-डूंगरपुर का गौरव है श्रीनाथजी
-जुगल कलाल
डूंगरपुर, 25 अगस्त । देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य रूप श्रीनाथजी की पूजा की जाती है। श्रीनाथजी का मुख्य मंदिर राजस्थान के नाथद्वारा में स्थित है, जहां देश-विदेश से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नाथद्वारा में प्रतिष्ठित श्रीनाथजी की मूर्ति का डूंगरपुर से गहरा और ऐतिहासिक संबंध रहा है? इस अनसुनी और आध्यात्मिक कथा को जानना हर भक्त के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर।
औरंगजेब के आतंक से निकली श्रीनाथजी की मूर्ति : यह कथा तब की है जब मुगल शासक औरंगजेब ने हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश दिया था। इसी क्रम में, उसने श्रीनाथजी की मूर्ति को भी नष्ट करने का मन बनाया। ऐसी स्थिति में, श्रीनाथजी की मूर्ति को बचाने के लिए महाप्रभु वल्लभाचार्य के वंशज, गोस्वामी विट्ठलनाथजी के पौत्र दामोदरदासजी ने मूर्ति को लेकर डूंगरपुर की ओर प्रस्थान किया। वे अपनी सारी संपत्ति त्यागकर सिर्फ श्रीनाथजी की मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के उद्देश्य से निकले थे।
डूंगरपुर में श्रीनाथजी की मूर्ति का आगमन : जब श्रीनाथजी की मूर्ति को डूंगरपुर लाया गया, तो कई दिनों तक यह मूर्ति शहर की सीमा में रथ में विराजित रही। उस समय के तत्कालीन महारावल जसवंत सिंह प्रथम तीर्थयात्रा पर गए हुए थे, जिसके कारण स्थानीय अधिकारियों ने मूर्ति को डूंगरपुर में ही स्थापित करने का साहस नहीं दिखाया। श्रीनाथजी की मूर्ति को प्रतिष्ठित करने की अनुमति नहीं मिलने के कारण, मूर्ति ने डूंगरपुर में कई दिनों तक रथ में ही विश्राम किया। इसके बाद, मूर्ति को मेवाड़ राज्य में ले जाया गया, जहां अंततः विक्रम संवत 1728 फाल्गुन कृष्णा सात शनिवार के दिन नाथद्वारा में श्रीनाथजी के विग्रह की प्रतिष्ठा की गई।
महारावल पूंजराज ने बनवाया श्रीनाथजी का मंदिर : हालांकि, श्रीनाथजी की मूर्ति को डूंगरपुर में स्थापित नहीं किया जा सका, लेकिन इस घटना के बाद तत्कालीन महारावल पूंजराज (पूंजा) ने डूंगरपुर में गेपसागर की पाल पर श्रीनाथजी का एक भव्य मंदिर बनवाया। इस मंदिर में विभिन्न देवी-देवताओं की 52 डेरियों में विमोहिनी प्रतिमाएं स्थापित की गईं। इस मंदिर का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व डूंगरपुर के लोगों के दिलों में आज भी बना हुआ है।
आध्यात्मिक इतिहास का एक अनमोल पन्ना : डूंगरपुर के इतिहासकार महेश पुरोहित ने भी अपनी किताब में इस घटना का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि औरंगजेब के भय से गोस्वामी विट्ठलनाथजी के पौत्र श्रीनाथजी की मूर्ति लेकर निकले और कई स्थानों पर रुकते हुए डूंगरपुर पहुंचे। यहां गेपसागर जलाशय की पाल पर उन्होंने मूर्ति को कुछ समय के लिए विराजित किया। इस दौरान मूर्ति रथ में ही स्थित रही और पूजा-अर्चना होती रही। यह घटना दो वर्ष चार मास और सात दिनों तक चली, जब तक कि अंततः श्रीनाथजी की मूर्ति को नाथद्वारा में प्रतिष्ठित नहीं किया गया।