उदयपुर, 23 अक्टूबर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि जीवन में तीन शब्दों का महत्व है-निर्वाह, निर्माण एवं निर्वाण। व्यावहारिक जीवन में जीवन का निर्वाह करने के लिए अन्न, जल एवं हवा जरूरी है। जीवन का निर्माण करने में संत, ग्रंथ एवं पंथ का अपना महत्व है। संत एवं पंथ के बीच में ग्रंथ शब्द है जिनके आधार पर संत प्रवचन देत हैं एवं प्रभु की त्रिकालिक सत्यमय देशना जन-जन तक पहुंचाते हैं। पंथ कोई बुरा नहीं है, किंतु पंथवाद, सम्प्रदायवाद बुरा है। केवल मैं ही अच्छा व सच्चा हूं, यह आग्रह बुरा है। हमें सामने वाले की बात भी सुननी चाहिए। सुनने से ही ज्ञान होता है इसलिए भगवती सूत्र में सवणे णाणे का ही थोकड़ा चलता है। इन सबके होने पर श्रवण से ज्ञान प्राप्त हो जाता है। श्रवण हेतु संतों की शरण एवं सत्संग जरूरी है। संतों की वाणी सुनने से सम्यक् दर्शन एवं सम्यक् ज्ञान रूपी पथ एवं सम्यक् चरित्र रूपी पाथेय मिलेगा। हम अपनी दशा व दृष्टि को सम्यक् रखें तो दिशा भी बदल जाएगी। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने कहा कि जीवन में उच्च भावों का होना सौभाग्य की बात होती है, इस हेतु पैसे का होना न होना कोई मायने नहीं रखता। प्रतिदिन देने की भावना भानी चाहिए। यदि दाता शुद्ध हो, दिया जाने वाला पदार्थ शुद्ध हो, लेने वाला अष्ट प्रवचन माता का आराधक एवं पंचमहाव्रतधारी हो तो वह उत्कृष्ट कोटि का दान है। हम सब उत्कृष्ट दानदाता बनें। इससे पूर्व विदित मुनि जी म.सा. ने उत्तराध्ययन सूत्र का वांचन प्रारम्भ किया।
श्रवण से ज्ञान प्राप्त होता है और इसके लिए संतों की शरण एवं सत्संग जरूरी है : आचार्य विजयराज
