मनुष्य गति के जीव संतों के दर्शन कर सम्यक्त्व प्राप्त करते हैं : आचार्य विजयराज

उदयपुर, 13 नवम्बर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में बुधवार को हुक्मगच्छाधिपति आचार्य जी विजयराज जी म.सा. ने कहा कि चारों गति के जीव सम्यक् दर्शन की प्राप्ति कर सकते हैं। नारकीय जीव वेदना से, तिर्यंच के जीव संवेदना से, मनुष्य गति के जीव संत दर्शन से एवं देवता देशना सुनते-सुनते एवं प्रभु की भक्ति करते-करते सम्यक्त्व की प्राप्ति कर सकते हैं। नरक में वेदना भोगते-भोगते नारकियों की भाव दया, परिणाम धारा हलुकर्मी बन जाती है तो नरक के जीव सम्यक्त्व प्राप्त कर लेते हैं। तिर्यंच गति के जीव संवेदनाशील होते हैं। मेघ कुमार ने हाथी के भव में खरगोश पर दया करके उसका जीवन बचाया और सम्यक्त्व की प्राप्ति की। मनुष्य गति के जीव संतों के दर्शन कर सम्यक्त्व प्राप्त करते हैं। भगवान महावीर के समकालीन महाराजा श्रेणिक ने अनाथी मुनि के रूप को देखा और फिर नित्य आत्म स्वरूप को समझ कर सम्यक्त्व प्राप्त किया। देवता त्याग-प्रत्याख्यान तो नहीं कर सकते हैं पर प्रभु की देशना का श्रवण अवश्य कर सकते हैं, इसी प्रकार प्रभु की भक्ति करते हुए भी सम्यक्त्व प्राप्त कर लेते हैं। आपने कहा कि यहां प्रवचन सभा में उपस्थित जन वेदना का अनुभव भी करते ही हैं, आप संवेदनशील भी हैं, संतों के दर्शन भी आप कर रहे हैं एवं जिनवाणी की देशना भी सुन रहे हैं। आप में से जिन जीवों में आत्मावलोकन घटित होता है वे सम्यक्त्व प्राप्त कर लेते हैं। सम्यक्त्व की प्राप्ति के बाद इसकी सुरक्षा भी जरूरी है। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने कहा कि कर्ज एवं मर्ज को, घाव को छोटा मत समझो। समय रहते कर्ज का चुकारा करना एवं मर्ज को प्रारम्भ में ही पहचान कर उसका इलाज करवाना बुद्धिमत्ता है। हम पर जन्मदाता माता-पिता, जीवन को चलाने में छह काय जीवों का, जीवन को संस्कारित करने वाले गुरूजनों का एवं रोजी-राटी देने वालों का भी कर्ज एवं उपकार है। हमसे गलती से भी थोड़ा सा पाप हो जाए तो तुरन्त उसकी आलोचना कर हल्का बनें एवं समय पर उपकारकर्ताओं का कर्जा चुकाएं। मंत्री पुष्पेन्द्र बड़ाला ने बताया कि प्रवचन सभा में मंगलवाड़ से श्रद्धालुओं की बस आई जिसमें पूर्व विधायक ललित ओस्तवाल ने प्रज्ञारत्न जी के चातुर्मास हेतु विनती रखी।

By Udaipurviews

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