मेवाड़ में दबदबा घटेगा
भाजपा के पास उनके जैसा दूसरा नेता नहीं, जो दक्षिणी राजस्थान में सर्व मान्य हो
-सुभाष शर्मा
उदयपुर। उदयपुर शहर विधायक और नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के असम का राज्यपाल बनाए जाने के बाद सियासी हलचल बढ़ गई है। उदयपुर शहर ही नहीं, बल्कि समूचे मेवाड़—वागड़ की राजनीति पर इसका असर देखने को मिलेगा। इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव हैं और दक्षिणी राजस्थान में भाजपा के इकलौते सर्वमान्य नेता के राज्यपाल बनाए जाने से राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं शुरू हो गई हैं कि मेवाड़—वागड़ की राजनीति पर कितना असर पड़ सकता है। खासकर उदयपुर शहर से भाजपा में विधायक पद का दावेदार कौन होगा?
राजनीति में खासा दबदबा रखने वाले कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद दक्षिणी राजस्थान में मोहनलाल सुखाड़िया के बाद एक बार फिर सर्वमान्य नेता की जगह खाली हो जाएगी। मेवाड़—वागड़ में शामिल उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिले शामिल हैं। जिनमें 28 विधानसभा सीट हैं। सातों जिलों में एक भाजपा में अब एक भी ऐसा नेता नहीं, जिसकी राजस्थान तो दूर समूचे मेवाड़ में चलती हो।
कयास ये लगाए जा रहे हैं कि गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बनाए जाने से विशेष रूप से मेवाड़ और वागड़ की राजनीति में उनका प्रभाव अब कम हो जाएगा। वहीं दूसरी तरफ यह भी चर्चाएं हैं कि संवैधानिक पद पर जाने के बाद भी यहां की राजनीति में कटारिया की ही चलेगी। हालांकि यह वक्त आने पर पता लगेगा। कटारिया ही एकमात्र ऐसे नेता है, जिन्होंने उस मिथक को तोड़ा, जिसमें कहा जाता था कि जिस दल ने मेवाड़ जीता, उसके हाथ ही राजस्थान की सत्ता होगी। गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के आठ विधायक ही मेवाड़ से निर्वाचित हो पाए थे।
अभी तक कटारिया ही सर्वेसर्वा रहे, आगे कौन?
अभी तक विधानसभा चुनाव से लेकर पालिका, जिला परिषद और पंचायत चुनावों में भाजपा की ओर से कौन चुनाव लड़ेगा और किसे पार्टी से दरकिनार कर दिया जाएगा, यह सब भाई साहब यानी कटारिया के इशारे पर होता रहा है। किन्तु अब यह यक्ष प्रश्न खड़ा हो जाएगा कि मेवाड़ की राजनीति किसके इशारे से चलेगी। पिछले तीन दशक से उदयपुर में निकाय पर भाजपा का कब्जा चला आ रहा है और यह भाईसाहब ही तय करते हैं कि इसका मुखिया कौन होगा।
सैकण्ड लाइन नहीं बनने दी!
कटारिया की राजनीति पर यह आरोप भी हमेशा लगाया जाता रहा है कि उन्होंने कभी भी सैकण्ड लाइन नहीं बनने दी। उदयपुर शहर विधानसभा का मामला हो या मेवाड़ का। दोनों ही मामलों में भाईसाहब की चली। कटारिया को मेवाड़ में किसी नेता से पार्टी में चुनौती मिली तो वह दिवंगत किरण माहेश्वरी ही थी। जो उदयपुर सांसद रही और बाद में उन्होंने राजसमंद को अपना नया घर बना लिया था। इसी तरह वल्लभनगर सीट से कांग्रेस को दमदार चुनौती देने वाली भाजपा के नेता रहे रणधीर सिंह भीण्डर को भाजपा छोड़नी पड़ी।
उदयपुर में दावेदार कौन, किनकी है चर्चा?
कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद अब उदयपुर में उनका राजनीतिक विकल्प कौन होगा, यह चर्चा शु्रू हो गई हैं। अभी तक जो नाम सामने आ रहे हैं, उनमें नगर निगम उदयपुर के उप महापौर पारस सिंघवी के अलावा उदयपुर शहर जिलाध्यक्ष रविन्द्र श्रीमाली, भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष अलका मूंदड़ा भी शामिल हैं। इनके अलावा दो अन्य नाम ऐसे हैं, जिनकी भी चर्चा जोरों पर हैं। उनमें से एक मेवाड़ राजघराने के सदस्य लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ तथा मावली विधायक धर्मनारायण जोशी शामिल हैं। लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने राजनीति में उतरने को लेकर उनका बयान भी सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा कि सभी के लिए विकल्प खुले हैं और उनमें वह भी शामिल हैं। इधर, विधायक धर्मनारायण जोशी समर्थकों को भी आशा है कि संभवत: उन्हें उदयपुर शहर से अवसर मिले। जोशी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजदीकी बताए जाते हैं तथा संगठन में मेवाड़ की यात्रा दुपहिया वाहन पर मोदी को कराने वाले सक्रिय नेता रहे हैं। हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भाजपा जैन या ब्राह्मण प्रत्याशी को ही विधानसभा चुनाव में उतारेगी।
आठ बार विधायक और एक बार सांसद रहे कटारिया
भाजपा नेता गुलाबचंद कटारिया अपने राजनीतिक जीवन में आठ बार विधायक तथा एक बार लोकसभा में सांसद निर्वाचित हुए। तत्कालीन भाजपा सरकार में साल 2004 से 2008 और वर्ष 2014 से 2018 तक कटारिया गृहमंत्री रहे हैं। तब वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री थी। इससे पहले भैरोंसिंह शेखावत की सरकार में कटारिया ने 1993 से 1998 के बीच शिक्षा मंत्री तथा पंचायती राज मंत्री रहे।