उदयपुर, 28 फरवरी। आजादी के समय हमारे देश की आबादी 33 करोड़ थी और पेट भरने के लिए केवल मोटे अनाज यथा कांगणी, रागी, सांवा, कुटकी, बाजरा, ज्वार आदि ही थे। विगत 70 सालों में भारत की आबादी 150 करोड़ पंहुच गई। तब अनाज की कमी केा पूरा करने के लिए विदेशों से गेहंू- धान मंगाना पड़ा था। आज कृषि वैज्ञानिकों की मेहनत के बल पर अनाज के भण्डार भरे हुए हैं। खाद्यान्न के मामले में भारत आत्मनिर्भर है। यह बात शुक्रवार को अनुसंधान निदेशक एमपीयूएटी डॉ. अरविन्द वर्मा ने कही।
डॉ. वर्मा कृषि विभाग की ओर से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा व पौष्टिक अनाज विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में आए किसानों को संबोधित कर रहे थें। कार्यशला में गिर्वा, कुराबड़, सायरा, गोगुन्दा व कोटड़ा के एक सौ किसानों ने भाग लिया। उन्होंने कहा कि एक किलो धान पैदा करने में 3500 लीटर पानी खर्च होता है। जबकि मोटे अनाज जिन्हें ’श्री अन्न’ के नाम से पुकारा जाता है, एक या दो पिलाई में ही पक जाते हैं। उन्होंने किसानों को शपथ दिलाई कि गेंहू-मक्का करंे लेकिन कम से कम 20 प्रतिशत भूमि पर मोटे अनाज की बुवाई जरूर करें। मोटा अनाज कभी गरीबों का भोजन था, लेकिन अब इसे अमीर लोगों का भोजन माना जाता है। रामायण – महाभारतकालीन इतिहास में भी मोटे अनाज का उल्लेख मिलता है।
कीट विज्ञानी डॉ. आर. स्वामिनाथन ने बताया कि मोटे अनाज वाली फसलों में कीड़ा-बीमारी नहीं के बराबर आती है। फिर भी मोटे अनाज की फसलों के आसपास हजारे के फूल के पौधे लगा देने मात्र से मित्र कीटों की भरमार रहेगी जो शत्रु कीट का खात्मा कर देंगे।
अनुवांशिकी विभागाध्यक्ष डॉ. हेमलता शर्मा ने श्रीअन्न यानी मोटा अनाज को खाद्य, पोषण, स्वास्थ्य, पार्यवरण और गृह सुरक्षा में कारगर बताया और कहा कि मोटा अनाज प्रयोग में लाने से हम कई प्रकार की बीमारियों से बच सकते हैं। उन्होंनेे मोटे अनाज खेतों में उगाने की विधि और बीज की उपलब्धता के बारे में बताया। मोटा अनाज पर कड़क छिलका होता है जिसे हुलर (चक्की) से हटाकर हम रोटी, इडली, हलवा आदि काई भी सामाग्री बना सकते हैं। उन्होंने किसानों का आह्वान किया के पोषक तत्वों से भरपूर बाजरा कोई भी बाजार से नही क्रय करे। एमपीयूएटी की ओर से कार्यशाला के संभागी किसानों को बाजारा व अन्य श्रीअन्न के बीज सुलभ कराए जाएंगे। इस मौके पर श्रीअन्न की लाइव स्टाल भी लगाई गई ताकि किसान मोटे अजान को बारीकी से समझ सके।
पूर्व संयुक्त निदेशक कृषि श्री बंसत कुमार धूपिया ने कहा कि सबसे पहले खेत की सेहत सुधारी जानी चाहिए। रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशियों का सीमित मात्रा में प्रयोग करने की सीख दी। होम सांइंस कॉलेज में खाद्य एवं पोषण विभाग सह प्राध्यापक डॉ. विशाखा सिंह ने मोटे अनाज की कटाई के बाद उनसे बनने वाले विभिन्न व्यंजन जैसे केक, बिस्किट, कूकीज, ब्रेड आदि के बारे में बताया।
आरंभ में संयुक्त निदेशक श्री सुधीर कुमार वर्मा, सहायक निदेशक श्री श्याम लाल सालवी, डॉ. डी.पी. सिंह, रामेश्वर लाल सालवी, हरीश टांक आदि ने भी विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन श्री महेश व्यास ने किया।
खाद्य एवं पोषण सुरक्षा, पौष्टिक अनाज विषयक कार्यशाला

गरीबों की थाली से गायब हुआ मोटा अनाज अब अमीरों की पंसद
श्रीअन्न खाओ-गेंहू चावल से दूरी बढ़ाओं