जिसके मन में जिनवाणी के प्रति आस्था है उसके लिए यह कल्याणी बन जाती है: आचार्य विजयराज

उदयपुर, 23 जुलाई। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में मंगलवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि जैन दर्शन के 32 आगमों में जिनेश्वर देव की वाणी गुम्फित है। इस पंचम आरे में जिनेश्वर देव तो नहीं है पर उनकी वाणी के रूप में जिनवाणी है जिसकी देशना साधु-साध्वी देते हैं। जिनवाणी जिनेश्वर देव की तरह ही है। जिसके मन में इसके प्रति आस्था हो, उसके लिए यह कल्याणी बन जाती है। जिनवाणी का श्रवण करने वालों को जीवन जीने की कला मिल जाती है। जिनवाणी का श्रवण करने से अन्तस में सत्संग की तरंग पैदा हो जाती है। अपना कल्याण चाहने वाले जिनवाणी का सतत श्रवण करें। भगवान महावीर ने अपनी अन्तिम देशना जिसे अपुट्ठ वागरणा कहा जाता है, उत्तराध्ययन सूत्र के 36 अध्ययनों में दी। उत्तराध्ययन सूत्र की देशना देते-देते ही प्रभु महावीर निर्वाण को प्राप्त हो गए। निर्वाण की चाह रखने वाले उत्तराध्ययन सूत्र का सतत पारायण करे। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने कहा कि हाय का पैसा घर के सुख में लाय (आग) लगाये बिना नहीं रहता। पाप का पैसा जैसा आता है वैसा ही चला जाता है। न्याय बुद्धि से कमाया गया धन चारों कषायों को मंद कर सम्यक्त्व की प्राप्ति में सहायक बनता है। धर्मसभा को रत्नेश मुनि जी म.सा. ने भी सम्बोधित किया। उदयपुर श्रीसंघ के अध्यक्ष इंदर सिंह मेहता ने बताया कि महाराष्ट्र के हिंगणघाट से पधारे श्रावकों ने 2025 का चातुर्मास हिंगणघाट में करने की विनती आचार्यश्री जी के चरणों में रखी। इसके साथ ही मुम्बई, तमिलनाडू, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान के दूरदराज के क्षेत्रों से दर्शनार्थियों का आवागमन निरन्तर जारी है।

By Udaipurviews

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