महाराणा भूपाल सिंह जी की 139वीं जयंती के तहत आयोजित पांच दिवसीय समारोह के तीसरे दिन ‘‘ राजस्थान की कला और संस्कृति ’’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयेाजन पूरे विश्व में मेवाड़ की कला, संस्कृति की पहचान – प्रो. दशोरा

उदयपुर 14 फरवरी / मेवाड़ के महाराणा भूपाल सिंह जी की 139वीं जयंती के तहत आयोजित पांच दिवसीय समारोह के तीसरे दिन मंगलवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संघटक साहित्य संस्थान एवं लोकलन सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में ‘‘ राजस्थान की कला और संस्कृति ’’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पूर्व कुलपति प्रो. परमेन्द्र कुमार दशोरा ने कहा कि मेवाड़ के भाल का तिलक हल्दी घाटी है पूरे विश्व में उदयपुर की कला एवं संस्कृति की पहचान है। इस जमीन के गर्भ में अगणित सांस्कृतिक प्रमाण है जिसे खोजा गया है और खोजने की आवश्यकता है। केवल महल, हवेलिया, मंदिर ही हमारी धरोहर नहीं है इसके अतिरिक्त हमारी भाषा, बोलियॉ, रहन, सहन , खान-पान, संस्कृति भी हमारी संस्कृति का भाग हैै। आने वाले समय के लिए सुदृढ मानवीय युवाओं को तैयार करने की आवश्यकता है, सुंदर राजस्थान, सुंदर भारत के निर्माण की आवश्यकता है। राजस्थान की मिटट्ी के कण कण में एवं जल स्त्रोतों  की बुंद – बुंद में कला एवं संस्कृति विद्यमान है उसके संरक्षण की आवश्यकता है।
मुख्य अतिथि ले. जनरल एन.के. सिंह राठौड़ ने कहा कि जिस समाज में कला एवं संस्कृति सुदृढ है उसी  का उत्थान संभव है। व्यक्ति बात उसी की करता ह,ै जिन्होने कुछ हासिल किया है। संस्कृति एवं कला  से देश व समाज की पहचान होती है। उन्होंने कहा कि देश की कला एवं संस्कृति को पहचान दिलाने वाले कुम्हार, चित्रकार, झुलाहे, कसारा, वारी, सिगलीगर जैसे अनेक समाज के द्वारा किये जाने वाले कार्यो को संरक्षण करने की आवश्यकता है।
हल्दीघाटी म्यूजियम के  संस्थापक मोहन लाल श्रीमाली ने कहा कि कला एवं संस्कृति तीव्र रूप से लुप्त हो रही है जिसे सहेजने की आवश्यकता हैं। उदाहरण देते हुए कहा कि शादी एवं अन्य उत्सवों पर गाये जाने वाले पारम्परिक गीतों को लय ताल के साथ रिकार्ड कर उसे संरक्षित करना आवश्यक है जिससे आने वाली पीढी इसका अनुसण कर सके। भारत में  गांव अब गांव नहीं रहे, इसके विपरीत जापान में गांवो को बसाया जा रहा है। बेल गाड़िया,  वाद्य यंत्र, आटा पीसने के पत्थर, तेल की घाणी आदि संग्रहालयों की वस्तुएं बन कर रह गई है।

तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. दिग्विजय भटनागर, डॉ. सुरेश सालवी, डॉ. डोेली मोगरा, डॉ. ललित पाण्डे्य, प्रो. गिरिशनाथ माथुर, दिनेश कोठारी ने की। कार्यक्रम के प्रारंभ में  निदेशक प्रो. जीवन सिंह खरकवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए संगोष्ठी की जानकारी दी।
आयोजन सचिव डॉ. कुल शेखर व्यास, जयकिशन चोबे ने बताया कि इतिहास के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान हेतु छगन बोहरा को – प्रो. केएस गुप्ता सम्मान, डॉ. स्वाती जैन को इतिहास के मूल स्त्रोत पर कार्य करने पर देरासी सम्मान, आजम खानं को उपरणा, माला एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मान किया गया। एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में 150 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया जिसमें चार  समानान्तर सत्रों में 50 से अधिक शोध पत्रों को प्रस्तुत किये गये।
संगोष्ठी में एक सत्र विशिष्ठ व्याख्यान सत्र के रूप में रखा गया, जिसमें डॉ. महेन्द्र भाणावत, डॉ. श्रीेकृष्ण जुगनू, डॉ. जेके ओझा, डॉ. राजेन्द्र नाथ पुरोहित ने अपने विचार व्यक्त किये।
संचालन डॉ. मनीष श्रीमाली ने किया जबकि आभार प्रो. विमल शर्मा ने दिया। संगोष्ठी में अनुराग सक्सेना, डा. जितेन्द्र मेाहन भटट्, डॉ. जीएन मेनारिया, गणेश लाल नागदा, इन्द्रजीत सिंह राणावत, डॉ. महेश आमेटा, नारायण पालीवाल, शोयब कुरेशी, संगीता जैन, कमला शर्मा सहित पीएचडी शोधार्थी व शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

पुस्तक का हुआ विमोचन:- संगोष्ठी में अक्षय लोेकजन पत्रिका के अंक जनवरी – मार्च 2023 का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।

By Udaipurviews

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