भारत के गौरव को पुनर्स्थापित करने संगठित होना नितान्त जरूरी – श्री राजेन्द्रदास देवाचार्यजी महाराज

अग्रमलूक पीठाधीश्वर की भागवत कथा में श्रृद्धालुओं का ज्वार उमड़ आया
बांसवाड़ा, 24 नवम्बर/अग्रमलूक पीठाधीश्वर स्वामी श्री राजेन्द्रदास देवाचार्यजी महाराज ने कहा है कि ज्ञान और वैराग्य से न कभी संतुष्ट होकर रहें, न इनका किंचित मात्र भी अहंकार रखें। इस विषय में सदैव दीन और छोटा बनकर रहें और अनुकूलताओं में विवेकबुद्धि से शरीर और संसार के भोगों के प्रति आसक्ति का त्याग अपनाकर अपने आपको सम्पूर्ण रूप से भगवान के चरणों में समर्पित करना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।

स्वामी श्री राजेन्द्रदास देवाचार्यजी महाराज ने लालीवाव मठ में चल रहे आठ दिवसीय विराट धार्मिक समारोह के पांचवे दिन रविवार को हजारों भक्त नर-नारियों को श्रीमद्भावगत कथा का श्रवण कराते हुए यह उद्गार प्रकट किए। भागवत कथा के दौरान् विभिन्न अवतारों के साथ राम, श्रीकृष्ण, जन्म महोत्सव और इनके बधाई भजनों ने भक्ति का ज्वार उमड़ा दिया। रविवार को

भागवत के विभिन्न स्कंधों की कथाओं का सार उद्धृत करने के साथ ही उन्होंने विभिन्न पौराणिक कथाओं और संत-भक्तों के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए जीवन को सम्पूर्ण भक्तिमय बनाने का आह्वान किया।

उन्होंने कहा कि ज्ञानवान, वैराग्यवान और भक्तिवान होने पर ही अपने आपको इससे शून्य मानना ही भक्त साधक का लक्ष्य है। ज्ञान व वैराग्य से संतुष्टि आने पर ज्ञान क्षीण होने लगता है। इससे यश-कीर्ति, उदरपूर्ति का सुख भले ही मिल जाये, लेकिन संसार के बंधन से निवृत्ति नहीं हो सकती। इस सत्य को अंगीकार करते हुए मनुष्य जन्म को सफल बनाएं।

उन्होंने कहा कि संसार के लायक बने रहेंगे तब तक संसार कभी छोड़ने वाला नहीं। समय रहते संसार की आसक्ति से मुक्ति पाने के प्रयास करने चाहिएं। इसके लिए आहार-विहार, विचार, आचरण आदि को पवित्र कर लेने और छोटे से साधन से भगवत प्राप्ति संभव है।

श्री देवाचार्यजी महाराज ने कहा कि भारत के खोये हुए गौरव को प्राप्त करने, धर्म रक्षा, गौरक्षा एवं राष्ट्र रक्षा के लिए सम्पूर्ण हिन्दू समाज को एक सूत्र में बंधने की आवश्यकता है। विभिन्न प्रकार की चुनौतियों के बीच सनातन संरक्षण के लिए भक्ति के माध्यम से सब जीवों का कल्याण हो सकता है।

आज हिन्दू वैदिक सभ्यता, संस्कृति और परम्पराओं की रक्षा, धर्म और राष्ट्र के लिए समर्पित पीढ़ी की आवश्यकता है। इस दिशा में सम्पूर्ण हिन्दू समाज में चेतना आवश्यक है।

लालीवाव पीठाधीश्वर महामण्डलेश्वर श्रीमहंत हरिओमदास महाराज एवं संत श्री रघुवीरदास महाराज ने भागवत का पूजन कर अग्रमलूक पीठाधीश्वर श्री राजेन्द्रदास देवाचार्यजी महाराज को पुष्पहार पहनाया।

आरंभ में मुख्य यजमान, महोत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष एड्वोकेट लक्ष्मीकान्त त्रिवेदी एवं परिवारजनों ने महाराजश्री का स्वागत किया और भागवतजी पर पुष्पहार चढ़ाकर पूजन किया।

पोथी एवं यज्ञ यजमानों ईश्वरदास वैष्णव, सुभाष अग्रवाल, प्रवीण गुप्ता ‘मुन्ना’, कृष्णकान्त पंचाल, सुश्री मैत्री पण्ड्या, जय पण्ड्या, शांतिलाल तेली, दीपक तेली‘ प्रवीण’, नारायणलाल तेली एवं राहुल तेली ‘जैकी’ और महोत्सव में उल्लेखनीय सेवाएं देने वालों में मनेहर जोशी, बालकृष्ण त्रिवेदी, नगेन्द्र चावलवाला, विश्व हिन्दू परिषद की मातृशक्ति शाखा की विभाग सत्संग प्रमुख मिथिलेश कौशिक एवं सहयोगियों साधना देवड़ा, सुनिला कौशिक एवं लता अहारी आदि ने भागवत पूजन किया और महाराजश्री से आशीर्वाद पाया। अन्त में महोत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकान्त त्रिवेदी एवं परिवार ने आरती उतारीं।

