एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन
भारतीय ज्ञान श्रम, अनुभूति और अनुसंधानों का परिणाम – डॉ. ओपी पाण्डे्य
ज्योतिष का उपयोग संयंमित और स्वार्थरहित हो -ज्योतिर्विद पं. राम नारायण शर्मा
उदयपुर 24 मई / जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय की ओर से शुक्रवार को प्रतापनगर स्थिति आईटी सभागार में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयेाजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता ज्योतिर्विद पंडित राम नारायण शर्मा ने ज्योतिष परम्परा व ऋषि पराशर का अवदान विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि ज्योतिष विषय अपने आप में अतंयन्त व्यापक और विस्तृत विषय है । जिसमें पुराणों के ज्ञान के साथ ग्रह नक्षत्रों के साथ अजर अमर आत्मा की जीवन यात्रा तथा कर्मांे का गहन अंर्तसंबंध है। इस ज्ञान का उपयोग संयंम और गंभीरता के साथ स्वार्थरहित हो करना अतयंन्त आवश्यक है। पं शर्मा ने अपने उद्बोधन में ज्योतिष तथा पुर्नजन्म के संबंधों तथा व्यक्ति के जीवन में कर्मांे की निर्भरता को संदर्भों के माध्यम से बड़ी सहजता और सरलता से व्यक्त किया। उन्होंने ग्रह-नक्षत्रों की आवश्यकता, ग्रहों के विभिन्न अवतारों से संबंध तथा निदान खंण्ड की भी बात रखी।
प्रधानमंत्री के पूर्व वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. ओ.पी. पाण्डे्य ने भारतीय ज्ञान प्रणाली विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान प्रणाली ज्ञान,विज्ञान और प्रज्ञान तीनांे आयामों को आत्मसात करने की अनूठी परम्परा है। भारतीय ज्ञान पुस्तकीय ज्ञान की परिधी से कहीं उपर श्रम, अनुभूति और अनुसंधानों का ज्ञान है। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में ज्ञान के स्थान पर रटने की परिपाटी गंभीर चिन्तन का विषय है। डॉ. पाण्डे्य ने ज्ञान के लिए डाटा की निर्भरता को नकारते हुए भारतीय सनातन ज्ञान को अपनाकर प्रगति पथ पर बढ़ने की बात कही।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा को आज पूरा विश्व अपना रहा है, आवश्यकता है हमारे ज्ञान को युवा पीढ़ी में रूपांतरित करने की। एनईपी 2020 में आर्शसाहित्य,आर्शपुस्तक-ग्रंथों के इस प्रकार के रूपान्तरण से शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति हो सकेगी। उन्होंने कहा कि भारतीयता का अर्थ भारतीय संस्कार संस्कृति के साथ राष्ट्रीयता का बोध होना है और ये भारतीय ज्ञान प्रणाली की ओर लौट कर ही संभव हो पाएगा।
भारतीय ज्ञान परम्परा में नारी का महत्व विषय पर डॉ. प्रेमलता देवी ने कहा कि वेदों और पुराणों में नारी को सजृन और शक्ति की अधिष्ठात्री बताया गया है। उन्होंने कहा कि हमारे इतिहास में ऐसे कई उदाहरण है जो नारी के इस स्वरूप को चरितार्थ करते है। मॉर्डन विचारों से परे भी अपने मूल स्वरूप को ध्यान में रख कर अपने महत्व को देखने की आवश्यकता है। नारी अपने नैतिक आचरण,राष्ट्रीय दायित्वों तथा परिवार के साथ अपने समर्पण के उपरान्त भी अदम्य साहस और शक्ति की प्रतिक है।
प्रारंभ में शिवेश शर्मा न शिव स्तुति प्रस्तुत की। संयोजन डॉ. हरीश चौबीसा ने किया जबकि प्रो. जीवनसिंह खरकवाल ने आभार जताया।
निजी सचिव केके कुमावत ने बताया कि इस अवसर पर प्रो. सरोज गर्ग, डॉ. कला मुणेत, प्रो. मंजु मांडोत, डॉ. पारस जैन, डॉ. हेमेन्द्र चौधरी, प्रो. आईजे माथुर, डॉ. राजन सूद, डॉ. अमी राठौड़, डॉ. अमीया गोस्वामी, प्रो. एसएस चौधरी, डॉ. लीली जैन, डॉ. बबीता रसीद, डॉ. कुलशेखर व्यास, डॉ. भूरालाल श्रीमाली, डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव, डॉ. मधु मुर्डिया, डॉ. सुनील चौधरी, डॉ. प्रतीक जांगीण, डॉ. केके त्रिवेदी, डॉ. सुरेन्द्र सिंह डॉ. गुणबाला आमेटा सहित सहित अकादमिक, गैर अकादमिक कार्यकर्ता एवं विधार्थी उपस्थित थे।