उदयपुर, 08 अप्रैल। उदयपुर जिले के विभिन्न क्षेत्रों में सोमवार को सोमवती अमावस्या को लेकर व्रती महिलाओं ने पीपल वृक्ष की पूजा अर्चना की। पूजा के बाद उन्होंने पति की दीर्घायु व परिवार की सुख समृद्धि की कामना की। सोमवती अमावस्या को लेकर विभिन्न जगहों पर स्थित पीपल वृक्षों के नीचे व्रती महिलाओं की भीड़ नजर आई।
व्रती महिलाएं प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर समीप स्थित पीपल वृक्ष की पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंची। उदयपुर की प्रसिद्ध झील पिछोला सहित प्राचीन मान्यताओं वाले गंगू कुण्ड पर भी श्रद्धालु महिलाओं का तांता नजर आया। जिले भर में पारम्परिक महत्व रखने वाले नदीघाटों, कुण्डों पर भी आस्था की डुबकी का दौर रहा।
महिलाओं ने पीपल पेड़ की 108 बार परिक्रमा कर अपने परिवार के सुख समृद्धि की कामना की। साथ ही महिलाओं ने वहां मौजूद पुरोहित से सोमवती अमावस्या की कथा भी सुनी।
पंडित यतेन्द्र दाधीच ने बताया कि जो अमावस्या सोमवार को आती है, उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं और उसका प्राचीन शास्त्रों में महत्व माना गया है। सोमवती अमावस्या के दिन स्नान, ध्यान, जप और दान अनंत फलदायी होता है। उन्होंने कहा कि पीपल के वृक्ष के मूल में ब्रह्मा, त्वचा में विष्णु, शाखा में शिव तथा सभी पत्तों में देवताओं का वास माना जाता है। मान्यता है कि पीपल वृक्ष की पूजा करने से सभी संतापों का नाश होता है। इस अवसर पर गऊ-शाला में श्रद्धालुओं ने हरी घास, लापसी गऊ माताओं को खिलाई।
पीपल का महत्व : संस्कृतिविद कहते हैं कि भारतीय प्राचीन परम्पराओं में विज्ञान के साथ पर्यावरण संरक्षण भी निहित है। हर पूजा-अर्चना में किसी न किसी वृक्ष अथवा पौधे, नदी-सरोवर आदि पर जाकर पूजन का विधान जोड़ा गया है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि इस विधान की पालना करनी है तो सम्बंधित वृक्ष-पौधे, सरोवर, कुण्ड आदि का संरक्षण भी आवश्यक है। पीपल को श्रेष्ठ वृक्ष यानी वृक्षों का राजा माना गया है। आयुर्वेद में पीपल का बड़ा महत्व है। पीपल का पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देने वाला पेड़ है। इसमें प्रोटीन, फैट, कैल्शियम, आयरन और मैंगनीज जैसे कई जरूरी पोषक तत्व मौजूद होते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक पीपल के पेड़ से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। इस पेड़ में मौजूद गुण सांस, दांत, सर्दी-जुकाम, खुजली और नकसीर जैसी परेशानियों को दूर करने में कारगर हैं। स्वास्थ्य के लिए पीपल को अति उपयोगी माना गया है। पीलिया, रतौंधी, मलेरिया, खांसी और दमा तथा सर्दी और सिर दर्द में पीपल की टहनी, लकड़ी, पत्तियों, कोपलों और सीकों के प्रयोग का उल्लेख मिलता है। भारत के प्राचीन ऋषि तुल्य विज्ञानियों ने प्रकृति को जीवन से जोड़ने के लिए परम्पराओं में पर्यावरण संरक्षण का विचार सम्मिलित किया है, इसे वृहद स्तर पर समझने और समझाने की जरूरत है।