मंगल भावना समारोह में हुआ अहर्निश सेवा एवं सहयोग देने  वाले  74 जनों  का  किया  बहुमान

संत स्वार्थ त्याग की साधना करते हैं, इसलिए वे हमारे आदर्श होते हैं : आचार्य विजयराज
उदयपुर, 10 नवम्बर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास केे तहत रविवार को आयोजित मंगल भावना समारोह में आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. एवं उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. एवं महाश्रमणीरत्ना महासती श्री सूर्यकान्ता जी म.सा. के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की गई एवं चातुुर्मास में अतुलनीय सहयोग देने वाले 74 जनों का बहुमान किया गया।
उदयपुर श्रीसंघ के मंत्री पुष्पेन्द्र बड़ाला ने बताया कि समारोह की अध्यक्षता श्रीसंघ के अध्यक्ष इंदर सिंह मेहता ने की, जबकि श्रीसंघ के  विनोद प्रताप सिंह खमेसरा,  विजय सिंह लोढ़ा, श्यामसुन्दर मारू, नरेन्द्र हिंगड़़, विरेन्द्र – ललित वर्डिया, सूरजमल मोगरा, प्रकाश – दलपत वर्डिया, अनिल नाहर, सुरेश गुन्देचा, महिला संघ की अध्यक्ष पद्मिनी चौधरी, मंत्री रेखा बड़ाला  ने मंच को शोभायमान किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ महिला मंडल की सदस्याओं द्वारा मंगलाचरण एवं स्वागत गीत से हुआ। समारोह में आत्मोदय वर्षावास के लिए आचार्य श्री विजयराज जी म.सा., उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. एवं महाश्रमणीरत्ना महासती श्री सूर्यकान्ता जी म.सा. आदि ठाणा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की गई। वहीं विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग एवं सेवाएं देने वाले समाजसेवियों, कार्यकर्ताओं का माला, उपरणा एवं बैग भेंट कर बहुमान किया गया। समारोह को सम्बोधित करते हुए अध्यक्ष इंदर सिंह मेहता ने कहा कि इस चातुर्मास की सफलता में सभी ने कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। पूरा उदयपुर श्रीसंघ धन्यवाद का पात्र है। इस अवसर पर उन्होंने श्रीसंघ की नई योजनाओं को सभी के समक्ष रखा। सज्जन सरूपरिया, विश्वजीत बम्बोरिया, ललित सहलोत, सुदर्शन सिंह भाटी आदि अनेक जनों द्वारा प्रदत्त सहयोग हेतु विशेष आभार प्रकट किया । ललित बम्ब ने धन्यवाद ज्ञापित किया ।  कार्यक्रम पश्चात् गौतम प्रसादी का आयोजन किया गया। इससे पूर्व  धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि सम्यक् दर्शन का बोध होने के बाद जीव की आस्था सत्य के प्रति हो जाती है। सम्यक्दर्शी सच्चा सो मेरा कहते हैं। यही सार्वजनिक, सार्वभौमिक एवं सर्वकालिक सत्य है। यह पंचम आरा है जिसमें असत्य बोलने वाले मजे कर रहे हैं पर याद रखें कि कर्म सदोष को छोड़़ते नहीं और निर्दोष को छेड़ते नहीं। हम दूसरों का चिंतन व चिंता छोड़ें। स्वयं की चिंता करें कि हम सत्य के कितने निकट हैं। सत्य को जीवन में घटित करें। संत स्वार्थ त्याग की साधना करते हैं, इसलिए वे हमारे आदर्श होते हैं। श्रावक-श्राविकाएं स्वार्थ त्याग का संकल्प करें कि हम संघ, समाज, राष्ट्र के लिए अपना तन-मन-धन समर्पित करें। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने कहा कि राग-द्वेष, मोह आदि हमारे बंधन के कारण हैं। पांच इन्द्रियों के द्वारा विषयों का पोषण करते हैं। यह शाश्वत सत्य है कि सुख के भोगी को दुःख का भागी बनना ही पड़ता है। साधना को भोगने का अधिकार पूर्व जन्मों के पुण्यों के कारण ही मिलता है। आपका बैलेंस जीरो हो जाए उससे पहले अपनी सम्पत्ति का सदुपयोग कर लें। दान दिल वाले ही दे सकते हैं, जिनके पास न्याय सम्पन्न वैभव है वे ही दान दे सकते हैं। जिनका पुण्य उत्तम कोटि का पुण्य है वे ही दान दे सकते हैं। जो दुआओं की दौलत इकट्ठी करते हैं ,  वे कभी दिवालिया नहीं होते हैं। श्रद्धेय श्री विशालप्रिय जी म.सा. ने कहा कि गुरू के इशारों को समझने वाला सब कार्य कर सकता है।

By Udaipurviews

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