उदयपुर के मेनार में बारूद की होली, तीन घंटे बनी रही गूंज

तोप से दागे गोले तथा बंदूकों से रात ढाई बजे तक होती रही फायरिंग

उदयपुर। देश में होली के विविध रंग देखने को मिलते हैं, लेकिन उदयपुर जिले की मेनार की होली बेहद खास है। जहां बारूद की होली खेली गई। सिर पर पगड़ी पहने ग्रामीणों ने तोप से गोले छोड़कर इसकी शुरूआत की और करीब तीन घंटे तक समूचा मेनार बंदूकों से की गई फायरिंग से गूंजायमान रहा।
माहौल था जमरा बीज पर मेनार गांव में मनाई जा रही बारूद की होली का। जहां बुधवार रात 11 बजे से ढाई बजे तक बारूद की होली खेली गई। इस दौरान शौय और वीरता भी लोगों ने दिखाई। दोनों हाथों में तलवार लेकर युद्ध कौशल का प्रदर्शन भी यहां देखने को मिला। योद्धा की तरह सजे ग्रामीणों ने तोप से गोले दागकर इसकी शुरूआत की और तीन घंटों के दौरान दो दर्जन से अधिक गोले तोपों से दागे गए।


युद्ध जैसा माहौल, 17 से 70 तक के लोगों ने खेली बारूद की होली
बारूद की होली खेलने वालों में मेनार और आसपास रहने वाले गांवों के 17 से 70 वर्ष तक के लोग शामिल थे। हालांकि इससे छोटी उम्र के किशोरों को भी अपना कौशल दिखाने का अवसर मिला। गांव के तीन हजार से अधिक लोगों ने बारूद की होली में सीधे तौर पर भाग लिया, वहीं आसपास गांवों तथा उदयपुर से इस खास होली को देखने लगभग दस हजार लोग भी वहां पहुंचे थे।
पांच तोपों ने हर सात मिनट में एक गोला दागा गया
बारूद की होली के लिए गांव के चौक को पहले अच्छी तरह सजाया गया तथा वहां पांच तोपें लगाई गई थी। हर सात मिनट में तोपों से गोले दागे गए, जबकि गांव के दो हजार से अधिक लोग बंदूकें लेकर आए और जमकर फायरिंग की। इनसे निकले धमाकों की गूंज मेनार ही नहीं, आसपास दस किलोमीटर एरिया से गूंजती रही।
गुरुवार सुबह तक बजते रहे ढोल, एक करोड़ की आतिशबाजी
मेनार में बारूद की होली की तैयारी होली पर्व से ही शुरू हो जाती है। जबकि यह होली के तीन दिन जमरा बीज पर खेली जाती है। बुधवार दोपहर दो बजे से शहर के होली चौक में ढोल बजने लगे और यह गुरुवार सुबह चार बजे तक बजते रहे। इस दौरान मेनार के लोगों ने दोनों हाथों में तलवार और लाठियां लेकर गैर नृत्य भी किया। होली पर्व पर गांव में जमकर आतिशबाजी भी की गई। बताया जाता है कि महज चार घंटों में ग्रामीणों ने एक करोड़ रुपए से अधिक की आतिशबाजी की।
युद्ध जैसी परम्परा चार सौ साल से चली आ रही
मेनार में बारूद की होली की परम्परा पिछले चार सौ सालों से चलर आ रही है। यहां रावत और मीणा समाज के लोग सेनापति की भूमिका निभाते हैं, जबकि तेली समाज के लोग मशालों में तेल भरने का काम करते हैं। जैन समाज भी होली पर्व को धूमधाम से मनाने में सहयोग करता है। कई क्विंटल गुलाल का इंतजाम जैन समाज ने ही किया तथा होली चौक में रखवाया। जिस तरह यहां के वीर यौद्धाओं तथा रण बांकुरों ने मुगलों पर जीत हांसिल की, उसी की रस्म के तहत सेनापति और उनकी सेना लगातार आगे बढ़कर उसी परम्परा को निभाती आती है। ढोली समाज का परिवार बहुचर माता घाटी पर लोगों को महाराणा अमर सिंह प्रथम के 400 साल पुराने इतिहास को पढ़कर सुनाता है।


लंदन, दुबई, अमेरिका सहित कई देशों से लोग पहुंचे
मेनार गांव में मनाए जाने वाली बारूद की होली देखने देशी पर्यटक ही नहीं आते बल्कि विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में यहां आते हैं। इस बार लंदन से नारायण गदावत, ओमान से ओंकारलाल मेरावत, दुबई से मनोहर मेरावत व ओमप्रकाश दियावत, अमेरिका से नंदलाल चित्तौड़ा, मस्कट से शांतिलाल मेरावत और बेल्जियम से कमलेश एकलिंगासोत भी मेनार में बारूद की होली देखने आए, जबकि सभी उन देशों में रहकर कारोबार करते हैं।
मेनारिया ब्राह्मणों ने मुगलों की चौकी कर दी थी ध्वस्त
मुगलों से युद्ध में विजय की खुशी में जश्न मनाने के लिए हर साल गांववासी बारूद की होली खेलते हैं। महाराणा अमर सिंह प्रथम के समय मेनार में मुगल सेना की चौकी थी, जिसे मेनारिया ब्राह्मणों कुशल रणनीति से लड़ाई कर चौकी को ध्वस्त किया था। इसी की खुशी में सालों से जमरा बीज पर जश्न मनाने की परंपरा चली आ रही है।

By Udaipurviews

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