शब्द महके तो लगाव और बहके तो घाव हो जाता है : आचार्य विजयराज

उदयपुर, 25 अगस्त। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में रविवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि संवेदन अर्थात् उपयोग में रहना, उपयोग में जीना एवं उपयोग में रहते हुए ही मृत्यु का वरण करने वाला सुपात्र जीव निकट भविष्य में शिव बन जाता है, जबकि अशुभ उपयोग संसार परिभ्रमण का कारण है। सुपात्रदान की महिमा को व्याख्यायित करते हुए फरमाया कि ब्याज में लगाया गया धन दुगुना, व्यापार में लगाया गया धन चौगुना, खेत में लगाया गया धन सौ गुना और सुपात्र दान में लगाया गया धन लाखों गुना बढ़कर मिलता है। गरीब का दान एवं शक्तिशाली की क्षमा स्वर्ग के दरवाजे खोल देती है। संगम ग्वाला संत को संत मानकर खीर बहरा कर अगले भव में महान् ऋद्धिशाली बना। सत्य ही है-सुपात्र दान में लगाया गया धन, लगाया गया मन, लगाया गया क्षण बहुत बड़ा फल देने वाला बनाता है। शब्द महके तो लगाव हो जाता है और शब्द बहके तो घाव हो जाता है। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने मार्गानुसारिता केे आठवें बोल ‘‘माता-पिता का सम्मान’’ विषय पर फरमाया कि माता-पिता के अस्तित्व को सामान्य मानने की भूल कभी नहीं करें। जब तुमने पहली सांस ली तो मां पास थी, जब माता को अंतिम सांस आए तब तुम जरूर उनके पास रहना। माता-पिता की सेवा हर हाल में करें, इसी से जीवन सुधरता व संवरता है। अपने लोगों से अपनापन रखें।

By Udaipurviews

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