उदयपुर, 14 अक्टूबर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में सोमवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि जीवन में सुख पाने के चार सूत्र हैं-संग्रह में सुख नहीं, दान देते रहें तो सुख मिलेगा, सेवा करें, सुख की अनुभूति होगी, सर्वत्र समन्वय रखें, संघर्ष नहीं करें एवं समभाव रखें तो सुख मिलेगा। धनवान होना बुरा नहीं है, उस पर पकड़ व आसक्ति बुरी है, उसे छोड़ें। जब भी सेवा का अवसर मिले, अवश्य करें। सबके साथ समन्वय का गुर सीखें, किसी के भी साथ संघर्ष की स्थिति न आने दें। परिस्थिति कैसी भी हो, यश मिले या अपयश मिले, आदर मिले या अनादर तब भी हम समभाव रखें। मनुष्य दो प्रकार के होते हैं-संसारी एवं साधक। संसारी संसार बढ़ाने वाली चीजों की चाह करता है, जबकि साधक सिद्धि प्राप्त करने को तत्पर रहता है। हम अपनी आत्मोन्नति की कामना करें, परमुखपेक्षी नहीं बनें। पर की यही सोच हमारे विकास के अवरोध का कारण है। धन से दान नहीं होता, मन हो तो ही दान होता है। मम्मण सेठ के पास बहुत धन था, पर मन बिल्कुल न था। पूणिया श्रावक के पास अत्यन्त सीमित साधन थे, पर मन बहुत था और इसलिए हजारों वर्षों बाद भी आदर्श श्रावक के रूप में जाने जाते हैं। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने कहा कि दान देने की भावना होने पर भी दान न देना दानान्तराय है। आत्म गुणों की प्राप्ति में रूकावट का होना लाभान्तराय है। सब सुख-सुविधाओं, वस्तुओं के होने पर भी भोग-उपभोग नहीं कर पाना भोगान्तराय है। उत्साह एवं पुरूषार्थ के रहने पर भी सम्यक्त्व पराक्रम की प्राप्ति न होना तथा आत्म कल्याण में विघ्न उत्पन्न होना वीर्यान्तराय है। तपस्वी संतरत्न श्री विश्वास मुनि जी म.सा. ने अम्बड़ मुनि के चरित्र पर प्रकाश डाला। मीडिया प्रभारी डॉ. हंसा हिंगड़ ने बताया कि आज आसीन्द श्रीसंघ एवं ब्यावर श्रीसंघ उपस्थित हुआ। ब्यावर श्रीसंघ के अध्यक्ष सम्पतराज जी ढेड़िया ने ब्यावर चातुर्मास करने की विनती प्रस्तुत की। महिला मंडल अध्यक्षा कौशल्या ढेड़िया एवं श्राविकाओं ने भी गीतिका द्वारा भाव व्यक्त किए। प्रकाश श्रीश्रीमाल ने भी विचार व्यक्त किए। सभा में चित्तौड़ , राजनांदगांव , इरोड , तमिलनाडू , महाराष्ट्र , दिल्ली , सूरत आदि स्थानों से भी भक्तगण उपस्थित हुए ।
परिस्थिति कैसी भी हो, यश मिले या अपयश मिले, आदर मिले या अनादर तब भी हम समभाव रखें : आचार्य विजयराज
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