– आयड़ जैन तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचन की धूम जारी
– साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की
उदयपुर 05 सितम्बर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में मंगलवार को विविध आयोजन हुए । महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सान्निध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने बताया कि हमारे मन की स्थिति कैसी होती चाहिये? मन अस्वस्थ हो तो शरीर स्वस्थ होते हुए भी कोई भी वस्तु सुख नहीं दे सकती। सुरज का आधार सुख का मूल क्या है मन। मन जितना सबल होगा. उतना सुख मिलेगा और जितना निर्बल होगा, उतना दु:ख मिलेगा। डिप्रेशन वाले रोगी को क्या होता है? उसका मन कमजोर होता है, वह आत्महत्या क्यों करता है? क्योंकि उसका मन बहुत कमजोर होता है। आप सोच रहे होंगे कि मन से रहित व्यक्ति अधिक सुखी होते होंगे? जैसे एकेन्द्रिय जीव, कोणा वाले व्यक्ति लेकिन वे जिंदगी में कभी भी सुखी नहीं हो सकते। जिन्हें मन मिला है। वे ही उच्चतम सुख को पा सकते है। अत: सन रहित जीव ही सुखी होते हैं, ऐसा नहीं है। पावरफुल मन वाले अधिक सुखी होते है। जिनका मन कमजोर है, वे दु:खी हैं और जिनका मन अधिक कमजोर है वे अधिक दु:खी है। यानि कि यदि हमें सुखी होना हो तो हमारा मन ज्यादा पावरफुल होना चाहिए हमारे सुख-दु:ख का आधार मन पर ही है। पावरफुल मन-सुख और कमजोर मन – दु:ख। इस प्रकार सुख दु:ख का सिद्धान्त निश्चित हो गया। हमें हमारे मन पर विशेष ध्यान देना है। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।