(विश्वकर्मा जयंती के उपलक्ष्य में)
शिल्पशास्त्र के कर्ता भगवान विश्वकर्मा देवताओं के आचार्य है, मतलब विश्व के गुरु, सम्पूर्ण सिद्धियों के जनक है, वेदों के दृष्टा एवं विज्ञान व शिल्प के जनक है ।
आप प्रभास ऋषि के पुत्र है और महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र के भानजे है। अर्थात अंगिरा के दौहितृ (दोहिता) है। आप ने ही श्रीगणेशजी के विवाह में आचार्य की भूमिका निभाई थी ।
विश्वकर्मा के पाँच पुत्र हुए –
मनु , मय , त्वष्टा , शिल्पी और देवज्ञ ।
भगवान के पांच पुत्र आगे जाकर अलग अलग विद्या में प्रवीण बने । वर्तमान में इनको पंचाल , सुथार ,सोनी, शिल्पकार (सोमपुरा) और कंसारा कहा जाता है ।
मनुमयस्तथा त्वष्टा शिल्पी विश्वज्ञ एवं च।
विश्वकर्मा सुता होते रथकारास्तु पंच च ।।
भगवान विश्वकर्मा व उनके पुत्रों को शिल्पशास्त्र , विनिर्माण, रत्न आभूषण के विविध उत्पाद और उद्योग जगत का अविष्कार करने वाले माने जाते है, और सभी कारीगर उनकी पूजा करते हैं।
पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी के सृष्टि विस्तार हेतु स्वयं भगवान विष्णु ने एक ऐसा रूप धारण किया, जो अनुसंधान कर विज्ञान और आविष्कारों द्वारा सम्पूर्ण जगत में भौतिक सुविधाओ से सुसम्पन्न बना सकें ।
भगवान के इस स्वरूप की चार भुजाये है जिनके एक हाथ में गज (नापने का साधन) दूसरे हाथ में डोरी , तीसरे हाथ में कमण्डल और चौथे हाथ में पुस्तक है , शरीर पर यज्ञोपवित है । सर्वप्रथम पृथु ने भगवान के इस स्वरूप की स्तुति कर गुणगान किया ।
पृथुना प्रार्थितस्तत्र प्रजानां हितकाम्यया ।
भगवान और उसके पाँच पुत्रों ने मिल कर उत्तम आवास की रचना की , नगर व राजमार्ग बनाएं । उत्तम नगर की रचना के बाद कोट और किले बनाएं। राजा पृथु ने एक सभा बुलाई और सभा में भगवान विश्वकर्मा की दया से अपने आप को निर्भय व सुरक्षित होने के कारण प्रेम पूर्वक पूजन आराधना की । तत्पश्चात राजा पृथु ने माघ शुक्ल त्रयोदशी (आज के दिवस) को भगवान प्राकट्य के दिवस को आम जन के साथ मिलकर एक महोत्सव मनाया , उस महोत्सव में तोरण , पताका , पल्लव से राज मार्ग को सजाया गया ।
मङ्गल वाद्य बजाये गए । ब्राह्मणों ने वेद पाठ कर विश्वकर्मा और उसके पाँचो पुत्रों को ऊँचे दिव्य सिंहासन पर बिठाया । उनका पूजन करके स्तुति गुणगान किया । सारे राज्य में आनन्द और उत्सव इस प्रकार प्रतिवर्ष मनाया जाने लगा । वही वर्षो पुरानी परंपरा कायम है ।
निर्माण के देव है विश्वकर्मा:
आज विश्व में उद्योग जगत , विनिर्माण , तकनीकी शिक्षा , इंजीनियरिंग अस्त्र – शस्त्र और विज्ञान के सूक्ष्म आविष्कार की प्रेरणा का मूल स्रोत आप से ही है । जैसे विद्या की देवी सरस्वती है, ठीक वैसे आप निर्माण के देव है । आपके पाँच पुत्रों द्वारा सोना , चाँदी , ताम्र , लकड़ी, पत्थर व अन्य धातु से विभिन्न वस्तुओं, भवनों का निर्माण किया गया जो आज तक बढ़ता गया ।
भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर अस्त्र शस्त्र के रचयिता , त्रिलोक के प्रणेता, विस्तारकर्ता भगवान विश्वकर्मा को याद करते हुए इस विज्ञान के युग मे बढ़ते विनिर्माण , उद्योग, संचार और कम्युनिकेशन द्वारा अपने देश के साथ साथ विश्व के कल्याण में जुड़े विश्वकर्मा व उनके पुत्रो को भी नमन है जो कर्म को कामधेनु मानने हुए सदैव सकारात्मक निर्माण देकर जगत के हित में अपना योगदान देते रहेंगे ।
आलेख-राजेंद्र पंचाल, सामलिया, जिला डूंगरपुर