुसूचित जाति के वोटों से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है, जबकि भाजपा को राजपूत वोटों का नुकसान हो सकता है।
राजस्थान विधानसभा उपचुनाव में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। भाजपा, कांग्रेस, रालोपा और बाप पार्टी सभी अपनी-अपनी सीटों को जीतने के लिए पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतरी हैं। उपचुनाव के परिणाम इन दलों की राजनीति को प्रभावित करेंगे और यह दिखाएंगे कि कौन अपनी चुनावी रणनीति में सफल हो पाया है।

By Udaipurviews

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