महर्षि चरक जयंती पर निःशुल्क डायबिटीज जांच शिविर का आयोजन

उदयपुर, 09 अगस्त। राजकीय आदर्श औषधालय सिन्धी बाजार में शुक्रवार को महर्षि चरक जयंती के अवसर पर निःशुल्क डायबिटीज जांच शिविर का आयोजन किया गया। औषधालय प्रभारी डॉ.शोभालाल औदिच्य ने बताया कि शिविर में बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिकों ने भाग लिया। शिविर में रोगियों की जांच की गई और उन्हें उचित परामर्श प्रदान किया गया। शिविर में उपस्थित सभी लोगों ने चिकित्सा परामर्श के साथ-साथ निशुल्क डायबिटीज जांच का लाभ उठाया।
कार्यक्रम में योगी अशोक जैन, प्रेम जैन, भरत स्वर्णकार, मंजू शर्मा, सीमा मेहता, रचित स्वर्णकार, जितेन्द्र बेबल, भानु बापना, राकेश ताम्बी, कमला ताम्बी, कंचन कुमार डामोर, गजेन्द्र आमेटा, गरिमा मीणा, और भगवती लाल लोधा उपस्थित रहे।
आयुर्वेद में महर्षि चरक के योगदान पर प्रकाश डालते हुए डॉ. औदिच्य ने बताया कि इनका नाम आयुर्वेद के पितामह के रूप में विख्यात है। इनका जन्म लगभग 200 ईसा पूर्व कश्मीर के पुंछ जिले के कपिष्ठल नामक गाँव में हुआ था। महर्षि चरक ने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन करने के बाद आयुर्वेद का अनुसरण प्रारंभ किया। उन्होंने महर्षि पुनर्वसु आत्रेय और आचार्य अग्निवेश द्वारा प्रणीत अग्निवेश तंत्र को खोजा और इसके छिन्न-भिन्न अंशों को सहेजकर चरक संहिता की रचना की। चरक संहिता आज भी आयुर्वेद का एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें महर्षि चरक ने चिकित्सा के सिद्धांतों की स्थापना की। चरक संहिता में महर्षि चरक ने त्रिदोष सिद्धांत का विस्तार से वर्णन किया है। यह सिद्धांत वात, पित्त, और कफ के संतुलन पर आधारित है, जो आयुर्वेद की आधारशिला मानी जाती है।
महर्षि चरक के अनुसार, शरीर में इन तीनों दोषों का संतुलन बनाए रखना ही स्वास्थ्य का मूल आधार है। उन्होंने औषधियों के चयन और उनके प्रयोग की विधियों को भी विस्तार से बताया, जिससे चिकित्सा पद्धतियों का विकास हुआ। महर्षि चरक ने चरक संहिता में दिनचर्या, ऋतुचर्या, और विभिन्न रोगों की चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए। उन्होंने पंचकर्म चिकित्सा पद्धति की भी स्थापना की, जो रोगों को जड़ से समाप्त करने में सहायक है। इसके अलावा, उन्होंने औषधियों, शरीर रचना, और निदान स्थान के सिद्धांतों का भी विस्तार से वर्णन किया। उनके सिद्धांत आज भी चिकित्सा क्षेत्र में प्रासंगिक हैं और आधुनिक चिकित्सा में भी उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। हाल ही में कोविड-19 महामारी के दौरान आयुर्वेदिक चिकित्सा संस्थाओं ने चरक के त्रिदोष सिद्धांत के आधार पर चिकित्सा की और इसमें सफलता प्राप्त की। इसी प्रकार, स्वाइन फ्लू, टाइफाइड, मलेरिया, और अन्य संक्रामक रोगों की चिकित्सा में भी चरक के सिद्धांत प्रभावी साबित हुए हैं। महर्षि चरक ने चरक संहिता में च्यवनप्राश जैसे रसायनों का उल्लेख किया है, जो श्वास और कफ रोगों में विशेष रूप से लाभकारी हैं।महर्षि चरक का योगदान केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं है। उन्होंने कुष्ठ रोग, त्वचा रोग, मानसिक रोग, और प्रमेह जैसी व्याधियों की चिकित्सा के भी सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं। इसके अलावा, उन्होंने औषधीय पौधों के महत्व को भी प्रतिपादित किया और त्रिफला, आंवला, और हल्दी जैसी औषधियों का उल्लेख किया।

By Udaipurviews

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