भाषा, संस्कृति और विविधता: विश्वगुरू भारत की पहचान विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन भारत विश्व गुरू था और रहेगा – डाॅ. योगानंद शास्त्री

उदयपुर 15 फरवरी / भारत विश्व गुरू था और रहेगा इसमें कोई संदेह नहीं है इसके लिए हमंे हमारे प्राचीन मूल्यों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पुनस्र्थापित करने की जरूरत है। उक्त विचार शनिवार को राजस्थान विद्यापीठ के संघटक शिक्षा संकाय , लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय द्वारा भाषा, संस्कृति और विविधता: विश्वगुरू भारत की पहचान विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में दिल्ली विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. योगानंद शास्त्री ने बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किए। उन्होंने वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में भारतीय नेतृत्व को आधिरेखाकित करते हुए पश्चिम चकाचैंध से दूर रहने हेतु प्रेरित किया । वृहत भारत का विशाल स्वरूप बताते हुए सांस्कृतिक इतिहास में भारतीय संस्कृति विरासत का उल्लेख कर भारतीय संस्कृति के समृद्ध गौरव पर प्रकाश डाला । उन्होंने चीनी यात्रियों के  उदाहरण के माध्यम से चीन ने भारतीय ज्ञान विज्ञान को चीन हेतु चीनी भाषा में अनुदित करने हेतु निर्देशित किया था । मेकाले शिक्षा व्यवस्था के परिणाम स्वरुप भारतीय संस्कृति विरासत व विविधता को विघटित करने का प्रयास किया।  भारतीय भाषाए,ं अनुभव एवं उदाहरण के माध्यम से भारतीय भाषायी गौरव सांस्कृतिक समृद्धि एवं वैविद्यया के माध्यम से विश्व गुरु भारत की संकल्पना को सदन के सम्मुख रखा ।
कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने कहा कि ज्ञान के आधार पर भारत पुनः विश्व गुरू बनने की ओर अग्रसर है जिसमें भारतीय भाषा, संस्कृति और साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत में नालंदा, तक्षशिला, वल्लभी जैेसे शिक्षा के केन्द्र बने जहाॅ विश्व से विद्यार्थी शिक्षा दीक्षा लेने यहाॅ आते थे।  पहला विश्वविद्यालय स्थापित  करने का श्रेय भारत को जाता है। भारतीय ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ कर देखा जा सकता है। हमे अपनी मातृ भाषा को अपने जीवन हिस्सा बनाने, हमारे ज्ञान परम्परा को रिकोर्डिंग करना और हमारी ज्ञान परम्परा को आत्मसात करना जरूरी है। उन्होंने प्राचीन समृद्ध भारत के ज्ञानात्मक एवं साहित्य पक्ष की समृद्धता को  सदन के सम्मुख रखा , साथ ही सामूहिक तथा उपस्थित ज्ञान भंडारा व स्वयं को समझने जानने की आवश्यकता पर निर्देशन प्रदान किया
अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति भंवर लाल गुर्जर ने कहा कि हमें हमारी भाषा में निपूर्णता लाना होगा। भाषा मर्यादित होनी चाहिए, हम जो सम्मान दूसरों से चाहते है वही सम्मान हमें भी देना होगा।
विशिष्ट अतिथि प्रो. श्रीनिवासन अय्यर ने भारतीय ज्ञान और  शास्त्र पर प्रकाश डालते हुए दोनों के सामूहिक महत्व का उल्लेख किया । उन्होंने बताया कि स्थावर जंगम के साथ सामान्य की भावना भारतीय गुरुत्व की सतत स्थापना करती है ।
प्रारंभ में प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग ने अतिथियों का स्वागत किया, संयोजक डाॅ. रचना राठौड़ ने एक दिवसीय संगोष्ठी की जानकारी देते हुए बताया कि आठ विषयों पर विभिन्न तकनीकी सत्रों में चर्चा की गई जिसमें 180 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
इस अवसर पर डाॅ. बलिदान जैन, डाॅ. सुनिता मुर्डिया, डाॅ. अमी राठौड़, डाॅ. भूरालाल श्रीमाली, डाॅ. अपर्णा श्रीवास्तव सहित अकादमिक सदस्य, विद्यार्थी एवं पीएचडी स्कोलर्स उपस्थित थे।
संचालन डाॅ. इंदु आचार्य ने किया जबकि आभार डाॅ. बलिदान जैन ने जताया।

By Udaipurviews

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