आचार्य भद्रबाह ने उवसग्गहर स्तोत्र की रचना की-डॉ.संयमलताश्री
उदयपुर। सेक्टर 4 श्री संघ में विराजित श्रमण संघीय जैन दिवाकरिया महासाध्वी डॉ श्री संयमलताजी म. सा.,डॉ श्री अमितप्रज्ञाजी म. सा.,श्री कमलप्रज्ञाजी म. सा.,श्री सौरभप्रज्ञाजी म. सा. आदि ठाणा 4 के सानिध्य में भगवान पार्श्वनाथ माँ पद्मावती के 16 एकासन का समापन हुआ।
मंगलाचरण के पश्चात सर्वप्रथम महामंगलकारी उवसग्गहरम् स्तोत्र का जाप हुआ। धर्मसभा को संबोधित करते हुये महासती संयमलता ने कहा श्रवण बेलगोला में दो पर्वत हैं। एक बाहुबली का, दूसरा भरत का चंद्रगिरि पर्वत है। चंद्रगिरि पर्वत की एक गुफा में बैठकर आचार्य भद्रबाह ने उवसग्गहर स्तोत्र की रचना की। म.सा. ने आगे कहा- उवसग्गहरम् स्तोत्र सभी उपसर्ग, सभी संकटों का हरण करता है। भगवान पार्श्वनाथ प्रक बार वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ खड़े थे। कमठ वहा से निकल रहा था। पूर्वभव का वैर जगा, भयंकर जलवृष्टी करता है। पार्श्वनाथ के नासिका तक पानी आ गया, फिर भी भगवान पार्श्वनाथ अविचल मुद्रा में खड़े थे। पार्श्वनाथ पर संकट आया तो धरणेन्द्र -पद्मावती का सिंहासन कंपायमान हुआ। अवधिज्ञान से जाना और सेवा में पहुंचकर देवी पद्मावती ने अपनी नाग देह से कुण्डली, बना पारस प्रभु को उपर उठाया और धरणेंद्र ने अपने सात फणो की छत्र कर उपसर्ग निवारण किया। तब से वर्तमान तक जो भी श्रद्धा भाव से भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति था जाप करता है उसकी मनोकामना मां पद्मावती अवश्य पूर्ण करती है। महासती कमलप्रला ने एकासन तप कथा का वाचन किया। 1000 भाई बहनो ने एकासन व्रत करके कर्माे की निर्जरा की।