कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला उपवास करती हैं और रात को चंद्रदेव को अघ्र्य देकर पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलती हैं। इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चन्द्रदेव की पूजा अर्चना करने का विधान है। करवा चौथ की पूजा उसके व्रत कथा के बिना अधूरा माना जाता है, इसलिए कथा पढ़कर या सुनकर ही अपनी पूजा संपन्न करें।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक ब्राह्मण के सात पुत्र और एक पुत्री वीरावती थी। सात भाईयों की अकेली बहन होने के कारण वीरावती बहुत ही लाडली थी। सभी भाई उससे अपार प्रेम करते थे और बहन की आंखों में एक आंसू नहीं देख पाते थे। कुछ सालों बाद वीरावती का विवाह सुयोग्य ब्राह्मण युवक से हो गया। विवाह के बाद जब पहला करवाचौथ आया तो वीरावती मायके आई, उसने भी अपनी सातों भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वो भूख और प्यास से व्याकुल हो उठीं। अपनी बहन की ऐसी हालात देखकर सभी भाई उससे खाना खाने के लिए मनाने लगे। इस पर वीरावती ने कहा वो खाना या पानी नहीं पी सकती है क्योंकि आज उसका करवा चौथ का व्रत है। वो चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद ही अन्न-जल को हाथ लगा सकती है।
चन्द्रदेव के उदय होने में अभी कुछ समय शेष था अत: चंद्रमा के जल्दी नहीं दिखने पर सातों भाईयों ने एक तरकीब निकाली। जिसके अनुसार एक भाई पीपल के पेड़ पर चढ़कर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा लगा की चांद निकल आया है। फिर एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अघ्र्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन ने खुशी-खुशी जाकर चांद को देखा और उसे अघ्र्य देकर खाना खाने बैठ गई। करवा माता भाइयों के इस प्रकार किए गए छल से नाराज हो गई। उनके रूठने से बहन ने जैसे ही पहला निवाला मुंह में डाला है तो उसे छींक आ गई। दूसरा निवाला लिया तो उसमें बाल निकल आया। इसके बाद जैसे ही उसने तीसरा निवाला मुंह में डालने की कोशिश की तो उसी समय उसकी ससुराल से उसके पति की मृत्यु की खबर आ गई।
इसके बाद वीरावती की भाभी ने सारा माजरा बताया कि उसके साथ ये सब क्यों हुआ है। भाइयों को भी अपनी गलती समझ आ गई, उन्होंने बहन से माफी मांगी और बहन ने करवा माता से माफी मांगी। करवा माता ने अगले साल चतुर्थी का व्रत रखने के लिए कहा। अगले साल कार्तिक मास की चौथ पर बहन ने पूरे विधि-विधान से व्रत किया। उसकी पूजा और भक्ति देख कर माता करवा प्रसन्न हो गई और उन्होंनें वीरावती को अखंड सौभाग्यवती भव: का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को पुन: जीवित कर दिया। माना जाता है कि बहन ने इस बार किसी भी छल से बचने के लिए खुद ही हाथ में छलनी लेकर पूजा की, तब से ही छलनी रखने की परंपरा चली आ रही है। उत्तर भारत में कई जगहों पर आज भी करवा चौथ के दिन छलनी में दीपक रखकर पति का चेहरा देखने की परंपरा है।