‘कुंभ: समरसता का पर्व और सनातन संस्कृति का वैश्विक स्वरूप’ – संत डॉ आशीष गौतम

‘ महाकुम्भ: भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का वैश्विक प्रतीक’ , विषय पर व्याख्यानमाला आयोजित।
-29 जनवरी मौनी अमावस्या का भी होगा बड़ा महत्व 
उदयपुर, 28 अक्टूबर। कुंभ मेला संतों और मुनियों की साधना का केंद्र होता है, जहां वे विश्व के कल्याण के लिए समर्पित रहते हैं। उनके तप, साधना और आशीर्वाद से संपूर्ण समाज और संस्कृति में सद्भाव और शांति का संचार होता है।,यह बात हरिद्वार से आए साधक संत व शिक्षाविद डॉ आशीष गौतम ने सोमवार को यहां राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति सचिवालय सभागार में  आयोजित प्रोफेसर बीएस गर्ग स्मृति तृतीय व्याख्यानमाला में मुख्य वक्ता के रूप में कही।
‘ महाकुम्भ: भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का वैश्विक प्रतीक’ , विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में उन्होंने कहा कि कुंभ मेले से जुड़ा पहला प्रसंग देवताओं और असुरों के संघर्ष और समर्पण पर आधारित समुद्र मंथन है। इस प्रसंग में देवता और दानव के बीच के भिन्न व्यक्तित्व और प्रवृत्ति का वर्णन किया गया, जहां असुर दुख का कारण बनते हैं और देवता अपने आनंद का त्याग कर दूसरों की प्रसन्नता में संतोष पाते हैं। यह प्रसंग भारतीय समाज में देवत्व की भावना को प्रकट करने और उसे प्रेरित करने वाला है। इस प्रसंग का मुख्य उद्देश्य देवत्व का प्रतीक त्याग और राक्षसी प्रवृत्ति स्वार्थ को दर्शाना है। कुंभ मेला हमारी सनातन परंपरा को वैश्विक दृष्टिकोण देता है और इस पर्व में व्यक्ति का कर्तव्य आत्म-शुद्धि के माध्यम से मानवता की सेवा करना है। यह मेला केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए प्रेरणादायक बन चुका है, जो आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर को जीवंत रखे हुए है। उन्होंने कहा कि 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के विशेष दिन संत और महात्मा एकत्रित होंगे और श्रद्धालुओं को अपने दर्शन मात्र से लाभान्वित करेंगे।
व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति कर्नल प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि कुंभ मेला भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और मानवता का ऐसा पर्व है, जो समरसता, ज्ञान, और आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ हमारे जीवन को जोड़ता है। यूनेस्को द्वारा इसे ‘मानवता की अमूर्त विरासत’ के रूप में मान्यता दी गई है, जिससे इसकी प्रासंगिकता और गहराई और भी बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि इस महापर्व का हर हिस्सा एक मंत्र के समान है, जो समूचे विश्व में एकता का संदेश देता है। ‘सर्वजन हिताय’ की भावना को समर्पित कुंभ का यह पर्व हमारे संस्कार, संस्कृति, और परंपरा की जीवन्त झलक है, जो पीढ़ियों से ज्ञान, भक्ति और आस्था की धारणा को बनाए हुए है।
उन्होंने कहा कि कुंभ का महापर्व समुद्र मंथन की उस कथा से प्रेरित है, जिसमें देवता और असुरों ने एकता और समर्पण से अमृत का संधान किया। कुंभ केवल एक भौतिक आयोजन नहीं, बल्कि इसके पीछे आध्यात्मिक, ज्योतिषीय और सांस्कृतिक अर्थ छिपा है। इसका प्रतीकात्मक अर्थ है आत्मा की शुद्धि और आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की यात्रा। इस पर्व को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का प्रतीक माना गया है, जो पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखता है। अनेकों ऋषि, संत, और मुनि इस महापर्व में शामिल होकर समाज और संसार के कल्याण की कामना में साधना करते हैं।
अध्यात्म और सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाना हर शिक्षक का दायित्व 
कुलपति प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि अध्यात्म और सांस्कृतिक धरोहर को आगे की पीढ़ियों तक पहुंचाना हर शिक्षक का दायित्व होता है। भारतीय संस्कृति का कुंभ पर्व न केवल हमारे लोक कलाओं, भक्ति भावों और साधना पद्धतियों का संरक्षण करता है, बल्कि हमारे जीवन के मूलभूत सिद्धांतों को नई पीढ़ी में आत्मसात करवाता है। कुंभ का पर्व विभिन्न धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संगठनों का एक जुट आयोजन है, जो हमारे समाज में सद्भाव, एकता और सहिष्णुता का संदेश फैलाता है। कुंभ में पाँच करोड़ से भी अधिक श्रद्धालु और साधक शामिल होकर साधना, ध्यान और संस्कृति का प्रसार करते हैं।
साधना और आत्मिक शुद्धि का केंद्र 
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पर्यावरणविद् समाजसेवी प्रो अनिल सिंह ने कहा कि कुंभ पर्व केवल बाहरी आयोजन नहीं, बल्कि यह हमारे व्यक्तित्व और आत्मा के निर्माण का साधन भी है। उन्होंने इस महोत्सव को मानसिक और आध्यात्मिक भाव के व्यक्तित्व निर्माण का महत्वपूर्ण स्रोत बताया। वे बताते हैं कि कुंभ का हर हिस्सा आत्मा को शुद्ध कर उसे परमात्मा से मिलाने का प्रतीक है। ऋषि-मुनियों का मानना है कि यह पर्व शुद्धि और साधना का ऐसा मार्ग है, जो हमें आत्मा के असली उद्देश्य की ओर ले जाता है। इसे केवल भारत का सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक ऐसा पर्व कहा जाता है, जो समग्र विश्व के कल्याण की दिशा में कार्य करता है।।
’’मेवाड़ के लिए गौरव का प्रतीक’’
विशिष्ट अतिथि विद्यापीठ कुल के कुल प्रमुख बीएल गुर्जर ने कहा कि कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि मेवाड़ के गौरव और भारतीय सभ्यता का प्रतीक भी है। इसे मेवाड़ का आशीर्वाद और गौरव माना जाता है, जहाँ संत ऋषि, मुनि अपने ज्ञान और अनुभव को समाज के साथ साझा करते हैं। शनि सिंह जी का कहना है कि इस कुंभ के माध्यम से भारतीय संस्कृति और सभ्यता को वैश्विक मंच पर स्थापित किया जा रहा है।
कार्यक्रम में शिक्षाविद डॉ शनि सिंह व पीठ स्थविर डॉ कौशल नागदा ने भी विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर संचालन डॉक्टर हरीश चौबीसा ने किया तथा आभार लोकमान्य तिलक बीएड महाविद्यालय डबोक की प्राचार्य प्रो सरोज गर्ग ने दिया।
इस अवसर पर डॉ. रचना राठौड , डॉ. बलिदान जैन,  डॉ. रोहित कुमावत डॉ.अमी राठौड़ डॉ अमित दवे, डॉ पुनीत पांड्या,शुभम् पुरोहित, कृष्णकांत कुमावत, जितेंद्र सिंह, लहरनाथ , प्रताप सिंह आदि उपस्थित रहे।
By Udaipurviews

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