भागवत कथा में देश के विभिन्न हिस्सों से आए महामण्डलेश्वरों, श्रीमहंतों और साधु-संतों, तपस्वियों के साथ ही स्थानीय संत-महंतों में भारतमाता मन्दिर के महंत रामस्वरूप महाराज, थावरगिरि महाराज, नरसिंह गिरि महाराज, डॉ. विकास महाराज, बालगिरि महाराज, नारायण गिरि महाराज, शांतिलाल बैरागी, पं. देवेन्द्र महाराज, बापूसिंह राठौड़ आदि ने हिस्सा लिया और महाराजश्री का स्वागत करते हुए भागवतजी का श्रृद्धा से नमन किया। इन सभी का आयोजकों की ओर से स्वागत किया गया।

भागवत का पुण्य अतुलनीय

भागवत कथा की शुरूआत में सत्पंथाचार्य प्रेरणा पीठाधीश्वर संत श्री ज्ञानदेवजी महाराज (अहमदाबाद) ने श्रीमद्भागवत श्रवण के अतुलनीय पुण्य एवं प्रभावों की व्याख्या करते हुए कहा कि इससे जीव अविद्या, माया एवं संशयरहित होकर निष्पाप होता है और जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्त होकर भगवदीय दृष्टि प्राप्त कर लेता है।

उन्होंने जगविख्यात संत श्री राजेन्द्रदास देवाचार्यजी महाराज की भागवत कथा को बांसवाड़ावासियों के लिए इस सदी का सौभाग्य बताया और कहा कि अधिकाधिक क्षेत्रवासियों को इसका लाभ लेने आगे आना चाहिए।

सर्वपितृ मोक्ष अनुष्ठान में तर्पण-हवन का क्रम जारी

लालीवाव मठ में विराट धार्मिक महोत्सव के अन्तर्गत सर्व पितृ मोक्ष अनुष्ठान के अन्तर्गत रविवार को हुए तर्पण विधान और हवन, आरती आदि विधियों में दिवंगतों की गति-मुक्ति के लिए बड़ी संख्या में परिवार सम्मिलित हुए।

इस दौरान् निर्मोही अखाड़ा(उज्जैन) के धर्माचार्य पं. नारायण शास्त्री ने उपस्थित सभी धर्मावलम्बियों को उत्तर क्रिया, तर्पण, पिण्डदान, श्राद्ध आदि कर्मों की आवश्यकता और महत्त्व के बारे में समझाया गया और पूर्वजों के ऋण से उऋण होने के लिए किए जाने वाले कर्मों के प्रति आस्था और विश्वास को प्रगाढ़ता देने का आह्वान किया। सभी तर्पणकर्ताओं ने पितरों के निमित्त विभिन्न अनुष्ठान किए और उनकी प्रसन्नता के लिए भोग अर्पित किए।

भागवत मण्डप की परिक्रमा के लिए श्रृद्धालुओं का तांता लगा

आठ दिवसीय विराट धार्मिक महोत्सव के पांचवे दिन भागवत पारायण पाण्डाल में रविवार को विधि-विधान के साथ पोथी पूजन हुआ और भागवत पारायण करने वाले पण्डितों का भी पूजन किया गया। बाद में देश के विभिन्न तीर्थ धामों और क्षेत्रों से आए 108 भागवत विद्वान पण्डितों ने अपना पंचम दिवस का पारायण सस्वर शुरू किया।

संस्कृत में भागवत का मूल पारायण सुन-देख कर मंत्रमुग्ध हुए श्रृद्धालुओं ने भागवत पाण्डाल की परिक्रमा की और पण्डितों को अभिवादन करते हुए कुछ देर रुक कर भागवत का श्रवण किया। भागवत पाण्डाल में द्वादशाक्षरी मंत्र का संकीर्तन किया गया। इनके साथ ही लालीवाव मठ के विभिन्न अनुष्ठान ब्रह्मर्षि पं. दिव्यभारत पण्ड्या के आचार्यत्व में हुए।

श्रीविद्या एवं श्री लक्ष्मीनारायण यज्ञार्चन की गूंज

महोत्सव के अन्तर्गत श्रीविद्या एवं श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के अन्तर्गत यज्ञाचार्य पं. निकुंज मोहन पण्ड्या के आचार्यत्व में स्थापित देवी-देवताओं का पूजन-अर्चन, श्रीविद्या मंत्रों, सम्पुटित श्रीसूक्त, ललिता सहस्रनाम से हवन, कल्याण वृष्टि स्तोत्र, सौभाग्यष्टोत्तरशत, त्रिपुरा सुन्दरी कवच आदि के पाठ, श्रीयंत्रों का कुंकुमार्चन, लघुरूद्र, शतचण्डी के अन्तर्गत दुर्गा सप्तशती के सामूहिक पाठ, दीपदान भैरव, गणपति पूजन, श्री विद्या से संबंधित तमाम प्रकार के विभिन्न न्यास आदि के अनुष्ठान हुए।

By Udaipurviews

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